Monday, July 30, 2012

चेतना की "मशाल" रोशन करती चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ

एम.फिल (हिंदी साहित्य), विशारद (कथक)
पाँच कहानी संग्रह (बौनी होती परछाई, कठपुतलियाँ,
कुछ भी तो रूमानी नहीं,केयर ऑफ़ स्वात घाटी, (गंधर्व-गाथा)
दो उपन्यास  (शिगाफ़, शालभंजिका )

अनुवाद - 'माया एँजलू की आत्मकथा' वाय केज्ड बर्ड सिंग' के अंश,
लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास 'हाउस मेड ऑफ़ डान' के अंश , बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद


पुरस्कार व सम्मान: चंद्रदेव शर्मा पुरस्कार - 1989 (राजस्थान साहित्य अकादमी ),
कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप -२००७, डॉ घासीराम वर्मा सम्मान -2009 ,
रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष -2010 (राजस्थान साहित्य अकादमी) , कृष्ण प्रताप कथा सम्मान- 2012


शिगाफ़' का हायडलबर्ग (जर्मनी) के साउथ एशियन मॉडर्न लेंग्वेजेज़ सेंटर में वाचन
स्वतंत्र लेखन और हिंदी वेबपत्रिका 'हिंदीनेस्ट' का दस वर्षों से संपादन . 






चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने गुवाहाटी प्रकरण को तालिबानी करतूत करार दिया और अपनी नाच गाने को पेशा मानने वाली जाति की महिलाओं की एक कहानी " रक्स की घाटी और शब-ए-फ़ितना"       के कुछ मार्मिक अंश सुनाए जिसके माध्यम से स्त्री की दुर्दशा की एक और तस्वीर सामने आई .....





" रक्स की घाटी और शब-ए-फ़ितना" 

और अब कोई उम्मीद नहीं बाकी.....

एक दिन यूँ हुआ ‘एफ एम’ पर तीन चोरी से नाच देखने वालों और दो साज़िन्दों को सरेशाम चौक में कोड़े मारने का ऎलान हुआ और शहर के सब वाशिन्दों को तमाशा देखने बुलाया गया.
उस तारीख को आधी रात बरबाद और टूटी हवेली का “ख़ारा कुआँ” गूँज गया और एक जामुनी किरण पानी में से निकली और अँधेरे में लहर बनाती सारी हवेली में फैल गयी, जैसे किसी ने रात में आतिशबाज़ी चलायी हो। चमकते हुए पानी पे एक अक्स औंधा तैर रहा था।
'गुलवाशा!

शोरे शुदबाजखुबाबे अदम चश्म कुशुदेम,
दी देम के बाकीस्त शबे फितना गुनुदेम।
(दुनिया के शोर ने मुझे जन्नत के ख़्वाब से जगा दिया और मैं इस दुनिया में आ गया लेकिन यहां का हँगामा देखकर मैंने फिर आँखें बन्द कर लीं और मौत की पनाह ली।)

क्या अब भी लुबना कहती है - "मेरा दिल कहता है कि बेहतर समय आएगा और मैं उम्मीद करती हूँ कि तब तक मैं तो जीवित रहूँगी."

0000000000

ग़ज़ाला ने एक ख़त में लुबना को लिखा, वह ख़त बिना पते के कहीं न पहुँच सका.

अम्मा पगलाई सी छाती धुनती हैं, जब लोगों को अपने खच्चरों पर सामान लादे, बिना मुड़े मैदानी शहर की तरफ जाते देखती है. मुझसे कहती हैं, मैं बस करूँ, स्कार्फ से मुँह ढक लूँ. किसी भले, अमीर अधेड़ से शादी कर लूँ, लड़कियों को किताब पढ़ाना और खुद कंप्यूटर पढ़ना बन्द कर दूँ?”
“ क्या तुम्हें अब भी मानना चाहिए इस कानून को जो ईश्वर के नाम से हर धर्म में औरतों के लिए अलग से बनाया जाता रहा है.” मेरा कम्प्यूटर टीचर मुझसे पूछता है.

