Thursday, May 31, 2012

रश्मि भारद्वाज जी की रिपोर्ट


Rashmi Bhardwaj
7 minutes ago ·
फरगुदिया को समर्पित काव्य संध्या , बदलते वक्त का आगाज
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कविताएं समाज का प्रतिबिंब होती हैं . जहां एक और यह हमें हमारे अवगुणों और कमियों के लिए सचेत करती हैं, वहीं अपनी व्यापक संवेदना से हमारे हृदय में भी मानवीय संवेदना, करुणा, प्रेम आदि भावों का संचार करती हैं. साहित्य का उद्देश्य अगर समाज में चेतना लाना हो, लेकिन यह करते हुए भी यदि उसका कला पक्ष बरकरार रहे तो उसका सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है . दिनांक 27 मई 2012 को आनंद पेक्स, रोहिणी सेक्टर -9 में आयोजित काव्य संध्या ‘एक शाम फरगुदिया के नाम’ कुछ ऐसा ही कार्यक्रम था, जहां एक और तो कविता अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ उपस्थित थी, वहीं इन कविताओं में मौजूद संवेदना, गहन करुणा और कुछ बदलने की चाहत ने इस पूरे कार्यक्रम को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया और वहाँ उपस्थित हर श्रोता अपने मन में यही संकल्प लेकर लौटा होगा कि अपने आस पास कोई और फरगुदिया नहीं बनने दूँगा .
फरगुदिया 14 साल की एक अबोध लड़की थी जो किसी वहशी की दरिंदगी का शिकार होकर गर्भवती हो गयी . समाज के भय से उसकी गरीब माँ ने उसे कोई दवा पिला कर गर्भ गिरवाने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्य से उस मासूम का कोमल शरीर यह सारे क्रूर आघात झेल नहीं पाया और एक गहन यंत्रणा झेल कर वह हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़ कर चली गयी. उसी फरगुदिया की स्मृति में उसकी बाल सखा श्रीमती शोभा मिश्रा द्वारा इस काव्य संध्या का आयोजन किया गया जहां कविताओं के बहाने अपने अन्तर्मन को टटोलने की कोशिश की गयी और साथ ही यह जबाव पाने का प्रयत्न भी कि क्या कमी रह जाती है हमारे इंसान बनने में कि हम अपने समाज की हजारों फरगुदियाओं का दर्द अनदेखा कर जाते हैं. शोभा मिश्रा, जिन्होने बचपन से उसके दर्द को करीब देखा था लेकिन तब उसे अभिव्यक्त भी नहीं कर पायीं थी ने उस दर्द को सहेज कर रखा , जिसकी परिणति आज हम फ़ेसबुक पर संचालित फरगुदिया समूह और इस काव्य संध्या के रूप में देख रहे हैं.
कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य की कुछ वरिष्ठ और कुछ नयी कवियत्रियों ने काव्यपाठ किया . वैसे तो लगभग सभी कविताओं का विषय स्त्री और उससे जुड़ी चुनौतियाँ ही थी लेकिन कविताओं में मौजूद संवेदना किसी वर्ग विशेष तक संकुंचित नहीं रहते हुए मानवीय भावनाओं का दर्पण सरीखी प्रतीत हो रही थी, एक ऐसा संसार रचने के लिए आह्वान करती प्रतीत हो रही थीं जहां जाति , धर्म , वर्ग , लिंग हर भेदभाव से ऊपर उठ सिर्फ मनुष्यता और मनुष्य मात्र के लिए प्रेम ही शेष रह जाता है .काव्य पाठ करने वाली कवियत्रियाँ थीं – स्वाति ठाकुर, निरुपमा सिंह, सोनरूपा विशाल ,रश्मि भारद्वाज ,विपिन चौधरी ,लीना मल्होत्रा ,स्नेह सुधा नवल ,सुमन केशरी अग्रवाल और सविता सिंह . कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध वरिष्ठ कवियत्री सविता सिंह ने की. नामचीन कवियत्री सुमन केशरी अग्रवाल मुख्य अतिथि और लोकप्रिय कवियत्री स्नेह सुधा नवल विशिष्ट अतिथि रहीं.कार्यक्रम का संचालन रश्मि भारद्वाज ने किया.

