Tuesday, September 11, 2012

श्री अशोक वाजपेयी ('मशाल' आयोजन इण्डिया गेट पर)


:  श्री अशोक वाजपेयी जी 

इण्डिया गेट पर 'मशाल' आयोजन में श्री अशोक वाजपेयी जी ने स्त्री हित में अपनी बात रखते हुए कहा “जब तक समाज नहीं बदलता तब तक सरकार, पुलिस और संस्थाएं भी नहीं बदलती हैं 

अपने परिवार का उदहारण देते हुए अशोक जी ने कहा “हमारा संयुक्त परिवार है, हमारी बहने और मेरी पत्नी तय करतीं हैं कि हमारे परिवार में क्या कैसे होगा,मेरे बेटों ने जब शादी की बात सोची तो अपनी बहनों और बुआओं के पास गया, जब बेटी ने अपनी शादी के बारे में सोचा तो वो भी अपनी बुआओं के पास गयी जब उन्होंने कहा कि हाँ सब ठीक है  उनकी सहमती, संतुष्टि और ख़ुशी से ही सब तय होता है 



अपने इस प्रभावशाली वक्तव्य के बाद उन्होंने अपनी पुत्री के लिये लिखी कविता “तोतों से बची पृथ्वी“ का पाठ भी किया 

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अशोक वाजपेयी
(पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी)

साहित्यकार, कवि, आलोचक

साहित्य अकादमी से पुरुस्कृत 

पूर्व अध्यक्ष ललित कला अकादमी
तोतों से बची पृथ्वी
तोतों के रास्ते पर पड़ता है हमारा घर
जिस रास्ते वे जंगल जाते 
और वहाँ से लौटतें हैं
उस रास्ते पर । 


अनगिनत तोतों की हरी लकीरें
आती-जाती हैं हमारे ऊपर के आकाश में
और उनमें से कुछ 
हमारे पेड़ों पर भी ठहरतें हैं । 
हम शहर में रहतें हैं,
पता नहीं किस जंगल से किस जंगल को,
किस बसेरे से कहाँ काम को 
तोते रोज़ जातें हैं –

कई बार मैं और मेरी बेटी
ये खेल खेलतें हैं शर्त लगाने का कि 
तोतों का कौन-सा दल
हमारे पेड़ों पर ठहरेगा या नहीं ठहरेगा । 

तोते हमें नहीं देखते
क्योकि उनकी नज़रें हमेशा ही
पेड़ों और उन पर लगे फलों पर होती हैं । 
तोते 
एक हरा आकाश बनकर 
छा जातें हैं पृथ्वी पर । 
तोते छोड़ देतें हैं 
अधखाये फल की तरह पृथ्वी को । 

मेरी बेटी 
भाग-भागकर उड़ाती है तोतों को,
बचाती है फलों को,
पृथ्वी को । 

आकाश में, अँधेरे में,
दूरियों में अदृश्य हो जातें हैं तोते । 

हरीतिमा से चमकती 
खड़ी रहती है मेरी बेटी
पृथ्वी को सहेजकर दुलराते हुए । 
अशोक वाजपेयी, शोभा मिश्रा, भरत तिवारी, फरगुदिया
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2 comments:

  1. “जब तक समाज नहीं बदलता तब तक सरकार, पुलिस और संस्थाएं भी नहीं बदलती हैं ।” ............ये कहाँ का नियम है भाई ?? कानून से सब कुछ बदलता है ! समाज भी ! अमरीका में कालों के लिए पहले कानून आया फिर समाज आज तक धीरे धीरे बदल रहा है ! ऐसे ही ढेरो उदहारण जापान से लेकर अफ्रीका तक फैले हैं !

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  2. बहुत सुन्दर एवं सार्थक रचना ..आदरणीय अशोक जी की साझा करने का शुक्रिया शोभा !!

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