“हाँ क्यों नहीं, मेरा भी एतकाद है, इस ईश्वर में और उसके बनाए कानून में, अम्मी और गुलवाशा की तरह ही, लेकिन क्या करूँ कि पिछले कई दिनों से मेरे कान रोते बच्चों और माँओं की कराहों को सुन रहे हैं. मैं अपने घर, तबके और आने वाले वक्त में अमन की पूरी तबाही देख पा रही हूँ. “

“तुमने कभी सोचा है? स्कूल जाती लड़कियों को कोई कैसे जला सकता है? नाचना – गाना धर्म के खिलाफ कैसे हो सकता है?” वह फिर पूछता है. मैं क्या जवाब दूँ? औरतों और बच्चियों को फुसफुसा कर पढ़ाते हुए मैं थक गई हूँ...उन्हें क्या - क्या नहीं समझाती, यह मजहबी कानून और इसका सही मतलब मगर सुनने वालियों के कान बहरे हैं और आँखें उजाड़, ज़बानें उमेठ दी गई हैं....मेरी भी हिम्मत टूट रही है अब.

“मुझे उम्मीद है – क्या तुम्हें है कि एक दिन ये कान देखेंगें और आँखें सुनेंगी. ज़बानों की उमेंठनें खुल जाएंगी.” कहते हुए, कभी कभी मेरा टीचर अपनी बैसाखी खिड़की से टिका कर, मुझे थाम कर मेरा माथा चूमता है. उस रात मैं सपना देखती हूँ, न केवल हम तीनों बहनों के होंठ, न केवल संगीत गली की हर लड़की बल्कि रक्स की घाटी की हर औरत के होंठ बैंगनी से फिर गुलाबी हो गए हैं और सेब के पेड़ों के बीच, हरे कच पत्तों में झुण्ड – के झुण्ड अब्बा की कोई रोमांटिक बंदिश गुनगुना रहे हैं. टहनियाँ रबाब की तरह बज रही हैं.

Sunday, July 29, 2012

चेतना की 'मशाल' रोशन करती वंदना शर्मा



वंदना शर्मा:-


अपने बयान की तीव्रता.अनुभूति की गहराई भाषा की प्रखरता ,शिल्प और अपने तेवर के साथ वंदना शर्मा की कवितायें हाल के स्त्री-लेखन की प्रमुख उपलब्धि है। उनका लेखन लेखन कम आह्वान ज्यादा है जिसमें स्थापित मूल्यों , स्थापनाओं के विरुद्ध प्रतीकार अधिक है । उनकी कवितायें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं।


मेरठ विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापिका , कवयित्री वंदना शर्मा जी ने 'मशाल' कार्यक्रम मेंअपने प्रभावशाली वक्तव्य में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए महिलाओं को स्वयं आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया. आस-पास मौजूद लोग ऐसे अपराधों के खिलाफ अपने स्तर तुरंत कार्यवाही करें तो निश्चित रूप से दोषियों के मन में भय पैदा होगा जैसे सार्थक सुझाव के साथ वंदना जी ने अपनी कविता 'बलात्कार' का पाठ भी किया |
बलात्कार
___________

यहाँ गढ़ी हुई है नसीबन की ढाई साला बदनसीब मादा लाश
यहाँ झाड़ियों में क्षत विक्षत शोध छात्रा सुब्बालक्ष्मी
ट्रेन से धकियाई,फटे कपड़ों, टूटे पैरों वाली यह है मरियम
और वह बेनाम पगली बढे पेट वाली पड़ी है
घोषित हो चुकीं हैं छूत के रोग सी
गर्म तवे पर जल की बूँद सी ये औरते ....

उलटे हो चुके हैं,सधे सीधे पाँव
इनकी बात करना शर्म की है बात
मुँह छुपातें हैं शब्द
घुटनों तक उतर आते हैं चेहरे
खा जाती हैं इनकी शिनाख्तें
नदी नाले नहरें ......

इन पर यूँ खुलेआम नही बोला जाता
इनके जिक्र अहिल्या हो जातें हैं
इनके लिए कोई राम नही आता
बच्चों की किताबों और भगवान् जी के आलों से दूर
रख दिए जाते हैं वे अखबार जिनमे इनकी ख़बरें हों ...
चोर द्रष्टि से पलटने पड़ते हैं पन्ने, बदलने पड़ते हैं चैनल
छोटी या बड़ी जैसी भी हों इनके खत्म हो जाने के लिए औरत होना काफी था
और खत्म कर डालने के लिए बहुत, पंजों का मर्दाना होना .....

