Saturday, May 31, 2014

माया एंजेलो की कविताये

कुछ गुणी लोग चुपचाप भीड़ से अलग अपनी रचनात्मकता को जीते रहतें हैं, वो किसी तरह की प्रतिस्प्रधा की दौड़ में शामिल नहीं होते लेकिन पारखी नज़रों से ज्यादा देर दूर भी नहीं रह पाते ! लेखिका,गृहिणी,समाजसेविका विजय पुष्पम  पाठक जी  ऐसे ही प्रतिभावान व्यक्तियों में से एक हैं ! साहित्यिक पृष्ठभूमि में पली - बढ़ी साहित्यकार आदरणीय  श्री विनोद शंकर मिश्रा जी की पुत्री को लेखन विधा विरासत के रूप में मिली हैं ! गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में वो सार्थक और मौलिक लेखन कर रही हैं ! लेखिका होने के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने में विशेष रूचि रखती हैं और समय-समय पर विदेशी कवयित्रियों की कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी करती रहती हैं ! 
कथादेश व विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विजय दीदी की रचनाएँ प्रकाशित हुई है !
बहुआयामी, विलक्षण  प्रतिभा की धनी अमेरिकन लेखिका माया एंजेलो अब हमारे बीच नहीं रही ! विजय दीदी ने उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद किया है ! उन्हें याद करते हुए श्रृद्धांजलि स्वरुप एक कविता के माध्यम से उनके प्रति अपने भाव व्यक्त किये हैं ! विजय दीदी और फरगुदिया परिवार की तरफ से महान लेखिका माया एंजेलो को भावभीनी श्रद्धांजलि ! 








श्रद्धांजलि 
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पिंजरे में कैद पंछी गाता है चहचहाता है 
और एक दिन तोड़ कर पिंजरा उड़ जाता है 
सारे दुःख 
सारी घुटन 
सारे जख्म 
छूट जाते हैं पीछे 
एक काली चिड़िया
जो गाती है
शोर मचाती है
अपने ..और दूसरों के हक के लिए
जिसे पता है उसकी खूबियाँ
जो चकित नही होती
अनजान निगाहों में अपने लिए प्रशंसा भाव देखकर
जो व्यक्त कर देती ही खुद को इमानदारी के साथ
जिसे अनुभूति होती है दुसरे की पीड़ा की
एक लंबे संघर्षमय जीवन को
प्रसन्नता पूर्वक अपने तरीके से जीती हुई
विलीन हो जाती है निस्सीम आकाश में
एक लंबी उड़ान पर
फिर से अगन पांखी की तरह उग आने के लिए
खुद्द की ही राख से
नमन माया अन्गेलू ....
तुम मेरे मन में हो
मेरी सोच में हो
मेरी आत्मा में हो
कैसे मान लूं
कि तुम नहीं हो अब इस नश्वर संसार में
तुम सांस लेती रहोगी
तमाम औरतों के अंतस में
उनके संघर्षों में जीवित रहोगी तुम
उनकी अभिव्यक्ति का पर्याय बनकर ...विजय

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1-

हां ,अभी भी बढती जाती हूँ मैं 
भले ही लिख दो मुझे इतिहास में सबसे नीचे 
अपने कड़वे और तोड़े मरोड़े झूठ के साथ
चाहे धकेल दो मुझे कितनी भी गंदगी में 
फिर भी धूल की तरह मैं बढ़ती ही जाउंगी !
मेरी जिंदादिली तुम्हे परेशां करती है 
और फिर तुम घिर जाते उदासियों से 
क्योंकि मेरी चाल में धमक होती है
जैसे मैंने पा लिया हो तेल का कोई कुआं ...
बस चाँद और सूरज के जैसे 
ज्वार -  भाटा आने की निश्चिन्तता के साथ

जैसे मेरी आशाएं मार रही हों उछाल 
अभी भी बढ़ती जाती हूँ मैं !!!

