Wednesday, January 02, 2013

एक समाधान की प्रतीक्षा,भाग तीन - निरुपमा सिंह

     निरुपमा सिंह          

                                    गृहिणी, कवयित्री 

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो 


.................................................अगले जन्म ही क्या मै हर जन्म में स्त्री बनकर ही आना चाहती हूँ .स्त्री एक विस्तार है स्त्री एक सोच है और स्त्री सम्पूर्ण प्रकृति है .समाज में हो रहे घटनाओं के आधार पर पुरुषों के प्रति आक्रोश जायज़ है पर क्या आप अपने पिता भाई या बेटे को उस वर्ग में रख सकती है ?नही न !!
वो इस वज़ह से नही कि आप से वो जन्म से जुड़े है बल्कि इस वज़ह से कि उनमें एक संस्कार है जो किसी भी गलत दिशा को बढ़ावा नही देते ...आज ज़रूरत इसी बात की है, यह फैलाव समाज तक होना चाहिए जिसकी ज़िम्मेदारी हमारी और आप सबकी है .हम सिमट कर रह गये है अपने ही परिधि में जिसका फायदा मानसिक रूप से बीमार इंसान उठाता है .कोई पुलिस कोई सुरक्षा व्यवस्था वहां तक नही जा सकती जहाँ तक हमारी चेतना जाती है ..
अभी दामिनी की ज्वाला में कई प्रश्न उठ कर सुलग रहें है ...कुछ प्रश्न आज की युवा पीढ़ी के सामने रखने पर क्या प्रतिक्रिया है देखिये ..
1- दिल्ली में सोलह दिसंबर को छात्रा के साथ जो घटना घटी उसके बारे में क्या आपको जानकारी है ...?

2- राह चलते या कहीं भी आपके साथ छेड़खानी जैसी घटना होती है तो तुरंत आप क्या स्टेप लेतीं हैं ...?
3- छेड़खानी जैसी घटनाओं को लेकर आपके पेरेंट्स का क्या रिएक्शन होता है ...?
4- सेक्स एजुकेशन पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने के बारे में आपका क्या विचार है ...?
5- घर में आपके भाई भी होंगें ... माता-पिता द्वारा क्या आप दोनों के साथ एक जैसा ही व्यवहार होता है ...?
6- रेप जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना से लड़की या स्त्री को शारीरिक और मानसिक आघात पहुंचता है ... पीड़ित को फिर से मेंटली नार्मल करने के लिए कुछ सुझाव दीजिये
...



अपूर्वा शर्मा 23 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर स्वभाव से साहसी अपूर्वा का कहना है कि ...

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1.हाँ मुझे जानकारी है ,मुझे पता है वो कहाँ से आ रही थी ..कहाँ से उठाया गया और उसके साथ क्या क्या हुआ ?


2...अगर मै अकेली होती हूँ तो ज़्यादातर बिना कुछ कहे या करे वहाँ से चली जाती हूँ .अगर दोस्त मेरे साथ होते है और छेड़ने वाले की संख्या कम होती है तो कड़े शब्दों में उन्हें आगाह कर देती हूँ !


3.मेरे माता -पिता तो हमेशा मुझे ही सचेत रहने को कहते है और सलाह देते है ..ज्यादा देर बाहर नही रहो ...भीड़ वाली जगह से ही आया जाया करो ,पर यह नही कहते कि बाहर मत जावो अपना अच्छा बुरा मै स्वयं ध्यान रखूँ यह सावधानी वह हमेशा मुझसे चाहते है !


4...जहाँ तक सवाल शिक्षा में सेक्स एजुकेशन की है तो मेरे ख्याल से सिर्फ सेक्स एजुकेशन से कुछ नही होगा वो तो वह कही से हासिल कर सकते है शिक्षा के साथ हमें यह बताने की ज़रूरत है कि लड़कियों को किस दर्जे की इज्ज़त दी जानी चाहिए उनके मन में बिठाना ज़रूरी है कि लड़कियों का दर्जा उनसे कहीं ऊपर है तो किसी भी तरह का सेक्स से रिलेटेड जोर डालना कितना हद से ज्यादा ग़लत होगा !


5.मेरी एक छोटी बहन है इसलिए मै भाई वाली बात का उत्तर नही जानती.
6..अंत में ......पीड़िता को नार्मल करना तो बहुत मुश्किल है पर पहली चीज़ यह की जा सकती है कि गुनाहगार को उसके सामने लाया जाए और जो सज़ा वो देना चाहे वही सज़ा अपराधी को मिले ..इससे उसका विश्वास वापस आएगा कि कुछ उसके हिसाब से हो तो रहा है !
इसके आलावा लड़की को पूरी तरह से आर्थिक रूप से निर्भरता देनी होगी सरकार को जिससे वह अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी सके !!



17 वर्षीय आयुषी श्रीवास्तव जो ग्यारहवी कक्षा की छात्रा है, उसका यह कथन है...

१. दिल्ली में 16 दिसम्बर को उस छात्रा के साथ जो भी हुआ, मुझे उसके बारे में पूरी जानकारी है. पिछले 15 दिनों से लगातार जो भी खबर उस लड़की के बारे में बताई जा रही है, उस सब से मैं अवगत हूँ.

.अगर राह चलते मुझे ये आभास होता है की कोई व्यक्ति छेड़कानी करने की फिराक में है, तो मैं रास्ता बदल लेती हूँ. आम तौर पर, मैं सुनसान रास्तों पर जाने से बचती हूँ.
३.मेरे साथ, आज तक ऐसा कुछ हुआ नहीं. मेरी ज़्यादा घर से बाहर निकलने की आदत है नहीं. अकेले निकलती भी हूँ, तो बस सामने मार्किट तक ही जाती हूँ. या अपने दोस्तों के घर तक, शायद इस कारणवश आज तक ऐसी कोई स्थिति आई ही नहीं, जिससे मेरे माता पिता कुछ रियेक्ट कर पाएं.