जिनकी लाशों से आँखें भी आँख चुरातीं हों
उनके जाने से कहीं कुछ भी तो नही बदला...
वे कभी थीं ही नही इस कोशिश में निषेध हो गये उनके नाम
रिक्त स्थान पाट दिए गये तुरत फुरत
जैसे ढांप दीं जातीं हैं लाइलाज बीमारियाँ
जैसे छुपाई जातीं हैं फटीं उधड़ी सीवनें
जैसे फाड़ दिए जातें गलत नाम वाले चैक...
यातनाशिविरों के आस पास से गुजरते रहे राजमहिषियों और राजपुत्रों के लश्कर
भौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..

और उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र
बहुत बुरी बातों की तरह याद रह जाएँ शायद इन औरतों की हत्याएं
उधार की आग से नही सुलगीं गीली लकडियाँ
धू धू कर जलतीं रहीं निष्पाप पुआलें !!!!

Thursday, July 26, 2012

"Fargudiya Mashaal" event

http://www.facebook.com/events/454189434606327/


मित्रों,
''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'' की अवधारणा वाले इस देश में नारियों के प्रति जिस प्रकार दिनोंदिन हिंसक और अश्लील वारदातें बढ़ रही हैं वह बेहद चिंतनीय बात है, आज स्त्री अस्मिता की यहाँ वहां जिस तरह भरे बाज़ार बेखौफ धज्जियां उड़ाईं जा रही हैं उसे देख... कर... किसी भी सच्चे भारतीय का सर शर्म में झुक ही जाएगा, इन जघन्य कांडों से गाँव, कस्बे, नगर, महानगर तो क्या राजधानी दिल्ली तक भी बची नही है, जिन्हें आकड़ों में बात सुनने की आदत हो उन्हें भी विदित हो कि देश भर में (गत वर्ष) 'इक्कीस हज़ार बलात्कार' के केस पुलिस थानों में दर्ज हुए और 'छतीस हज़ार पांच सौ छेड़छाड़' के मुक़दमे दर्ज किये गये ..आप समझ ही गये होंगे कि यह संख्या वास्तविक रूप में कितनी भयावह होगी..सामाजिक संकोच वश कितने ही परिवारी अपमानो के घूँट पीकर घरों में बैठ जाते हैं ..दिन प्रतिदिन ये दुर्घटनाएं बढती ही जा रही हैं. अपने समानता के अधिकार ,नागरिक सम्मान और सुरक्षा के लिए आप सब विमर्श के लिए आमंत्रित हैं. कविवर दिनकर कह भी गये हैं -

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध ..



स्थान - इण्डिया गेट , दिल्ली
दिनांक -२३-०७-२०१२
समय -अपराह्न -०५ :००
निवेदन - १-शोभा मिश्रा २-वंदना शर्मा ३ -आशुतोष कुमार ४- अंजू शर्मा ५-अपर्णा मनोज
*विशेष सूचना :: स्थान परिवर्तन किया गया है. अब जंतर-मंतर की जगह ये इण्डिया गेट है.

विमर्श के लिए आप सभी के साथ हिंदी के समकालीन कवि -कवयित्रियाँ अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे.

आमंत्रित कवि ::
अशोक वाजपेयी
अनामिका
सुमन केसरी अग्रवाल
अरुण देव
मनीषा कुलश्रेष्ठ
वंदना शर्मा
हिमांशु कुमार
अंजू शर्मा
उमा गुप्ता
कविता कृष्णन
भरत तिवारी
अपर्णा मनोज

Friends,

Yatra naaryastu pujyante ramante tatra devataah
“Where women are revered, there the Gods happily stay! “it is very disturbing when we see that the country where such was the level women were placed; is now seeing a tremendous increase in vulgar and heinous incidence on women. The way women's identity has been blown apart and even brazen is something that can hang any true Indian’s head in shame
No place is spared from be it the villages, towns, cites or the National Capital; for those who want the statistics can note that last year the 21,000 cases of rape and 36,000 case of eve teasing were registered in police stations. And this indicates the how scary must be the actual number of these incidents. Social inhibition won’t let many families to report such cases; can you imagine the pain that such families must be going through.
You as a responsible citizen are invited to discuss their right to equality, dignity and security.
Samar shesh hai, Nahin paap ka bhagi keval Vyadh …
(Not just criminal is responsible for crime. Time will speak for truth.)
Jo tatsath hain, Samay likhega unka bhi Apradh …
(Whoever is neutral, Time will decide his/her fate and role in Crime.)
- Ramdhari Singh “Dinkar”