तुम मुझे टूटा हुआ देखना चाहते थे 
झुके सर और नीची आँखों के साथ 
आत्मिक क्रंदन से कमजोर हो 
आंसुओं की तरह नीचे ढलके हुए कन्धों को 
मेरा अभिमान अपमानित करता है तुम्हे 
बहुत खराब लगता है ना तुम्हे ...
क्योंकि मैं हँसती हूँ 
जैसे पीछे घर के आँगन में 
मिल गयी हो कोई सोने कि खदान ....
तुम अपने शब्दों की गोलियाँ चला सकते हो मुझपर 
अपनी आँखों से ही टुकड़ा -टुकड़ा कर सकते हो मुझे 
मुझे अपनी घृणा से मार सकते हो तुम 
फिर भी अभी भी हवा की मानिंद बढ़ती जाती हूँ मैं !!

क्या मेरी यौनिकता विचलित करती है तुम्हे !
आश्चर्य चकित करती है तुम्हे !
कि मैं नाचती हूँ इस तरह 
जैसे कि मेरी जांघों के संधि स्थल पर 
मिल गया हो कोई हीरा 
इतिहास की शर्म की झोपडियों के बाहर ....बढती जाती हूँ मैं

दर्द में रोप दिए गए अतीत से ऊपर काला समंदर हूँ मैं 

 अपनी व्यापक और उत्ताल तरंगों के साथ 


 जो हर ज्वार -भाटे के साथ उठता गिरता है 


 आतंक और भय भरी रातें पीछे छोड़ उठती जाती हूँ मैं !! 


उस प्रभात में जो आश्चर्यजनक रूप से शफ्फाक है उठती जाती हूँ मैं !! 


साथ लिए हुए उन उपहारों को जो मिले हैं मुझे


अपने पूर्वजों से मैं हूँ गुलामों की आशा और स्वप्न .. 


मैं उठती जाती हूँ !! 


मैं उठती जाती हूँ !! 


मैं उठती जाती हूँ !! 



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 2-

एक घृणा करने वाला व्यक्ति वही होता है 



जो जलता है  ...ईर्ष्या करता है ...और

अपना सारा समय बिता देता है तुम्हे नीचा दिखाने में
जिससे वो ऊंचा दिख सके

नितान्त ही नकारात्मक सोचा वाले लोग

 जिनको कभी कुछ भी अच्छा नहीं लगता

जब भी तुम बनाते हो अपनी पहचान

आकर्षित करते हो अपनी तरफ

घृणा करने वालों को

तो रहना होगा सचेत तुम्हे

जब भी तुम साझा करो

अपने सपनों और अपनी उपलब्धियों को किसी के साथ

क्योंकि तुम्हारे गिर्द होंगे तमाम ऐसे लोग

जो नहीं देख सकते तुम्हारा भला होते

तुम्हारा औरों की तरह  बनना खतरनाक है

यदि ईश्वर ऐसा चाहता ..तो तुम्हे भी वो सब कुछ देता

जो उसने औरों को दिया है

है ना !

