Tuesday, July 30, 2013

समाधियाँ बोलती हैं कही ? प्रतिभा गोटीवाले


प्रतिभा  गोटीवाले 
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1-माँ की वेदना 



शर्मिंदा हूँ मैं

अपने आप से

के छीन लिया हैं मैंने उससे

बचपन उसका

भेजती नहीं हूँ अब उसे

खेलने के लिये

न पहनने देती हूँ फ्राक

बाल भी कटवा दिये हैं उसके

लड़को जैसे



और पहनावा भी अब

उसका लड़को सा ही हैं

पर उसकी मीठी ,शहद भरी

लडकियों सी आवाज़ का

क्या करू ..?

कश्मकश में हूँ ..

सिल दूँ होठ या कर दूँ

गूंगा उसे

या सेक्स ही चेंज करवा दूँ ...??

कैसे बचाऊ इस नन्ही परी को

लोगो की वहशी निगाहों से ..?

क्यों नज़र नहीं आते अब

कृष्ण कही ....?

और होंगे भी तो

आयेंगे कैसे ..!

मासूम अभी तो केवल

माँ को ही पुकारना जानती हैं

कैसे समझेगा कोई

की फट जाता हैं कलेजा जब

माँ होकर भी

बचा नहीं पाती उसे !!

तुम कहते हो क्या उलजलूल

सोचने लगी हो ??

कैसे बताऊँ तुम्हे

ये बेचैनी

के जब से दुनियाँ की आँखों में हैवानियत सी जगने लगी हैं ,

मेरी पाँच साल की बेटी मुझे जवान लगने लगी हैं ।





2 -सपनों का समर्पण 


जब पलटती हैं

सपनों की सत्ता

और पैर जमाता हैं

साम्राज्य....यथार्थ का ...

एक एक कर

आत्मसमर्पण

करते जाते हैं सपने



निकलकर मन के घने

बीहड़ों से ........

तोड़कर लहराते हुये

अपने ही पंख

दिखलाते हैं संधि संकेत ...।









.


3 -बीता हुआ दिन 




कई बार होता हैं

के समय की नदी में बहते बहते

कुछ पुराने दिन

छुप जाते हैं

समय की नज़र बचा

लम्हों की सीपियों में शंखों में

या अटक जाते हैं

यादों की झाड़ियों में ,

कुछ बनकर रेत

जमने लगते हैं किनारों पर



और फिर कभी किसी दिन

जब तुम टहलते हो इस रेत पर

तो अकस्मात मिलते हैं

खज़ाने ...........

शंखों के सीपियों के

हाथों में लेते ही

इनमे दुबके हुए पुराने दिन

निकल आते हैं बाहर

या झरते हैं झाड़ियों से

बनकर फूल

और तुम जी आते हो बहुत पुराना

एक बीता हुआ दिन .........।




4-काश 



कल खोलते ही अलमारी

आ गया था हाथों में ..

तुम्हारी साड़ी का आँचल

और बरबस ही ..

हँस पड़ा था मैं देखकर ...

किनारे पर बंधी गठाने

जब ढूंढते ढूंढते कोई चीज़

परेशान हो जाती थी तुम

बांध लेती थी

एक गठान पल्लू में

और मिल जाती थी खोई चीज़े

काश .......ऐसा हो

मैं भी बांधू एक गठान ...

...और .....

...मिल जाओ ......तुम ....।






5-पूर्ण विराम 


समाधियाँ बोलती हैं कही ?




शब्दों के आगे पूर्ण विराम लगा देने से

शब्द थमते हैं ...........

संवाद नहीं .......

संवाद घुटते रहते हैं निरंतर

पूर्ण विराम के भीतर

और हो जाते हैं ....

समाधिस्थ .....अंततः

और किसी दिन

फिर तुम चाहते हो

शुरू करना सिलसिला शब्दों का

तब बढ़ते हैं निष्प्राण

केवल शब्द

संवाद नहीं ..........

पूछते हो क्यों !

...................................




 6- प्रवासी पक्षी 

जब से निकली हूँ प्रवास पर
नहीं देखा हैं मैंने
अपना सूरज,अपनी सुबह
अपनी राते और
अपना दिन
सब तुम्हारे हैं
तुम्हारे दिये हुए
चाहती तो मैं भी
तिनका तिनका चुनकर
बना सकती थी एक
घरौंदा अपने लिये
पर मैंने अपना लिया
तुम्हारा घर,तुम्हारे सपने
और तुम्हारा आकाश
देखो अपने पंखो को भी
समेट लिया हैं मैंने
के टूटे ना तुम्हारा नीड़
बदल ली हैं मैंने अपनी
आदते और जीवन शैली
सीमित कर ली हैं अपने
सपनो की उड़ान बस
तुम्हारे आसमान तक
और तुम अब भी कहते हो
प्रवासी मुझे
तुम्ही बताओ
के कैसे ये प्रवास ख़त्म करू
और पाऊं कहा मैं
मंज़िल को ...........।


           



7-आदत 


एक आदत थी उसकी
के वो कभी ख़त में
अपना नाम नहीं लिखती थी
बस छिड़क देती थी
एक चुटकी मुस्कराहट
जिसे पढ़कर कई दिनों तक
खिलखिलाती रहती थी
मेरी आँखे .....
न  जाने क्यों ............।





8-.कसम 

उसने कहा था भूल जाओ मुझे ..
..और मैं भूल गया था ..
पर जीवन भर ढूंढ़ता रहा उसे
इसलिये नहीं ..
कि भूल नहीं पाया
..बल्कि इसलिये ...
कि लौटानी थी उसे उसकी
एक चीज़ .....
ज्यादा कुछ नहीं
एक छोटी सी कसम थी
उसे भूल जाने की
अब जब भूल ही गया हूँ उसे
ये कसम रखकर करूँगा क्या ..?



.9-बसंत की शाम 


सोचती हूँ कभी
के आओ तुम
और ठहर जाओ
मन के आसमान पर
बनकर
बसंत की शाम
बहकता रहे आसमान
बहुत देर तक
तुम्हारे रंगों से
और जब घुलने लगो
काजल की तरह
स्याह रातो में
उतर आना
मेरी आँखों में
बन के विहग
प्रतीक्षा का ...........।






10-.कागज़ के जहाज़




बारिश  के पानी में
चलाये  हुए
तुम्हारे कागज़ के जहाज़
अब भी ले जाते हैं
दूर ....बहुत दूर ....
बचपन के किसी
किनारे पर .......
फिर  अचानक
बहते बहते ....
जब भीगता हैं  कागज़
तो  भर आता     हैं
पानी  जहाज़ में ..
और ......
आँखों से बहने लगता हैं ... ..? 




नाम :प्रतिभा मनोज गोटीवाले 
माता  का नाम : श्रीमती सुधा सोनगिरकर 
पिता का नाम : स्व .श्री सुधाकर सोनगिरकर 
जन्म तारीख़ : 29 /03/1974 
जन्म स्थान : बुरहानपुर (म प्र )
शिक्षण : बीएससी ,एलएल बी ,एलएलएम ।
पता : IF /3 सरस्वती नगर ,
         भोपाल (म .प्र .)
         पिन :462003 
मोबाईल : 09826327733 
E-mail : minalini@gmail 

4 comments:

  1. सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक
    बहुत सुंदर

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  2. प्रतिभा जी की प्रतिभा उनकी रचनाओं में छलकती है ………सुन्दर भाव समन्वय

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  3. अच्छी कविताओं के लिए, बधाई। शुभकामनाएँ।

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  4. बहुत सुन्दर कविताएँ .. बधाई

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