Friday, January 04, 2013

मैं एक अजन्मी , ये हमारा शहर -कमल सोनी की दो कविताएँ

नाम:   कमल कुमार सोनी
जन्म स्थान:  नगर ,थाना - सासाराम
जिला :  रोहतास , बिहार 821115 . वाराणसी 
शिक्षा :  बी.कॉम , वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी, आरा (बिहार)
वर्तमान में कंपनी सेक्रेटरी कोर्स कर रहें हैं 



आज हम लड़कियों की सुरक्षा के लिए आवाज़ उठा रहें हैं , उनके अधिकारों की बात कर रहें हैं , कमल सोनी की कविताएँ सोचने पर मजबूर करतीं हैं कि लडकियां आखिर  कहाँ सुरक्षित हैं ...? कन्या भ्रूण  हत्या जैसा घृणित कृत्य  आज भी समाज में हो रहा है , माँ की कोख भी बेटियों के लिए सुरक्षित नहीं है ... !!! 


1-मैं एक अजन्मी      
________________

मैं एक भ्रूण हूँ ...

मेरे इस दुनिया में

आने के एहसास मात्र से

माँ के चेहरे पे जो

मुस्कान आती है

वो अद्वितीय है...



अभी बस

एक ही महीना हुआ है ना

सो माँ घंटो

आईने के सामने

निहारती रहती है

ढूंढती रहती है

तलाशती है मुझे

मेरे होने को

फेरते हुए हाथ

अपने पेट पर

पापा भी खुश हैं



अभी

दूसरा महीना है

सो अब

मैं आकार ले रहा हूँ

मेरा मस्तिष्क विकसित हुआ है

बस अभी सोचता नहीं

बाद में सोचूंगा

अभी तो माँ

घर में पूज्य हो गयी हैं

सब हाथो हाथ लिए रहते हैं

माँ को

आराम देना है ना

अच्छा है

उनकी सेहत के लिए

और मेरी भी



तीसरा महीना

सब माँ के पेट पर

कान लगाकर

मेरी आवाज सुन रहे हैं

पर मैं कम ही बोलता हूँ

डॉक्टर ने doppler यंत्र से

मेरी साँसें सबको सुनाई थी

सब हर्षातिरेक से

चिल्ला उठे थे

मैं पहले डरा फिर

सोचा की खुश हैं शायद ...

अच्छा लगता है ...

सबको खुश होते सुनना



चौथा महीना

मैंने माँ को

लात मारी

पहली लात

मेरी पहली हरकत

सॉरी माँ

पापा ने थपकी भी दी

मैं अब हिल सकता हूँ

और माँ को अपने

होने का एहसास

दिला सकता हूँ

सब बहुत खुश हैं



पर आज

उन्नीसवां सप्ताह है

शायद

कुछ हुआ है यहाँ

सब बहुत शांत हैं

कारण क्या था

पता चला मुझे

मेरा

लिंग परीक्षण

कराया गया है

सारी ख़ुशी काफूर

निर्णय लिया गया

मुझे मार देने का

माँ के गर्भ को

मेरी कब्र

बना देने का

माँ खूब रोई

उनके कुछ आंसू

मैंने भी पिए

मेरी साँसें सबने सुनी थी

मेरा रोना सिसकना

किसी ने ना सुना

और ना ही जरुरी समझा

मुझे दुनिया में लाना

मैं एक लड़की हूँ ना ....


मैं एक अजन्मी .....



2-ये हमारा शहर        

______________________

ये हमारा शहर

कंक्रीटों का जंगल

जिसमें जिंदगी

निरंतर

निर्बाध

निष्प्रभाव

बहती जाती है

कोई हादसा हो

या आपदा

कुछ देर रुक कर

फिर आगे बढ़ जाती है



धमाकों के बाद भी

कुछ ऐसा ही हुआ

धमाकों से पहले

सब सामान्य था

जनजीवन

रोजमर्रा की तरह

चलायमान था

दुकानें सज रही थी

लोग भागे जा रहे थे

अपने अपने कामो में

किसी को

पूर्वानुमान तक ना था की

उनकी इस रफ़्तार को

रोकने की साजिश की गयी है

कोशिश की गयी है की

रोक दे इस जीवन-धारा को



परन्तु ये शहरी स्पीरिट

"देखा जायेगा यार!"