ना ही जान पाओगे तुम कि जो लोगों के पास है

किन माध्यमों से पाया है उन्होंने

मेरी परेशानी ..जो मुझसे घृणा करते है उनसे बस इतनी है

कि वो ...मेरी  गरिमा देखते हैं लेकिन मेरी कहानी नही जानते

यदि यदि बाड़ की दूसरी तरफ घास अधिक हरी है

तो तुम्हे ये आश्वस्त होनी चाहिए  कि उधर

पानी का शुल्क भी अधिक दिया जाता होगा

हमारे बीच घृणा करने वालों की कमी नहीं

कुछ लोग कर सकते हैं तुमसे ईर्ष्या कि

.....भगवान  के साथ तुम्हारा नाता है

....जब तुम्हारे कदम पड़ते हैं तो कमरे में उजास् भर जाता है

.....कि तुम अपना व्यवसाय आरम्भ कर सकते हो

...किसी स्त्री / पुरुष की गलत बातों को इंगित कर

उसपर लगवा सकते हो अंकुश

...कि बिना माँ / बाप दोनों के घर में साथ हुए भी

पाल सकते हो बच्चों को

घृणालु तुम्हारा खुश होना बर्दास्त नहीं कर सकता

तुम्हे सफल होते नहीं देख सकता

ये अधिकाँश वही होते हैं जिन्हें हम अपना समझते हैं

इन मुखौटाधारी घृणालुओं  को कैसे संभाल सकते हो

कुछ यूँ भी कोशिशें करो ....

ये जानकार कि तुम क्या हो .!.

.और तुम्हारे सच्चे दोस्त कौन हैं !

जीवन का उद्देश्य क्या है !

..उद्देश्य का अर्थ एक नौकरी पा लेना नहीं

इसके होते हुए भी तुम अपूर्ण महसूस कर सकते हो ..

उद्देश्य का अर्थ ये स्पष्ट समझ लेना है ...

कि भगवान तुम्हे किस रूप में देखना चाहता है !

तुम्हारा उदेश्य इससे परिभाषित नहीं होता

कि दूसरे क्या सोचते हैं तुम्हारे बारे में

यह याद रखते हुए कि जो कुछ भी  तुम्हारे पास है

वो दैवीय अनुकम्पा है

मानवीय हेर =फेर के हथकंडों से तुमने नहीं प्राप्त किया

पूरा करो अपने स्वप्नों को

सिर्फ एक जिंदगी है तुम्हारे पास जीने को

कि जब तुम्हारा इस धरती को छोड़ने का समय आये

तुम कह सको

''हां ! मैंने जी है अपनी जिंदगी !

पूरा किया है अपने सपनों को

और तैयार हूँ वापस अपने घर जाने को ! ''

जब भगवान भी तुम्हारे साथ हो

तुम कह सकते हो उन घृणालुओं से ..

''मत देखो मेरी तरफ

देखना है तो उसकी तरफ देखो

जो मेरा रखवाला है ! ''


अनुवाद : विजय पुष्पम पाठक



विजय पुष्पम पाठक 

कवयित्री , गृहिणी
अभिरुचियाँ ..पढना, सोशल वर्क ,लिखना,  बागवानी
शिक्षा ..परास्नातक अंग्रेजी साहित्य
वर्तमान स्थान ...लखनऊ  जन्म ..१ मई  १९६७
कथादेश व विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई है

Thursday, May 01, 2014

मैं रोज़ उदित होती हूँ ( माया एंजेलो का विद्रोही जीवन )


"मैं रोज उदित होती हूँ"
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एफ्रो -अमेरिकी लेखिका माया एंजेलो के जीवन पर विपिन चौधरी द्वारा लिखी किताब हाल ही में दखल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है | माया एंजेलो के संघर्षमय जीवन से जुड़े हर पहलुओं को संकलित कर विपिन ने हिंदी पाठकों को एक नायाब तोहफा दिया है |

किताब के कुछ रोचक अंश और किताब पर लिखी प्रसिद्द कवयित्री डॉ सविता सिंह जी की भूमिका आप सब फरगुदिया पर पढ़ सकतें हैं | लेखिका विपिन चौधरी को बहुत बधाई के साथ उनका पुनः स्वागत है फरगुदिया पर ...!


मैं रोज़ उदित होती हूँ

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माया एंजेलो के जीवन पर एकाग्र किताब ' मैं उदित होती हूँ' के तीन अलग-अलग अध्यायों के कुछ अंश


1.

