Monday, December 24, 2012

बलात्कार और आत्मा _ अंजू शर्मा

अंजू  शर्मा     

दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना से आज  पूरा देश सकते की स्थिति में है ... इंसाफ की मांगें जायज है ...  .. लेकिन अंजू शर्मा द्वारा धैर्य से लिखा ये आलेख पढना बहुत जरुरी है ...  क़ानूनी जानकारी  और भी बहुत से महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर करता आलेख ... धन्यवाद अंजू  !!! 





मेरी नौ वर्षीया बेटी ने कल मुझसे पूछा कि रेपिस्ट का क्या मतलब होता है। पिछले कई दिनों से वह बार-बार रेपिस्ट, रेप, बलात्कार, फांसी, दरिन्दे, नर-पिशाच जैसे शब्दों से दो-चार हो रही है। रेप की विभत्सता पर बात करते हुए, या आक्रोश जताते हुए, उसके आने पर बड़ों का चुप हो जाना या विषय बदल देना उसे समझ में आता है। वह पूछती है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो वह नहीं जानती, और उससे छुपाया जा रहा है। मैं अक्सर उससे अजनबियों से सावधान रहने या सुरक्षा के उपायों पर ध्यान देने सम्बन्धी बातें करती रहती हूँ, ऐसे में मैं अक्सर 'किडनैप' शब्द का प्रयोग करती हूँ। कल भी मैंने उसे बताया कि एक बच्ची को कुछ लोगों ने अकेले बाहर निकलने पर किडनैप कर मारा और ज़ख़्मी कर दिया। मेरी बच्ची यह नहीं समझ पाती है कि आखिर उसे ज़ख़्मी क्यों किया गया, ये भी नहीं कि हर बार ये बात करते हुए मेरी आखें क्यों भर आती है। दुखद है कि हम एक ऐसे युग का निर्माण कर रहे हैं, जहाँ बच्चे समय से पहले परिपक्व हो रहे हैं, जहाँ रेप, रेपिस्ट जैसे शब्द उनकी दिनचर्या का अवांछनीय पर अटूट हिस्सा बन रहे हैं और हम लोग मुंह बाये कानून की ओर आशा से देखते हैं।

बलात्कार और आत्मा : हम दरअसल एक ऐसे देश के वाशिंदे हैं जहाँ परम्पराएँ मज़बूत हैं और कानून कमज़ोर। हमारे यहाँ बलात्कार का सीधा-सीधा सम्बन्ध आत्मा से जोड़ा जाता है। एक युवती की अस्मिता उसके 'कौमार्य' या 'शील' के 'अक्षत' रहने में निहित मानी जाती है। उसके स्वतः इसे 'खो' देने में भी वही दोषी मानी जाती है और ज़बरन छीन लेने में भी वही दोषी है। ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं जो पीडिता के दोष गिनने में ज्यादा रूचि दिखाते हैं, "आदमी का क्या है, करके अलग हो गया, जिंदगी तो उसकी ख़राब हुई न" या फिर "ये सारी उम्र का कलंक तो उसे घरवाले ढोयेंगे ना" जैसे जुमलों की कहीं कोई कमी नहीं होती। मानसिकता बदलने की बजाय समझाने वाले लोगों को व्यावहारिक होने का उपदेश देना भी आम बात है। हमारे समाज में रेप से पीड़ित स्त्री का समाज में सामान्य जीवन जी पाना बहुत बड़ी बात है। कदम कदम पर कुत्सित मानसिकता से लडती वह लगभग हर रोज़ बलत्कृत होती है, घर में, समाज में, थाने में, अदालत में और आम जिंदगी में भी। जबकि उसे न तो किसी की सहानुभूति की दरकार होती है और न ही वह दया का पात्र बनना चाहती है, इस घटना को एक दुर्घटना या दुस्वप्न मानकर जीवन में आगे बढ़ना ही सबसे जरूरी कदम होता है, जिसमें उसके परिजन, परिचित, समाज और कानून को अपनी अपनी भूमिका सुनिश्चित करना जरूरी है।