सब अपने अपने कामों में

उलझने को आकुल थे

व्याकुल थे

ये जानने को

की आज सेंसेक्स

और बाकी मार्केट्स का

क्या हाल होगा

टेंडर मिलेगा की नहीं

लोन पास होगा की नहीं

आज कोई डील फ़ाइनल होगी या नहीं

कोई नया क्लाइंट मिलेगा की नहीं

बच्चे भी यहाँ तक की

आज स्कूल में मैथ टीचर

आयेंगे की नहीं

मजार के पास वाले रहमान चाचा

काश आज बाहर से कोई

जत्था आ जाये

इबादत करने वालों का

मेरे बताशे

और बगल वाले भगत के

सारे फूल बिक जाये

भिखारी भी प्लानिंग कर रहे थे


आज कोई बड़ा धर्मात्मा

गुजरे यहाँ से

और

दे जाये कुछ बड़ा दान हमें

पोले पर बैठे कौवे भी

मांग रहे थे भगवान से की

काश किसी के घर की रोटी

मिल जाये तो दिन बन जाये

कुत्ते भी ! आज दुसरे मोहल्ले

में जाऊंगा ! बस

वहां वर्चस्व जम जाये मेरा

घर में गृहणियां

काश आज सास बहु के

सीरियल में कुछ अनोखा

हो जाये

अपना ले मिहिर पार्वती को

तो मजा आ जाये


अकस्मात्

एक विस्फोट हुआ

नजरें उठ गयी

आवाज की दिशा में

सुदूरवर्ती इलाको में

जहाँ बस आवाज सुनाई दी

लोगो ने अपने दिलो को

तसल्ली दी

ये कहकर की

ट्रक का टायर फटा होगा

या

कही गैस की टंकी फटी है

शायद ...

पता नहीं


पर

हादसे की जगह

का मंजर क्या था

ये कोई कल्पना

नहीं कर पाया

क्षत विक्षत लाशें

टूटी दुकानें

महँगी गाड़ियाँ

सब लावारिस पड़ी थी

और खून !

खून तो जैसे

जमीन को

धोने के लिए

प्रयोग किया गया था

राहत कार्य अपेक्षित था

पर व्यवस्था जो उपेक्षित थी

देर सवेर प्रशासन

और आस पास के लोगो

की मदद से सब

पुनर्व्यवस्थित

किया गया



रफ़्तार धीमी तो हुई

पर रुकी नहीं

जिंदगी थमी मगर

झुकी नहीं

सब सामान्य हो गया

बाजारें फिर खुल गयी

लोग फिर उसी तरह

बेतहाशा भागने लगे

बच्चे स्कूल जाने लगे

हाँ कुछ चीजें बदल गयी

लोगो ने अपनी कीमती

और मूल्यवान चीजें

सहेजनी शुरू कर दी

यथा गहने, पैसे, कागजात

जाने कब क्या हो जाये

और हाँ

इंश्योरेंस  के पेपर 

भी दुरुस्त करा लिए

माँओ ने छोटे बच्चो के

इंस्ट्रूमेंट बॉक्स में

फ़ोन नंबर और एड्रेस

लिखकर डाल दिया है

किसी आशंकित

आशंका से ग्रस्त होकर

मोड़ पर के

मजार के पास

रहमान चाचा

जो बताशे की रेहड़ी

लगाते थे

आज नहीं आयें हैं

तो भगत ने

जो साथ में ही

चादर पर फूल

बेचता है

दोपहर में उनके

घर जाने और

उन्हें ये समझाने

का प्रोग्राम

बनाया है की

आप डरो मत

जब ऊपर वाले का

फरमान होगा


तब

सबको जाना है

दुकान लगाओ

आज बहुत सारे

लोग आयें थे

इबादत करने

डरे थे सब धमाके से

कल उम्मीद है

की ऐसी ही भीड़ होगी

दो पैसे मिलेंगे

यूँ घर में दुबक कर

बैठे रहने से क्या मिलेगा


निचला तबका तो

ऐसे ही जीता है

पानी कम

आंसू ज्यादा

पीता है

सब वापस आ गए

अल्लाह भगवान करते

छोड़ आये

सुलगते सवालों को

घरो के दहलीज के अन्दर


और ये मेट्रो कल्चर वाले

बस इतना ही

कह पाए की

"शिट यार" !! 

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