बच्ची माया खुद नक्सली भेदभाव के अनुभवों से दो-चार होने के बाद बुरी तरह हिल गयी. वह यह समझने की कोशिश करती रही कि अश्वेत होना इतना कष्टदायक क्यों है. एक बार माया के दांत- दर्द के इलाज़ करने से श्वेत डाक्टर ने यह कह कर साफ़ मना कर दिया कि मैं अश्वेत लोगों का इलाज़ नहीं करता. इस घटना ने माया एंजेलो के कोमल मस्तिष्क पर बुरी तरह से प्रहार किया. इन घटनाओं से माया और भी उदास और गम्भीर होती चली गयी.

2 .


जिस घड़ी माया ने अपने गर्भधारण के भेद को अपनी माँ और सौतले पिता के सामने खोला तो उन दोनों में से किसी ने कोई हंगामा नहीं किया. बल्कि दोनों ने माया को जीवन के इस नए पड़ाव के लिए हिम्मत बंधाई। माया को उनके आश्वासन से बहुत बल मिला और उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि इस बच्चे के जन्म के बाद का सफर वह अपने बूते ही तय करेंगी. माया एंजेलो के जीवन की यह ऐसी घटना थी जिस का असर उनकी पूरी जिंदगी पर पड़ना था. इस घटना के असर से उनका पूरा का पूरा जीवन प्रभावित हुआ भी और उनमें अपने जीवन की डोर स्वयं थामने की हिम्मत भी आती चली गयी.

3.

वर्ष १९६९ का वह दिन माया एंजेलो के जीवन में अद्भुत मोड़ ले कर आया था जब एक डिनर पार्टी में माया एंजेलो के करीबी लेखक दोस्त जेम्स बाल्डविन, कार्टूनिस्ट ‘जूल्स फेइफ्फेर’ और उनकी पत्नी, प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान ‘रेण्डम हाउस’ के मालिक रोबर्ट लूमिस एकत्रित थे. पार्टी पूरी तरह अपने लय में डूबी हुयी थी, खाना-पीना और बातचीत का दौर एक साथ चल रहा था. तब रेंडम हाउस के सर्वेसर्वा मिस्टर रोबर्ट ने माया एंजेलो के जीवन की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया,माया को मिस्टर रोबर्ट का यह सुझाव बेहद पसंद आया और उन्होंने तुरंत ही इसके दूरगामी परिणामों पर ध्यान देते हुए अपनी सहज स्वीकृति दे दी. तब माया ने मन ही मन अपने भूतकाल की अनगिनत कतरनों को बारहाँ याद किया और निश्चय किया कि उन्हें अपने जीवन को कागज़ पर जरूर दर्ज़ करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी एक अश्वेत स्त्री के जीवन की विषम परिस्तिथियों को जान सके. अपने जीवन के गुजरे हुए घटनाक्रमों को वर्तमान में बटोर कर, उन्हें माया कागज़ के पन्नों पर उकेरने लगी. निसंदेह, आत्मकथा लेखन का यह काम अतीत की गहरी, काली और तकलीफ़देह गुफा में गुजरने जैसा था. लेकिन माया एक अद्भुत स्मरणशक्ति और जिजीविषा की मालकिन थी जो किसी चीज़ को एक बार ठान लेने के बाद कभी पीछे नहीं हटती थी. एकाग्रचित होकर माया ने अपनी आत्मकथा लिखी और १९६९ में माया एंजेलो की पहली आत्मकथा (आई नौ व्हाय द केज्ड बर्ड सिंग्स) प्रकाशित हुई. इस आत्मकथा के प्रकाश में आते ही माया एंजेलो की ख्याति रातों-रात न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय कोनों में भी फ़ैल गयी. इस प्रचंड ख्याति से मिले सकारात्मक उत्साह से माया को अपने आगे लेखन के प्रति आश्वस्ति मिली और उन्होंने एक के बाद एक पाँच आत्मकथाओं की लंबी श्रृंखला लिख डाली.



