Saturday, November 30, 2013

"तेरे नाम के पीले फूल"- नीलम मेंदीरत्ता के काव्य संग्रह की वंदना गुप्ता द्वारा समीक्षा



रुदाली
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इस आलीशान महल के भीतर
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इस काल कोठरी में जाने की इज़ाज़त,
तो मै कभी खुद को भी नहीं देती,
तो तुम्हें कैसे दे दूँ ??
बस साँझ ढले कोठरी की दहलीज़ पर,
यादों का दिया जला देती हूँ,
रात भर कोठरी की एक एक ईट,
का मौन टूटता है,
और दबे स्वर में मिलकर,
सब रुदाली गाती है,
मै कोठरी के बाहर बैठ,
दिए की लौ को एक टक देखा करती हूँ,
इस से पहले कि दिया बुझे,
थोडा घी और डाल आती हूँ,
बस रात इसी तरह गुज़र जाती है,
दिन का क्या है,
वो तो मुझे अपने पीछे लिए-लिए घूमता है,
तुम दिन में आना,
हाँ बाबा !! मै हँसती हुई ही मिलूंगी .........


प्यास
   
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सुनो
! बहुत प्यासे हो ना तुम !
और तुम्हें प्रेम की तलाश भी है,
मै बताती हूँ तुम्हें ,
दूर बहुत दूर,
रेगिस्तान में एक कुँआ है,
अमृत मिलता है वहाँ,
चल कर जाना होगा,
छोटे छोटे क़दमों से,
ऊँट नहीं जाता वहाँ ,
प्यास जाती है,
लम्बा सफ़र है,
और हो सकता है,
कि तुम वहाँ पहुँच जाओ,
और तुम्हें कुँआ ना मिले,
या फिर कुँआ मिले,
पर सूखा हुआ मिले,
फिर?
फिर क्या? तुम्ही सोचों,
कि चल कर जाओगे,
या मन की उड़ान भरोगे ...


" तेरे नाम के पीले फूल " मोहब्बत से सराबोर इश्क की दास्ताँ है जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही प्रेम समाहित है। ढूंढने निकलो तो खुद को ही भूल जाओ , प्रेम की तासीर में बह जाओ और अपना पता ही भूल जाओ। और क्या चाहिए भला एक पाठक को , अपने दिल की आवाज़ जब कहीं उसे सुनाई देती है तब कहाँ भान रहता है दीन और दुनिया का। एक प्रेम के नगर में प्रवेश करने के बाद बस प्रेम रस में प्रेमी बन बह जाता है। बस यही तो आकर्षण है जो "तेरे नाम के पीले फूल "काव्य संग्रह में नीलम मेदीरत्ता ने संजोया है ।सभी कवितायेँ अपनी ओर आकर्षित करती हैं इस तरह कि बरबस दिल की खूंटियों पर टंगे अरमान मचलने लगते हैं , कुछ अपनी सी कहानी कहती लगती हैं कवितायेँ तो अनायास एक तारतम्य सा बन जाता है और यही किसी लेखक का सबसे बड़ा पुरस्कार होता है जब उसके पाठक को उसकी रचनाओं में अपना अक्स, अपने पीड़ा , अपनी ज़िन्दगी नज़र आती है .


"प्रेम पिंजरा " प्रेम का पिंजरा होता ही ऐसा है जिसमे एक बार कैद हो जाओ तो उम्र निकल सकता और फिर उसमे जब स्त्री प्रेम करती है तो पूरी शिद्दत से करती है ये पुरुष जनता है तभी तो जब वो खुद को आज़ाद करने को कहती है तो वो कह उठता है ----
मूर्ख !! अगर तुझे आज़ाद ही करना था /तो मैं प्रेम क्यों सिखाता / खोल देता हूँ पींजरा।/ अगर उड़ सकती है तो उड़ जा। .............
इसके बाद कहने को क्या बचा भला ?