बलात्कार क्या सेक्स है? : बलात्कार को सेक्स से जोड़ने में भी हम गलती करते हैं। आज सेक्स के लिए सर्वथा अनुपयुक्त महिला वर्ग ही इसका ज्यादा शिकार हो रहा है। अबोध छोटी, मासूम बच्चियों से लेकर 70 साल वृद्धा तक बलात्कारियों का शिकार हो रही हैं, जो सेक्स करने में या शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने जैसी चीज़ से कोसो दूर हैं। जाहिर है ऐसे बलात्कार शारीरिक न होकर मानसिक ज्यादा होते हैं। एक स्त्री के अधिकार क्षेत्र में जबरन अतिक्रमण के अतिरिक्त इसमें कुत्सित मानसिकता, कुंठा या दम्भी पौरूष के झूठे तुष्टिकरण की भूमिका अहम् है। गौहाटी वाली घटना के विरोध में 'फर्गुदिया' द्वारा आयोजित विरोध-गोष्ठी में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ कवयित्री डॉ अनामिका ने कहा था कि एक स्त्री का अपनी देह पर पूरा अधिकार है, इसे देने या न देने का निर्णय भी उसी का होना चाहिए। यदि एक स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसे छुआ भी जाता है तो यह बलात्कार है। ऐसे में महिला के सर्वाधिक कोमल देह-क्षेत्र के शोषण के बाद उसे क्षत-विक्षत कर देने या मार-पीट करने की मानसिकता भी इसी बात की पुष्टि करती है कि सेक्स से कहीं अधिक जबरन आधिपत्य जमाकर अपनी कुंठा का स्खलन ही बलात्कारी का लक्ष्य होता है।

बलात्कार के बढ़ते मामले : CNN के अनुसार पिछले 40 सालों में रेप केसों में 875% की वृद्धि हुई है। 1971 में जहाँ यह संख्या 2487 थी, 2011 में 24406 मामले सामने आये हैं। अकेले नई दिल्ली में 572 केस पिछले साल सामने आये और 2012 में 600 से अधिक मामले सामने आये हैं। गौरतलब है इन आंकड़ों में उन मामलों का जिक्र नहीं है जो दबा दिए गए या सामने नहीं आये।

बलात्कार और क़ानून : भारतीय कानून रेप को एक अपराध मानता है और इस पर क्रिमिनल लॉ लागू होता है। इंडियन पैनल कोड (IPC) का तहत किसी भी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध जानबूझकर, गैरकानूनी तरीके से जबरदस्ती किया गया सेक्स रेप की श्रेणी में आता है। इसमें कम से कम 7 साल से लेकर अधिकतम 10 साल तक की सजा और फाइन का प्रावधान है। कस्टडी में, एक गर्भवती महिला या 12 साल से छोटी महिला या गैंग रेप में कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है। हालाँकि इस कानून का एक दुखद पहलू है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध को रेप न मानकर इसके लिए अलग धारा का प्रावधान है। यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है आखिर रेप के बाद कितने फरार अपराधी पकड़ में आते है, कितनों पर रेप साबित होता है और कितनो को सज़ा मिलती है। अधिकांश पहले ही ज़मानत पर छूट कर पीडिता और उसके परिवार को आतंकित करते हैं। एक अपराधी सात या दस साल की सजा के बाद समाज में वापिस आजाद होता है फिर से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए जबकि पीडिता पूरी उम्र उस अपराध की सजा भुगतने के लिए अभिशप्त होती है जो उसने किया ही नहीं।


हाल ही में फेसबुक या ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर इसके लिए बखूबी स्टैंड लिया गया है। लोग खुलकर अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं, और एकजुट होकर प्रदर्शन या कैंडल मार्च जैसी गतिविधियों को भी अंजाम दे रहे हैं। गुजरात चुनावों के परिणाम आने के दौरान मीडिया ने भले ही विषय बदल दिया हो, सोशल साइट्स अपना काम बखूबी कर रही हैं, लोग जुड़ रहे हैं, बात कर रहे है, सभी प्रशासन भी हरकत में आया और गिरफ्तारियां हुई। ऐसे में कुछ बिन्दुओं पर विचार करना जरूरी है :