एक विशिष्ट उद्देश्य को लेकर आयोजित इस कार्यक्रम में बहुत कुछ था जो बहुत ही खास और सबसे अलग था . दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ अनारा देवी के हाथों हुआ . अनारा कोई नामचीन हस्ती नहीं, एक मेहनतकश औरत है, जिसने नशे के आदी पति की मौत के बाद 7 बच्चों के परिवार का अकेले लालन-पालन किया . स्त्री सशक्तिकरण का जीता जागता स्वरूप अनारा इस बात का प्रमाण है कि एक औरत विषम परिस्थितियों में भी टूटती नहीं, अपने और अपने परिवार का अस्तित्व बचाए रखने के लिए अंतिम सांस तक संघर्षरत रहती है. कार्यक्रम में मंजु दीक्षित का सम्मान उस स्त्री का सम्मान था जो यदि ठान ले तो मौत को भी विजित कर सकती है. कैंसर के अंतिम अवस्था में पहुँची मंजु से डाक्टरों ने उनकी अंतिम अभिलाषा पूछी तो उनका उत्तर था जीवन और अपनी उत्कट जिजीविषा के बल पर उन्होने कैंसर को परास्त करने में कामयाबी हासिल की और आज अपने परिवार के साथ जीवन, ऊर्जा और आत्मविश्वास की जीवंत ज्योति बनी एक सुखद जीवन व्यतीत कर रही हैं .
कार्यक्रम में कई गण्यमान व्यक्तियों ने शिरकत की . वरिष्ठ आलोचक और साहित्यकार पुरुषोत्तम अग्रवाल , दूरदर्शन के भूतपूर्व डाइरेक्टर, वरिष्ठ कवि एवं आलोचक नन्द भारद्वाज , व्यंग जगत के दिग्गज ,युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हरीश नवल, प्रतिष्ठित कवि प्रेम भारद्वाज, मगहर गौण पत्रिका के संपादक और चर्चित कवि मुकेश मानस, दिल्ली विश्वविध्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर डॉ गीता सिंह, कवियत्री डॉ वंदना ग्रोवर, फ़ेसबुक पर संचालित सखी ग्रुप की सह संचालिका अरुणा सक्सेना, कवि रवीन्द्र के दास , ज्योति पर्व प्रकाशन से जुड़े अरुण चन्द्र रॉय, मशहूर गजलगो एवं इंटीरियर डिजाएनर भारत तिवारी, चर्चित कवि आनंद द्विवेदी, कवि सुबोध कुमार, साहिल कुमार, डॉ रूपा सिंह , पूनम मतिया आदि उल्लेखनीय थे. नंद भारद्वाज और हरीश नवल ने अपने बहुमिल्य विचार श्रोताओं से बाँट कर कार्यक्रम की गरिमा में चार चाँद लगा दिये .

फरगुदिया को समर्पित यह कार्यक्रम एक प्रयास है उन्हे आवाज़ देने की जो इससे मरहूम हैं , जिनकी व्यथा अनकही ही रह जाती है. यह कार्यक्रम एक शंखनाद है, जिसकी गूंज हमेशा ही समाज में जागृति का संचार करेगी और वंचितों को एक मंच प्रदान करेगी अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए और उस पीड़ा , उस दर्द की अभिव्यक्ति का माध्यम कविता से बढ़कर और क्या हो सकता है . इस सफल, प्रेरक और सार्थक कार्यक्रम के आयोजन के लिए कवियत्री शोभा मिश्रा, उनके पति संजय मिश्रा और मशहूर कहानीकार और ‘खुले में रचना’, नवसृजन आदि कई सृजन को समर्पित कार्यक्रमों के प्रणेता सईद अयुब विशेष बधाई और शुभ कामनाओं के हकदार हैं . धन्यवाद ज्ञापन करने आए सईद अयुब ने फरगुदिया को समर्पित इस कार्यक्रम को भविष्य में नयी ऊंचाइयों तक ले जाने का संकल्प लेते हुए इसे सालाना आयोजित करने , स्त्री विषयक मुद्दों से जुड़े लेखन के लिए 11,000 रुपए के एक विशेष साहित्यिक पुरस्कार,और निर्धन गरीब लड़कियों की शिक्षा संबंधी व्यवस्था करने जैसी सार्थक घोषणाएँ कर कार्यक्रम और कविता को जनमानस और उनके जीवन से जोड़ने का अभूतपूर्व प्रयास किया है जो आने वाले समय में ना सिर्फ कविता के भविष्य को स्वर्णाक्षरों में दर्ज़ करेगा बल्कि उसे आभिजात्य वर्ग की चारदिवारी से निकाल उन सभी वंचितों तक भी अवश्य ही ले जाएगा जिनके लिए दो जून की रोटी से बढ़कर और कोई सरोकार ही नहीं. इसमे कोई दो राय नहीं कि यह कार्यक्रम उन सब की आवाज़ बनेगा जिनकी आवाज़ इस सुविधाभोगी समाज की स्वार्थ लिप्सा के आवरण के नीचे जबरन दबा दी गयी है और इसका माध्यम होगी मानव की सर्वोत्तम कृति-कविता


