Saturday, February 23, 2013

कहीं कोई नहीं - तरन्नुम रियाज़

 तरन्नुम रियाज़

विख्यात कवयित्री,
 आलोचक, 
उपन्यासकार 







कहीं कोई नहीं  
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ये किसने बोई हैं चिंगारियां तेरी ज़मीनों में
यह किसने आग सी सुलगाई है मासूम सीनों में


कोई वीरान मौसम आ बसा बारह महीनों में
कि जिसे हों न तासीरें ही अब झुकती जबीनों में

किसी ने बागबाँ बन कर जलाया मुर्गज़ारों को
किसी ने सायबान बन कर उजाड़ा है बहारों को

खिजां ने देख डाला घर तिरे सब लालाजारों का
निशात और चश्माशाही,डल ,वुलर का शालीमारों का

तिरे झरनों ,पहाड़ों, नदियों का ,आबशारों का
सुकून के हर खजाने पर है पहरा शाहमारों का

सभी तिरी ज़मीं पर चाहते हैं आसमां अपना
जड़ों पर घुन लगा कर टहनियों पर आसमां अपना

तेरे इन पानियों में ज़हर-ए -कातिल क्यों मिलाया है
तिरे सब गुलशनों को किसने कब्रिस्तां बनाया है

ये बुलबुल के सुरीले गीत को किसने डराया है
धनक रंग आसमां पर ये धुयाँ क्यूं आन छाया है

तिरी अजमत के कायल शाहों की हर याद रोती है
हज़ारों साल की तारीख शर्मिंदा सी होती है

खुदाई ने किसी इन्साफ में यूँ देर की है क्यूं
तिरे सूफी बुजुर्गों ने खामोशी साध ली है क्यूं

खफा सूरज भी तुझसे और रूठी चांदनी है क्यूं
तिरी दुश्मन बनी आखिर तिरी ये सादगी है क्यूं

तिरी चिड़ियों के नोहों में तरन्नुम कौन लाएगा
तिरे मजरूह होंठों पर तबस्सुम कौन लाएगा

फ़रिश्ता अम्न का उजड़े घरों को कब बसाएगा
जवां जानों के गम की झुर्रियों में मुस्कुराएगा

कंवारी बूढियों की मांग में मोती सजाएगा
कहीं कोई नहीं ,कोई नहीं है कौन आएगा

मुखालिफ सातों में तुझको हमदम कौन रखेगा
मिरी वादी तिरे ज़ख्मों पे मरहम कौन रखेगा


 तरन्नुम रियाज़                        

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