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        विपिन चौधरी द्वारा माया एंजेलो के जीवन पर लिखीं किताब ( मैं रोज़ उदित होती हूँ ) पर प्रसिद्ध कवयित्री, स्त्रीवादी दार्शनिक, राजनैतिक विशेषज्ञ डॉ सविता सिंह क़ी भूमिका |

   कम ही ऐसे दुख हैं इस संसार में जो स्त्री की पराधीनता के दुख से बड़े हों, परंतु दुख यदि एक अश्वेत स्त्री का हो तो उसका रंग और भी गाढ़ा हो जाता है। माया एंजेलो, जो एक महान अश्वेत कवयित्री के रूप में दुनिया भर में पढ़ी और सराही जाती हैं और जिनका जन्म अमेरिका के नस्ल भेदी समाज में 1924 में हुआ, उनके बारे में जानना अमेरिका में बसे अश्वेत लोगों के इतिहास के बारे में भी जानना है। जब माया एंजेलो अभी बहुत छोटी थी तभी उनके माँ और पिता में तलाक हो गया और वे अपने भाई के साथ अपनी दादी के यहाँ रहने के लिए भेज दी गई। दादी रोज़मर्रा की ज़रूरी चीजों की दुकान चलती थी, जिसमें दोनों भाई-बहन उनकी मदद करने लगे. अपनी त्वचा के काले रंग के कारण वहाँ भी स्थितियाँ दुखदाई ही रहीं खासकर छोटी माया को दादी का अपमान बेहद खलता। सात साल की उम्र में माया जब अपनी माँ से मिलने गई तब वे अपने नए प्रेमी के साथ रह रही थीं, उस वक़्त माँ के प्रेमी ने माया का बलात्कार किया। पीड़ा की असंख्य वेदना ने इस छोटी बच्ची को इतना आघात पहुंचाया की वह सालों गुमसुम रही। बाद में माया अपनी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा का इस्तेमाल करती हुयी पढ़ाई-लिखाई में जुट गईं और शेक्सपीयर से लेकर स्पेन्सर, चार्ल्स डिकिन्स तक पढ़ डाला। साहित्य ने उनके सम्मुख एक दूसरी दुनिया का पट खोला। बाद में माया के प्रिय कवि लारेंस पॉल डेनेबर, उनकी कविताओं की दुनिया में शब्दों का नया पराग लेकर आये और कुछ ज्यादा ही विशिष्ट फूलों का खिलना संभव हो सका जिसका परिणाम था माया द्वारा दर्जन भर से ज्यादा कविता संग्रहों का लिखना । हार्लेम लेखक संघ से जुड़ी माया एंजेलो लगातार सिविल राइट्स का हिस्सा बनी रही। मार्टिन लूथर किंग और मैलकॉम एक्स के साथ जुड़ी, दुनिया भर में जहां कहीं उन्हें मौका मिला काम करने गयी। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा घाना में भी बीता जहां वे अपने एकलौते बेटे को लेकर गयी और उसे वहीं शिक्षित करने का मन बनाया। माया एंजेलो थियेटर से लेकर न्रत्य में भी इसी गंभीरता से जुड़ी रही। उन्होनें कवितायें भी खूब लिखीं. जो सबसे महत्वपूर्ण काम उन्होनें किया वह अपनी आत्मकथा का पाँच खंडों में लेखन, ये आत्म कथाएँ जैसे माया एंजेलो के जीवन का सत्य और इतिहास हो, समय जैसे माया एंजेलो ही जिसने एक ऐसा जीवन जिया जिसमें पीड़ा, संघर्ष और कवितायें एक दूसरे में मिल गयी थी। कविता का एक जीवन अश्वेत स्त्री का परिश्रम, संताप और नक्सली भेदभाव और उस समय में जी रहे, काम कर रहे दूसरे महान अश्वेत लोगों का संघर्ष सब माया की आत्मकथाओं में जगह पाते हैं। माया एंजेलो का जीवन यह भी समझाता है कि सामान्य जीवन की कितनी भी समृद्धियाँ और स्वतंत्रतायेँ कितने ही दूसरे लोगों की दस्ताओं और खून-पसीने से उपजाई गयी हैं। विपिन चौधरी द्वारा माया एंजेलो पर लिखी गयी यह किताब “ मैं रोज़ उदित होती हूँ” बड़े ही यत्न और प्रखरता से लिखी गयी है। हिन्दी पाठकों के लिए यह पुस्तक एक अभूतपूर्व प्रस्तुति है, जिसमें माया के जीवन और उनके संघर्षों को विपिन ने एक स्त्री की निगाह से देखने और समझने की कोशिश की है। उम्मीद करती हूँ कि हिंदी के पाठकों की इसे स्वीकृति मिलेगी और माया का जीवन उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा.