४.सेक्स एजुकेशन के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हमारे पाठ्यक्रम में पहले से ही सम्मिलित है, और मेरे विचार से, वह काफी हद्द तक पर्याप्त है.

५.मेरे घर में एक भाई होने के बावजूद, कई बार मुझे यह एहसास होता है की मुझे उससे ज़्यादा प्यार किया जाता है, यह अलग बात है की मेरे छोटे भाई के कारण मेरी डांट ज़्यादा पड़ती है.
 
6-माता पिता एवं पूरा परिवार को उस पीड़ित लड़की को सहारा एवं खूब सारा प्यार देना चाहिए.

उसे यह समझाना चाहिए की जो भी घटना घटी, उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी, इसलिए उससे शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है. बल्कि, शर्म तो उन मानसिक रूप से बीमार लोगों को आनी चाहिए. इसके अलावा, उन्हें उस लड़की को एक सामान्य ज़िन्दगी जीने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि वह भी औरों की तरह सामान्य ही तो है.

सफल गृहणी और फ्री लांसर डिजिटल डिजाइनर “सपना दिवाकर” का क्या कहना है इन प्रश्नों के जवाब में ...

1.मुझे पूरी जानकारी है इस घटना के बारे में.

2.
मै चुप नही बैठूंगी ...विरोध पूरी ताकत से करुँगी जिससे सामने वाले का हौसला पस्त हो अगर आप शोर विरोध नही करोगे तो किसी को सहायता के लिए कैसे बुला पाओगे ?

3..घर में चूँकि माँ ही थी इसलिए उन्होंने हमेशा यही हौसला दिया कि डट कर सामना करना.


4.सेक्स एजुकेशन सही है पर बीमार मानसिकता वाले लोगों के लिए इसके कोई मायने नही है !सज़ा देने के बारे में मेरी राय यह है कि कठोर ही होनी चाहिए जब तक सज़ा के प्रति डर पैदा नही होगा अपराध को बढ़ावा मिलता रहेगा.!


5.हमें लड़की होने के कारण हमेशा कहा गया कि ये न करो वो न करो पर भाई के लिए कोई रोक टोक नही थी.


6.जहाँ तक पीड़िता के लिए सुझाव की बात है तो वक्त के साथ शरीर के घाव तो भर जाते है पर मानसिकआघात शायद ही मिट पाता होगा ..सबके प्यार से थोड़ा असर कम हो सकता है .

अंत में मेरा यही मानना है कि लड़कियों को खुद से अपने आप में हिम्मत लानी होगी और छोटी से छोटी शारीरिक या मानसिक छेड़छाड़ का तुरंत विरोध करना चाहिए ....हमारी आने वाली पीढ़ी को स्त्रियों की इज्ज़त करना सिखाना चाहिए जिसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए !


 
विंदा चावरे 
”मेरी एक बेटी है ....और अगर मेरा पहला बच्चा बेटा होता तो मै दूसरा बच्चा ज़रूर करती क्योंकि बेटी से पूर्णता का अहसास होता है मुझे बेटी ही चाहिए थी”....इतने बोल्ड विचारों वाली महिला विंदा चावरे गृहणी और एक कोरियोग्राफर है वो क्या कहती है ...पढ़िए ...
 
1.
देश की लगभग हर घटनाओं की जानकारी रखती हूँ इसलिए इससे अछूती कैसे रह सकती थी .2. हाँ मैंने छेड़े जाने पर थप्पड़ लगाया है पर दुःख तब होता है जब दूसरी औरतें साथ देने की बजाय दूर से तमाशा देखती है . 

3.हमारे माँ –पिता ने हमें यही सिखाया कि अपने बचाव में जो कर सकते हो करो ....मैंने भी अपनी बेटी को यही सीख दी है .

4. सेक्स शिक्षा से कोई फायदा नही क्यूंकि हमारी सोसाइटी अभी इतने खुले विचारों वाली नही हुई है कि उसपर खुलकर बात कर सके और जो बच्चे कहीं से पता करे तो गलत ही पता चलती है इसलिए घर में ही इसकी स्वस्थ शुरुआत होनी चाहिए .5-.सबसे आखिरी में कि पीड़िता की मानसिक स्थिति को सामान्य करने के लिए समाज को मानसिक रूप से स्वीकारना सीखना होगा ..क्यूंकि अन्ततोगत्वा तो उसे उसी समाज का हिस्सा बन कर रहना है जहाँ उसके साथ यह सब हुआ ..प्यार और जीने का विश्वास उसे हौसला के रूप में देना होगा .
..........................
समाज आज उस मुहाने पर खड़ा है जहाँ से उसे अपनी दिशा ही नही दिख रही ...इसका आशय यह नही कि स्थिति निराशाजनक है ..सुधार की गुंजाइश हर हाल में होती है ..हम आपकी ज़िम्मेदारी यही से शुरू होती है .किसी पक्ष को अनदेखा न करे.. युवाओं पर देश का भविष्य है उन्हें दिशा निर्देशन और संस्कार की आवश्यकता है .
.शारीरिक शौष्ठव के लिए जिम खुले है क्या एक भी ऐसा कोई संस्थान है जहाँ यह लिखा हो यहाँ मानसिक स्वास्थ्य बनाने का प्रयास किया जाता है ?


................................................................................निरुपमसिंह

1 comments:

  1. sarthak sawalon ke bebak javab..isi tarah jagrukta lana hogi..abhar

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