"प्रेम का प्याला "जिसने प्रेम का प्याला पिया या जिसने ये गर्ल पिया उसे भला पीने को क्या बाकि रहा और प्रेम दीवाने तो सबको अपना सा बनने की  ही इच्छा रखते हैं फिर चाहे किसी विश्वामित्र  की तपस्या भंग हो या मीरा बन प्रेम का प्याला पिया हो।


नीलम की कवितायेँ प्रेम का ताजमहल बनाती हैं जहाँ उनकी कविता अधूरी है गर मुकम्मल न हो पाये ज़िन्दगी की आरज़ू कुछ ऐसा ही भाव संजोया है "अधूरी कविता "मे तो "खुद से प्यार " कविता में खुद को चाहने के भाव इतनी सहजता से उतरे हैं कि किसी को भी खुद से प्यार हो जाये।


अब जहाँ प्रेम होगा तो वहाँ दर्द भला कैसे पीछे रहेगा वो तो उसका जन्म जन्म का संगी साथी है। कैसे हिल मिल आँख मिचौली खेल करते हैं दोनों क्या किसी से छुपा है तभी तो "रुदाली" में स्त्री के जीवन की पीड़ा रात के चौबारे पर कैसे मातमपुर्सी करती है और सुबह के मुहाने पर कैसे ओस सी खिलती है इसका बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है।

"तेरी तस्वीर " , "तेरा नाम " , " पीले फूल " " द्वार नहीं खटखटाती हूँ " सभी कवितायेँ प्रेम के विभिन्न आयामों से गुजरती एक प्रेमिका के समर्पण और प्रेम का आख्यान है जहाँ वो खुद को हर पल जी रही है प्रेम के घूँट भर भर पी रही है मगर फिर भी ना तृप्त हो रही है।

आगे में पकाते पकाते मुझे /उसके हाथ भी जले /मैं तपी पर सोना न बन सकी / रख बन गयी / एक चिंगारी आज भी सुलगा करती है मुझ में कहीं / और वक्त का खेल देखो / आज कोई मुझे कुम्हार / और खुद को कच्ची मिटटी कह गया / और मैंने झट रख में अपने हाथों कि हड्डियां छुपा ली……………… "कच्ची मिटटी " कविता जैसा चाहे ढाल लो के भाव को पुख्ता करती है तो साथ में कहती है अपना बना लो या मुझे मुझसे जुदा कर दो , हूँ तुम्हारा ही हिस्सा बस तुम एक नेक दुआ तो करो।

"नागराज " कविता प्रेम का डंक जिसे लगा बस वो ही तो जी उठा के भाव को मुखरित करती प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती है तो " क़त्ल " में तो जैसे रूह के कत्लेआम पर रूह भी कसमसाती है।

संवेदनशील मन प्रहार करता है "सुनो ! लड़कों " कविता के माध्यम से आज दिए जाने वाले संस्कारों पर जो उसी तरह बोने जरूरी हैं जैसे एक लड़की में रोपित किये जाते हैं।
कुछ कड़वी लगी न / हाँ ऐसी ही हूँ मैं / ज्यादा कड़वी /ज्यादा सच्ची /ज्यादा नशीली /
वैधानिक चेतावनी : सिगरेट पीना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है
"सिगरेट सी हूँ मैं " कविता में स्त्री के मनोभावों को प्रस्तुत करती कवयित्री ज़िन्दगी की तल्खियों को भी उतार देती हैं।

बोधि प्रकाशन से प्रकाशित कविता संग्रह प्रेम की दुनिया का भ्रमण तो कराता ही है साथ में मन को भी भ्रमर सा बहा ले जाता है जो हर कविता पर पीहू पीहू सा पुकार लगाता है। मन के तारों पर प्रेम की सरगम जब गुनगुनाती है तब मधुर संगीत उपजता है जिसमे डूबे रहने को जी चाहता है। बस यही तो हैं " तेरे नाम के पीले फूल " जो सहेजे हैं कवयित्री ने जाने किन किन गलियों से गुजरते हुए , किन किन पड़ावों पर ठहरते हुए क्योंकि मोहब्बत के शाहकार यूं ही नहीं बना करते जब तक इश्क के चिनार नहीं खिला करते।

नीलम और बोधि प्रकाशन को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए यही कहूँगी कि ७० रूपये बेशक किताब की कीमत हो मगर कवयित्री के भाव अनमोल हैं जिन्हे जब पाठक पढ़ेगा और उनसे गुजरेगा तभी समझेगा और ऐसे भावों को पढ़ने और उसमे डूबने के लिए ये कीमत कोई ज्यादा नहीं।

तो दोस्तों यदि आप इस संग्रह को पढ़ने की इच्छा रखते हों तो बोधि प्रकाशन या नीलम मेंदीरत्ता से संपर्क कर सकते हैं :

ईमेल :neelammadiratta@gmail.com

बोधि प्रकाशन
दूरभाष : ०१४१-२५०३९८९। ९८२९०-१८०८७

ईमेल: bodhiprakashan@gmail.com
 

1 comments:

  1. फ़रगुदिया पर स्थान देने के लिये आभार शोभा जी

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