Location - India Gate, New Delhi
Date -23-07-2012
Time - 5:00 PM
Request - 1 - Shobha Mishra 2 - Vandana Sharma 3 - Ashutosh Kumar 4 - Anju Sharma 5 - Aparna Manoj 6 - Advisor: Bharat Tiwari

*Special Information:: location has been changed from Jantar Mantar to India Gate.

To discuss these issues we will have the contemporary Hindi poets and poetess with us.
Invited poets:
Ashok Vajpeyi
Anamika
Suman Kesari Agarwal
Arun Dev
Manisha Kulshrestha
Vandana Sharma
Himanshu Kumar
Anju Sharma
Uma Gupta
Kavita Krishnan
Bharat Tiwari
Aparna Manoj

Friday, July 20, 2012

मनीषा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह और उपन्यास




मनीषा कुलश्रेष्ठ का उपन्यास

Monday, July 16, 2012

महिला मुद्दे और ब्लॉग


महिलाओं को ध्यान में रखते हए लिखने वालों कि संख्या अनगिनत है.घर-परिवार को सम्भालते हए भी अपनी मौजूदगी से सबको सम्मोहित करने वाली महिलाओं की तताद लम्बी है.उनमे से कुछ बेहद चर्चित भी है.अभी कुछ दिन पहले ही २७ को ‘फर्गुदिया’ग्रुप के महिलाओं ने कम उम्र में होने वाली शादियों उसके के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने वाली महिलाओं पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया था.यह भी एक ब्लॉग है जो महिलाओं के लिए विशेष तौर पर काम करती हैं.इसकी मुखिया शोभा जी कहती हैं—“इंटरनेट से जुड़ा ब्लोगिंग एक ऐसा माध्यम है जिससे हम घर बैठे देश में ही नहीं विदेश में भी पहुंचा सकतें हैं.मेरे जैसी गृहणी ने जब इंटरनेट की दुनिया में कदम रखा तो ब्लॉग के जरिये जहाँ मुझे समाज का प्रगति करता चेहरा नज़र आया वहीँ कुछ ऐसी झकझोर देने वाली बुराइयाँ भी सामने आयीं जिससे मैं अनभिज्ञ थी.
हमारे आस-पास ऐसा बहुत कुछ घटित हो रहा होता है जिसकी जानकारी प्रिंट मिडिया या इलेक्ट्रोनिक मिडिया तक नहीं पहुंचती है,अगर कोई पहुँचाना भी चाहे तो जरुरी नहीं है की अख़बार के संपादक उसे छापें या न्यूज़ चैनल वाले उसे दिखाएँ,इसके लिए उनकी अपनी कुछ शर्तें और नियम होतें हैं ,ऐसे में ब्लॉग एक ऐसा मंच है जिसके माध्यम से हम अपने विचार सभी तक पहुंचाने के लिए स्वतंत्र हैं