- सविता सिंह





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        बीसवीं सदी  की  सबसे प्रभावशाली अफ्रीकी -अमेरिकी व्यक्तित्वों में से एक  माया एंजेलो,  ने अपने  जीवन  और लेखन से सम्पूर्ण संसार पर एक छाप छोड़ी.  1969  में प्रकाशित  माया एंजेलो  की पहली आत्मकथा, आई क्नो  व्हाई दा केडङ  बर्ड सिंग्स ' अश्वेत समाज के किये यह एक जरुरी किताब आंकी गयी और नामचीन लोगों द्वारा इसकी ताक़ीदगी  की गयी कि सभी जागरूक लोग इसे पढ़ें और खासकर युवतियों को तो इस पुस्तक को  अवश्य ही पढ़ना चाहिए. 1970 में  रैंडम हाउस से प्रकाशित  माया एंजेलो द्वारा लिखित इस  प्रथम आत्मकथा संग्रह  को  राष्ट्रीय अवार्ड से नवाज़ा गया.  द न्यूयॉर्क टाइम्स,  पेपरबैक  नॉन फिक्शन  लिस्ट में  माया एंजेलो की  आत्मकथा  लगातार दो साल तक  बेस्ट सेलर लिस्ट में शामिल की गयी. यह किताब दरअसल  किसी रोमांटिक शिल्प की कारीगरी नहीं था, यह एक स्त्री का जीवन-दर्शन था जो माया एंजेलो  ने स्वयं जीया था  उस वक़्त  जब अश्वेत लोगों  के लिए उन्नति के सभी दरवाज़े, खिड़कियां और रोशनदान  बंद थे.    
उसी अश्वेत समाज में से निकलकर माया एंजेलो अमेरिका  के बौद्धिक समाज में  एक नयी  तरह की  नायिका के रूप में  अस्तित्व में आयी  जो अपने निजी  जीवन को सार्वजनिक करने का  हौंसला रखती थी, जिसने अपने अश्वेत और  एक स्त्री होने का दर्द एक साथ सहा. माया एंजेलो के इस प्रथम आत्मकथा संग्रहकी ऑडियो बुक, ई-बुक के द्वारा पूरे  विश्व में पढ़ी जा रही है. माया एंजेलो की आत्मकथाओ का संसार की कई भाषाओँ में अनुवाद उपलब्ध है.  दुनिया भर ने माया की जीवन-गाथा को  उनकी आत्मकथाओं द्वारा जाना। माया एंजेलो के जीवन में कई  सूत्र  छिपें हैं  जिसमे  स्त्री- जीवन की  सफल- कहानियां दर्ज हैं.  माया एंजेलो  अपने  जीवन की सभी  गलतियों को स्वीकारती है  उन्हें  अपने बगल  में बैठे पुरुष पर  नहीं  धकेल देती.  स्त्री  सशक्तिकरण का  सटीक मुहावरा  माया  एंजेलो  के यहाँ फलित  होता दिखता है.  
माया  एंजेलो ने अपने जीवन में  कई  व्यवसाय  अपनाये  और जम कर काम किया अपने जीवन के सभी  गुण -दोष  को शालीनता से स्वीकार  किया.  