, Bharat Tiwari, Sayeed Ayub and 13 others like this.
Vandana Grover Ek behad naazuk vishay ko aapne poori samvedansheeltaa k saath nibhaaya.. Rashmi .... aapki reporting n:sandeh bahut prabhaavshaali hoti hai ....par sanchaalan mein aapne jis samvedansheelta aur dakshtaa ka parichay diyaa hai ....kaabil-e-taareef hai ...Duaa hai aap bahut taraqqi kare'n ..achchha lagaa aapko dekh kar ...
Thursday at 5:36pm · Unlike ·  4

Vandana Grover Thanks Shobha ..
Thursday at 5:36pm · Unlike ·  2

Nand Bhardwaj शोभाजी, आपने वाकई फरगुदिया की विस्‍मृत पीड़ा और उसके जीवन-संघर्ष को जो मानवीय गरिमा और एक व्‍यापक संदर्भ दिया है, उसकी जितनी सराहनीय की जाय कम है। इस कार्यक्रम को भी आपने जिस कल्‍पनाशीलता और संवेदनशीलता प्रदान की है, वह आपकी उसी मानवीय करूणा का विस्‍तार है। वह भाव आपके पूरे व्‍यक्तित्‍व और आचराण्‍ा में झलकता है। इसे बनाये रखिये। हमें सदा अपने साथ समझें। शुभकामनाएं।
Thursday at 5:47pm · Unlike ·  8

Shayak Alok मैं आपके सरोकारों की मुक्त कंठ से सराहना करता हूँ सर.. निश्चित रूप से आपका दिल्ली प्रवास व्यस्तताओं भरा रहा होगा लेकिन उसके बावजूद संवेदना के सवाल पर इस गोष्ठी में आपकी गरिमामयी उपस्थिति ने हम नवोदितों को भी प्रेरणा दी है ... मैं वहां उपस्थित तो न हो सका किन्तु फरगुदिया के बहाने इस छेड़े गए संवाद और संवेदना से बीते हफ्ते भर से खुद को जोड़े रखा ..कविता के माध्यम से संवाद फ़ैलाने की एक पहल भी की .. यह संस्कृति और गहरे रंग पकडे इस आकांक्षा के साथ आपको आभार कहना चाहता हूँ.. Nand Bhardwaj
Thursday at 7:23pm · Unlike ·  3

Nand Bhardwaj शुक्रिया शायक।
Thursday at 7:25pm · Like ·  2

Rashmi Bhardwaj bahut shukriya Vandana di...
Thursday at 9:59pm · Like ·  2
Shobha Mishra sab kuchh aap jaise mitron ke saath ki vajah se sambhav ho paaya hai .. aapka bahut bahut dhanywad Vandana ji !!
Yesterday at 5:11am · Like ·  3
Shobha Mishra ‎Nand Bhardwaj सर, फर्गुदिया के साथ हुए इस दर्दनाक हादसे को लगभग पच्चीस वर्ष हो गएँ हैं , लेकिन आज तक मैं उसकी दर्दनाक मृत्यु को भूल नहीं पायी हूँ , मैं हमेशा उसकी कराह को महसूस करती रही, फर्गुदिया की आवाज़ को सभी तक पहुचाने के लिए मैंने एक छोटा सा प्रयास किया हैं, मेरे इस प्रयास में लगातार आप मेरे साथ बने हुएं हैं, आपके प्रेरणादायक शब्दों से खुद में उर्जा महसूस कर रही हूँ ... आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
Yesterday at 5:40am · Like ·  4