मैं स्वयं ब्लॉग के माध्यम से अपने बचपन की एक हृदय विदारक घटना को सबके सामने लाने में सफल रही.ये मेरे गाँव की घटना थी
,वहाँ करीब छब्बीस साल पहले एक गरीब परिवार की अशिक्षित,नाबालिक लड़की का बलात्कार हुआ था,जिससे वो गर्भवती हो गयी,समाज के डर से उसकी अशिक्षित माँ ने उसका गर्भ गिराने के लिए उसे पता नहीं कौन सी दवाई दी...जिससे उसकी दर्दनाक मृत्यु हो गयी.
जिस लड़की के साथ ये घटना घटी उसका नाम 'फर्गुदियाथा,जब उसकी मृत्यु हुई तब उसकी उम्र मात्र चौदह या पंद्रह वर्ष थी.
गर्मी में जब स्कूल की छुट्टिया हुआ करती थी तब मामाजी के घर गाँव जाने पर फर्गुदिया से अक्सर मेरी मुलाकात हुआ करती थी,ऐसे ही एक बार जब मैं गाँव गयी तो फर्गुदिया के साथ घटी घटना और उस घटना से हुई उसकी दर्दनाक मृत्यु के बारे में सुना तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी,उस समय मेरी भी उम्र पंद्रह,सोलह वर्ष की ही थी,तब से लेकर आज तक मैं फर्गुदिया और उसके साथ घटी घटना को बिलकुल भी नहीं भूली हूँ.
करीब दो साल पहले इस घटना को मैंने कहानी का रूप देकर अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया,एक चमत्कारिक परिणाम सामने आया,समाज में हो रहे ऐसे घ्रणित अपराध की शिकार बच्चियों के समर्थन में ब्लॉग और इंटरनेट के माध्यम से विचार आने लगे और ऐसे घ्रणित अपराध की खुले शब्दों में भर्त्सना की गयी.
ब्लॉग के जरिये फर्गुदिया के समर्थन में आवाज़ दूर दूर तक गयी,बाद में मैंने और इंटरनेट से जुड़े मेरे मित्रों ने मिलकर जमीनी स्तर पर फर्गुदिया के लिए कविता पाठ का कार्यक्रम रखकर उसे भावभीनी श्रृद्धांजलि दी.आज फर्गुदिया की दास्तान ब्लॉग के जरिये इंटरनेट की दुनिया के बाहर के लोग भी जान रहें हैं
http://samay-sunitablogspotcom.blogspot.in/?spref=fb

Wednesday, July 04, 2012

"एक शाम फरगुदिया के नाम" काव्य संध्या में रश्मि भारद्वाज द्वारा पढ़ी गई कविता








बिजूका


देह और मन की सीमाओं में

नहीं बंधी होती है गरीब की बेटी....

अपने मन की बारहखड़ी पढ़ना उसे आता ही नहीं

और देह उसकी खरीदी जा सकती है

टिकुली ,लाली ,बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के बदले भी ....


गरीब की बेटी नहीं पायी जाती

किसी कविता या कहानी में

जब आप उसे खोज रहें होंगे

किताबों के पन्नों में ........

वह खड़ी होगी धान के खेत में,टखने भर पानी के बीच

गोबर में सनी बना रही होगी उपले

या किसी अधेड़ मनचले की अश्लील फब्तियों पर ...

सरेआम उसके श्राद्ध का भात खाने की मुक्त उद्घोषणा करती

खिलखिलाती, अपनी बकरियाँ ले गुजर चुकी होगी वहाँ से .....



आप चाहें तो बुला सकते हैं उसे चोर या बेहया

कि दिनदहाड़े , ठीक आपकी नाक के नीचे से

उखाड़ ले जाती है आलू या शक्करकंद आपके खेत के

कब बांध लिए उसने गेहूं की बोरी में से चार मुट्ठी अपने आँचल में

देख ही नहीं सकी आपकी राजमहिषी भी .....


आपकी नजरों में वह हो सकती है दुश्चरित्र भी

कि उसे खूब आता है मालिक के बेटे की नज़रें पढ़ना भी

बीती रात मिली थी उसकी टूटी चूड़ियाँ गन्ने के खेत में ....

यह बात दीगर है कि ऊँची – ऊँची दीवारों से टकराकर

दम तोड़ देती है आवाज़ें आपके घर की

और बचा सके गरीब की बेटी को

नहीं होती ऐसी कोई चारदिवारी ......



गरीब की बेटी नहीं बन पाती

कभी एक अच्छी माँ

कि उसका बच्चा कभी दम तोड़ता है गिरकर गड्ढे में

कभी सड़क पर पड़ा मिलता है लहूलूहान....

ह्रदयहीन इतनी कि भेज सकती है

अपनी नन्ही सी जान को

किसी भी कारखाने या होटल में

चौबीस घंटे की दिहारी पर .......




अच्छी पत्नी भी नहीं होती गरीब की बेटी

कि नहीं दबी होती मंगलसूत्र के बोझ से....

शुक्र बाज़ार में दस रुपए में

मिल जाता है उसका मंगलसूत्र

उसके बक्से में पड़ी अन्य सभी मालाओं की तरह ....




आप सिखा सकते हैं उसे मायने

बड़े-बड़े शब्दों के 

जिनकी आड़ में चलते हैं आपके खेल सारे

लेकिन नहीं सीखेगी वह

कि उसके शब्दकोश में एक ही पन्ना है

जिस पर लिखा है एक ही शब्द

भूख ........