लेखन  के  अलावा, फिल्मों, गीत संगीत, थिएटर  में  माया  एंजेलो ने  खूब काम किया और  इन सभी अभिव्यक्तियों में शामिल होने के परिणामस्वरूप वे  हरफनमौला  व्यक्तित्व बन कर  दुनिया ने सामने आयी.   उनके  व्यक्तित्व के तमाम पक्षों को  लेकर और  उनसे जमे  तामाम पहलू  इस किताब में समेटने की कोशिश की  गयी है , साथ ही उनके  सामाजिक, पारिवारिक  और राजनैतिक सम्बन्ध, उनके द्वारा की गयी देश-विदेश की यात्राएं  और उनके जीवन को घना करने वाले अनेकों प्रसंगों  को  शामिल  करने की कोशिश के परिणाम  स्वरुप माया एंजेलो की यह किताब  लिखनेकी कोशिश की गयी है. माया  एंजेलो की पाक - विद्या की एक विहंगम झलक से पाठकों को रुबरु  करवाने  की कोशिश करते  हुए  एक अध्याय  शामिल किया है.  कविताओं के लिए अलग अध्याय के साथ माया के बाल लेखन  पर भी कुछ लिखने का प्रयास किया गया है,  कुल मिला कर  एक जीवन में कई  जीवन को एक साथ जीने  वाली  प्रसिद्ध  लेखिका को समझने   के क्रम में यह किताब  अस्तित्व में आयी है.  
माया एंजे लो को पढ़ते हुए  उन से सम्बंधित कई चीजें सामने आयी. उन पर  काम करने  के दौरान सबसे बड़ी चुनौती तो  यही थी  कि माया एंजेलो  का  जीवन  और उनकी लिखी आत्मकथाऑ  के बीच  दोहराव न हो  और  यह किताब एक स्त्री की पीड़ा  रुदन न बन कर  रह जाए  बल्कि  जिस तरह  बुलंदी से माया ने  पीड़ा  को  बुनते  हुए अपनी उँगलियाँ मजबूत की उसी तरह एक सशक्त  पुस्तक  हिंदी पाठकों के लिए  तैयार हो सके.  
आशा है जो  पाठक माया एंजेलो  के जीवन के पहलुओं  से रुबरु हो चुके हैं  वे  इसे  दुबारा पढ़ कर  लाभान्वित होंगे  और  नए  पाठक सम्भवतः  माया  एंजेलो  के जीवन  से गुजरते हुए  उस समय  के वातावरण  और स्त्री  के जीवन की  दास्तान  से परिचित  होंगे.   
हिंदी के अलावा  दूसरी हिंदीतर  भाषाओँ में  स्त्री आत्मकथा  लेखन  काफी पहले से  परिपक्व था.  पर  स्त्री का  जीवन  तमाम आधुनिकता के बावजूद  कुछ कदम ही आगे बढ़ सका था.     
1876  में  बंगाली  स्त्री  सरबाशी घोष  द्वारा लिखी गयी जीवनी "बर्ड्स इन अ केज'  से लेकर 1968 में  माया एंजेलो की  आत्मकथा  से लेकर  आज  तक स्त्री के लिए कमोबेश स्तिथियाँ काफी जटिल रही हैं और समय के साथ और जटिल होती जा रही हैं. सामाजिक सरंचना के बदलाव  में  टूट फूट हो रही है उसका खामियाजा स्त्री को ही भुगतना पड़  रहा है.   एक अश्वेत स्त्री के तौर पर जब माया अपने संघर्षों को  लिखती  हैं तो  वह अपने साथ  उन तमाम स्त्रियों  की  दास्तान के कुछ  अशं  अपनी  आत्मकथा में  अन्यास ही ले  आती हैं  जो  उनके समय में अपने जीवन की दुविधाओं से साक्षात्कार कर रही थी.   माया  एंजेलो  का पूरा जीवन  ही  दरअसल  एक दस्तावेज़ है |


- विपिन चौधरी





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