Sayeed Ayub एक बहुत ही सुंदर और मार्मिक रिपोर्ट है रश्मि जी. आपने अपने शब्दों से न केवल उस शाम को फिर से जीवंत कर दिया है अपितु फरगुदिया के दर्द को इस तरह से बयाँ कर दिया है कि आँख एक बार फिर से भर आयी है. अब हमें प्रयास करना है कि हम अपनी आँखें भरकर ही न बैठ जाएँ बल्कि कुछ ठोस काम भी करते रहें. शोभा दी की तो जितनी तारीफ़ की जाए, कम ही होगा. आज के ज़माने में कितने लोग हैं जो इस तरह से दूसरों के दुःख को महसूस करते हैं, उस दुख से ज़िंदगी भर जूझते रहते हैं और अंततः उस दुःख की परिणति इतने अच्छे और नेक उद्देश्यों में कर देते हैं? साथ ही उनके पति संजय मिश्रा जी की भी हमें तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने इतनी संवेदनशीलता से अपनी पत्नी की भावनाओं का ध्यान रखा और न केवल यह आयोजन करवाया बल्कि क़दम क़दम पर साथ खड़े रहे. इन दोनों का आतिथ्य कभी न भूलने वाला है. साथ ही जैसा आनंद द्विदी जी ने कहा कि इस कार्यक्रम में सम्मिलित सभी कवयित्रियों के साथ साथ, वे सभी लोग साधुवाद के पात्र हैं जो इस कार्यक्रम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े. सविता सिंह जी ने फरगुदिया की कहानी थोड़ी सी ही सुनी, और उन्होंने कार्यक्रम में आना स्वीकार कर लिया. मुझे पता था कि सुमन जी उन दिनों बहुत व्यस्त थी. अगले दिन बेटी की परीक्षा थी. उसे माता-पिता का सपोर्ट चाहिए था. पर फरगुदिया की कहानी पढ़ते ही उन्होंने आने के लिए हाँ कर दिया. स्नेह सुधा नवल जी भी सहर्ष तैयार हो गयीं. Sonroopa Vishal जी ने, जैसा कि शोभा दी ने बताया, केवल एक फोन पर बदायूँ से आना स्वीकार कर लिया. लीना जी भी बहुत सारी व्यस्तताओं से गुज़र रही थीं, सबसे बड़ी बात यह थी कि घर पर बेटी और पति दोनों बीमार थे, फिर भी वे आयीं. आपको अगले दिन अपने मायके जाना था, बहुत सारी तैयारियाँ पूरी नहीं हुई थीं, फिर भी आपने समय निकाला. अंजू शर्मा जी गला खराब होने के बावजूद आयीं. निरुपमा जी बीमार थीं, फिर भी उन्होंने आना नहीं टाला. स्वाती अपने अकेडमिक काम को लेकर बहुत व्यस्त थी, पर फरगुदिया के नाम पर उसने भी तुरंत हाँ कर दी. वंदना शर्मा जी और गीता पंडित जी का न आ पाना दुखद तो था पर हम उनकी मजबूरियाँ भी समझ रहे थे. पुरुषोत्तम सर ने फरगुदिया के बारे में जानते ही यह फैसला कर लिया था कि चाहे जो भी हो, वे इस कार्यक्रम में आयेंगे. नंद सर ने शोभा जी के मुख से फरगुदिया की कहानी सुनते ही, इस कार्यक्रम में आने का फैसला कर लिया. हरीश नवल जी तो आरंभ से ही इस कार्य्रकम से जुड़े हुए थे....और भी जो लोग वहाँ आए, और जो किसी कारणवश नहीं आ पाए, उन सब लोगों ने फरगुदिया के प्रति जो संवेदना दिखाई और इस कार्यक्रम के प्रति जो सद्भावना दिखाई, उसने बहुत आश्वस्त किया कि यदि किसी अच्छे और नेक उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ा जाए तो बहुत सारे हाथ आगे आते हैं, मदद करने को, सहारा देने को. मैं तो आप सबका मन की गहराइयों से आभारी हूँ. और शोभा दी को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि उनके इस अभियान में वे अकेली नहीं हैं. केवल मैं उनके साथ नहीं हूँ, बल्कि सैकड़ों-हज़ारों लोग उनके साथ हैं, और ये संख्या दिन ब दिन बढ़ती ही जाएगी. बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी, इस सुंदर और मार्मिक रिपोर्ट के लिए और आपके कुशल संचालन के लिए.
Yesterday at 8:31am · Like ·  3

Rashmi Bhardwaj बेहद शुक्रिया सईद जी .... आपका योगदान तो हम सबसे बड़ा है , जयपुर शिफ्टिंग करीब होते हुए भी आप अंतिम क्षणों तक जुटे रहे .... आप शोभा दी और संजय मिश्रा जी वाकई बधाई के पात्र हैं ..... और प्रेरणा के भी .... फरगुदिया से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करती हूँ और इसे लेकर हम सबने जो सपने देखे हैं ,ईश्वर उन्हे पूरा करे यही दुआ है ... गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी घोषणा के लिए तो विशेष आभारी हूँ , इस बारे में जल्दी ही कुछ ठोस करना चाहती हूँ ....
Yesterday at 8:44am · Unlike ·  4

1 comments:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि
    खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें
    वर्जित है, पर हमने इसमें
    अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने
    दिया है... वेद जी को अपने
    संगीत कि प्रेरणा जंगल
    में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    My homepage ; हिंदी

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