.और जिसका मतलब आप नहीं जानते ....



गरीब की बेटी नहीं जीती

बचपन और जवानी

वह जीती है तो सिर्फ बुढ़ापा

जन्म लेती है , बूढ़ी होती है और मर जाती है

इंसान बनने की बात ही कहाँ ..... !

वह नहीं बन पाती एक पूरी औरत भी ....

दरअसल , वह तो आपके खेत में खड़ी एक बिजूका है

जो आजतक यह समझ ही नहीं पायी




कि उसके वहाँ होने का मकसद क्या है ....( रश्मि भारद्वाज)

Monday, July 02, 2012

"एक शाम फरगुदिया के नाम" काव्य संध्या में रश्मि भारद्वाज द्वारा पढ़ी गई कविता


बिजूका

देह और मन की सीमाओं में
नहीं बंधी होती है गरीब की बेटी....
अपने मन की बारहखड़ी पढ़ना उसे आता ही नहीं
और देह उसकी खरीदी जा सकती है
टिकुली ,लाली ,बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के बदले भी ....

गरीब की बेटी नहीं पायी जाती
किसी कविता या कहानी में
जब आप उसे खोज रहें होंगे
किताबों के पन्नों में ........
वह खड़ी होगी धान के खेत में,टखने भर पानी के बीच
गोबर में सनी बना रही होगी उपले
या किसी अधेड़ मनचले की अश्लील फब्तियों पर ...
सरेआम उसके श्राद्ध का भात खाने की मुक्त उद्घोषणा करती
खिलखिलाती, अपनी बकरियाँ ले गुजर चुकी होगी वहाँ से .....

आप चाहें तो बुला सकते हैं उसे चोर या बेहया
कि दिनदहाड़े , ठीक आपकी नाक के नीचे से
उखाड़ ले जाती है आलू या शक्करकंद आपके खेत के
कब बांध लिए उसने गेहूं की बोरी में से चार मुट्ठी अपने आँचल में
देख ही नहीं सकी आपकी राजमहिषी भी .....

आपकी नजरों में वह हो सकती है दुश्चरित्र भी
कि उसे खूब आता है मालिक के बेटे की नज़रें पढ़ना भी
बीती रात मिली थी उसकी टूटी चूड़ियाँ गन्ने के खेत में ....
यह बात दीगर है कि ऊँची – ऊँची दीवारों से टकराकर
दम तोड़ देती है आवाज़ें आपके घर की
और बचा सके गरीब की बेटी को
नहीं होती ऐसी कोई चारदिवारी ......

गरीब की बेटी नहीं बन पाती
कभी एक अच्छी माँ
कि उसका बच्चा कभी दम तोड़ता है गिरकर गड्ढे में
कभी सड़क पर पड़ा मिलता है लहूलूहान....
ह्रदयहीन इतनी कि भेज सकती है
अपनी नन्ही सी जान को
किसी भी कारखाने या होटल में
चौबीस घंटे की दिहारी पर .......

अच्छी पत्नी भी नहीं होती गरीब की बेटी
कि नहीं दबी होती मंगलसूत्र के बोझ से....
शुक्र बाज़ार में दस रुपए में
मिल जाता है उसका मंगलसूत्र
उसके बक्से में पड़ी अन्य सभी मालाओं की तरह ....

आप सिखा सकते हैं उसे मायने
बड़े-बड़े शब्दों के
जिनकी आड़ में चलते हैं आपके खेल सारे
लेकिन नहीं सीखेगी वह
कि उसके शब्दकोश में एक ही पन्ना है
जिस पर लिखा है एक ही शब्द
भूख ........
.और जिसका मतलब आप नहीं जानते ....

गरीब की बेटी नहीं जीती
बचपन और जवानी
वह जीती है तो सिर्फ बुढ़ापा
जन्म लेती है , बूढ़ी होती है और मर जाती है
इंसान बनने की बात ही कहाँ ..... !
वह नहीं बन पाती एक पूरी औरत भी ....
दरअसल , वह तो आपके खेत में खड़ी एक बिजूका है
जो आजतक यह समझ ही नहीं पायी
कि उसके वहाँ होने का मकसद क्या है ....( रश्मि भारद्वाज)

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