1. इस लौ को जलाए रखिये, साथ ही कोई स्थायी और सार्थक हल भी ढूँढा जाना चाहिए।

2. जो लोग समर्थ हैं आगे आयें, ऐसे मामलों में कम से कम त्वरित न्याय होना भी बहुत संतोषजनक रहेगा, ताकि बलात्कारियों के हौंसले पस्त हों! कानून में बदलाव, यानि सज़ा का उम्रकैद में बदलना और रेप के साथ साथ शारीरिक उत्पीडन के सभी मामलों को भी रेप की श्रेणी के अंतर्गत लाये जाने पर विचार किया जाना चाहिए।

3. उस लड़की और ऐसी अन्य लड़कियों को सामान्य जीवन जीने में न केवल मदद करनी चाहिए, अपितु उन्हें प्रेरित कर हर तरह के व्यर्थ के ग्लानि भाव से मुक्त करना होगा, क्योंकि वे दोषी या अपराधी नहीं हैं।

4. समाज सुधार का कार्य अपने घर से शुरू करना होगा, अपने जीवन से जुड़े पुरुषों चाहिए वे पिता, भाई, पति, पुत्र या फिर मित्र हों, को स्त्री जाति के सम्मान और सुरक्षा के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि बलात्कारी मानसिकता का ह्रास हो।

5. ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में आगे भी इसी तरह एकजुटता दिखानी होगी, चाहे कोई भी जगह हो दिल्ली या सुदूर के क्षेत्र, स्त्री हर जगह स्त्री है।

6. समर्थ लोग किसी बड़े आयोग के बजाय छोटी छोटी इकाइयों पर ध्यान दें, जहाँ पीड़ित महिलाओं की जल्द सुनवाई हो।

7. महिलाओं को अपनी बेटियों को मज़बूत बनाना होगा, मन से भी और शरीर से भी। उनके मन से बेचारगी के भाव को दूर कर किसी भी परिस्थिति से लोहा लेने के लिए सक्षम बनाना होगा। मेंटली काउंसलिंग और मार्शल आर्ट दोनों ही आप्शन आज जरूरी है .

8. महिलाओं को भी उपभोग की वस्तु जैसी मानसिकता से अब ऊपर उठना होगा, अस्मिता के दोहरे मापदंड को नकारना होगा, चाहे आप स्वयं हो या अन्य कोई महिला!

लिस्ट यहीं ख़त्म नहीं होगी, आप लोगों के विचार करने पर ढेरों बिंदु जुड़ सकते हैं, लेकिन इनकी सार्थकता इनके विचार-मात्र न रहकर क्रियान्वित होने पर ज्यादा है!

7 comments:

  1. Sirf hamko sochna-samajhna hai, qanoon banane wale apna alag hi raag alaapte rahe'nge.

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  2. gahan soch ke sath likha gaya ek vicharneey aalekh..

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  3. gahan soch ke sath likha ek sarthak aalekh..

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  4. वैचारिक स्‍तर पर सुधार आवश्‍यक हो गये हैं। होंगे या नहीं कह नहीं सकते। हमारे देश में शिक्षा के अलावा आचरण में भी सुधार आवश्‍यक है। आचरण निर्माण या तो घर से होता है या प्राथमिक शिक्षा से...इसमें आमूल चूल परिवर्तन होना चाहिए। आपके विचार सटीक हैं। समाज में ऐसे विचारों का प्रचार और प्रसार होना चाहिए साथ ही अमल में भी लाया जाना चाहिए।

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 25/12/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।

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  6. aapka aalekh bahut saare sawaalon par poore samaj ko naye siire se sochne ke liye majboor karta hai.hame ek jut hokar is samasya ka hal dhoondhna hoga,aakhir hamaara samaj kis disha kii or badh rhaa hai.hame aapne privaar ke satar par iski shuruvat karni hogii taki hamare bachche hamare vaidik sanskaron ko samajh saken ki hamare naitik mulya aakhir kyaa hain,kyonki hamare naitik mulya shane-shane dharaashahi hote jaa rahe hai.hahare samaj men naari ko bhogya nahii balki use devii ka roop diya gayaa hai.


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  7. नैतिक शिक्षा की बहुत जरूरत है , आपके सुझाव बहुत अच्छे हैं

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