Thursday, March 20, 2014

लिव -इन -रिलेशनशिप ---वर्जना या आज का सच ! सरस दरबारी

सरस दरबारी
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    लिव -इन -रिलेशनशिप ---वर्जना या आज का सच !
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   तान्या एक संभ्रांत परिवार में पली, आधुनिक विचारों वाली युवती थी.. उच्च शिक्षा का मन बना वह विदेश में एम्.एस.करने चली गयी. शिक्षा पूरी होने के बाद नौकरी भी मिल गयी. अब तक तो कॉलेज के हॉस्टल में रहने, खाने की सुविधा थी. पर अब उसे सारा इंतज़ाम खुद करना थामहंगाई इतनी की BHK का जुगाड़ बैठा पाना भी मुश्किल था, लेकिन इस वक़्त सिर पर छत सबसे बड़ी ज़रुरत थी सो उसने अपने खर्चों में भारी कटौती कर एक बेडरूम  हॉल का फ्लैट किराये पर ले लिया. इससे खर्चे का बोझ और बढ़ गया.
कुछ समय बाद उसीके ऑफिस के एक कलीग, श्लोक से  उसकी दोस्ती हो गयी. दोस्ती घनिष्टता में बदल गयी और दोनोंने  विवाह करने का मन बना लिया. पर इसके लिए परिवार की रज़ामंदी ज़रूरी थी. पर जब तक बैंक से लिया गया एजुकेशन लोन चुकता हो जाये ...विवाह के लिए घर पर कोई राज़ी होता. तो सालभर तो शादी का कोई सवाल ही नहीं था.
ऐसे में दोनों ने तय किया चलो पहले लोन ही उतारते हैं, जब तक सिर पर यह दायित्व रहेगा, हम और कुछ सुचारू रूपसे नहीं कर पाएंगे.
पहला कदम था , खर्चों में कटौती. दो अलग अलग गृहस्थियाँ चलाना काफी महँगा था, सो उन्होंने सोचा क्यों हम साथ रहें, इससे हमारे खर्चे आधे हो जायेंगे. और तान्या ,श्लोक के स्टूडियो अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गयी. सब कुछ बहुत आसान हो गया. उनके खर्चे बचने लगे , वे एक दूसरे को ज्य़ादा  समय देने लगे , समझने लगे और सालभर में एक दूसरे की कमियों, अच्छाइयों को पूरी तरह जान गए.

साथ रहनेवाली बात काफी समय तक घर वालों से छिपाकर रखी, क्योंकि जानते थे यह बात उन्हें कभी हज़म नहीं होगी. तान्या ने ज्य़ादा  से ज्य़ादा  पैसे भेजकर अपना लोन भी चुकता कर दिया और उचित समय देखकर घरवालों पर अपनी पसंद ज़ाहिर कर दी, और हंसी ख़ुशी उनका विवाह संपन्न हुआ.

यह तो था एक पहलू
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   पर सभी इन दोनों की तरह मैच्यौर और समझदार नहीं होते.
"लिव इन रिलेशनशिप ", आज, यह शब्दावली जितनी आम हो गयी है उतनी आज से ५० साल पहले नहीं थी. ऐसा करना तो क्या उसकी कल्पना भी अविश्वसनीय थी.
'भला ऐसा भी कहीं होता है ...शादी से पहले साथ रहना...छी: छी:'
लेकिन वक़्त बदला . समय का पहिया घूमता गया. हमेशा की तरह धारणाएं बदलीं, संस्कार बदले ,रूढ़ियाँ बदलीं , और शनै: शनै: कल का ग़लत, आज का सही बनता गया .पुरानी प्रथाएं, रूढ़ियाँ वर्जित होती गयीं और जो कल 'अविश्वसनीय' था आज सम्भव होने लगा.
कोई भी शै पूरी तरह स्याह या सफ़ेद नहीं होती. सिर्फ मात्रा या अंश का अंतर होता है ...कहीं पर सफ़ेद का अंश ज्य़ादा होता है,कहीं काले का. और यही तय करता है की वह कितना सही है या कितना ग़लत; कितना मान्य है या कितना अमान्य!
लिव इन रिलेशनशिप भी ऐसी ही एक वर्जना है ...टैबू हैहमारा समाज जिसे स्वीकारने से छिटकता है .
पश्चिमी देशों में यह एक आम समझौता है ...जब तक मन रहा साथ रहे, जब मन भर गया, अलग हो गए..!!
'यह समाज की सबसे मज़बूत संस्था,' परिवार', की बुनियाद पर गहरा प्रहार है', 'उच्श्रृंखलता की चरम सीमा है' , और 'विवाह जैसे पवित्र बंधन के नाम पर गाली है' . यह है हमारी धारणा, क्योंकि हमारे संस्कारों ने हमें यही सिखाया. लेकिन आज की पीढ़ी की सोच बदली है. उनका तर्क है की विवाह के बाद हमें जिसके साथ पूरा जीवन व्यतीत करना है, उसे जानना बहुत
  ज़रूरी है. जिसके पल्ले से हमें बांधा जा रहा है उससे हमारी सोच  मेल खाती भी है कि नहीं, इसे समझना ज़रूरी है.

फ़र्ज़ कीजिये कि अरेंज्ड या प्रबंधित विवाह के बाद , विवाहित जोड़े को एहसास हो कि वे दोनों ही परस्पर विरोधी सोच, स्वाभाव और व्यक्तित्व, के मालिक हैं तब वे इस रिश्ते का बोझ कैसे ढो पाएंगे ……तब उनके दांपत्य जीवन का क्या हश्र होगा .....और अगर वे संस्कारों में बंधकर या बड़ों के दबाव में आकर समझौता कर भी लें तो क्या यह उन दोनों के साथ न्याय होगा ....और ऐसे समझौते से हुए बच्चे ....वे किस मन:स्तिथि से गुज़रेंगे, जब ऐसे माहौल में पलेंगे जहाँ भावनात्मक सुरक्षा नहीं है....ऐसे में वे कितना और कैसे पनपेंगे ..आगे चलकर उनका व्यक्तित्व कैसा होगा  .... क्योंकि माता पिता के मध्य तनावबच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालता है.

अमूमन लिव -इन रिलेशनशिप लोग इसलिए पसंद करते हैं कि वे पारिवारिक जीवन से जुड़े उत्तरदायित्वों और जटिलताओं से दूर रहकर, केवल उससे जुड़े सुख भोगना चाहते हैं . अगर महज इसीलिए कोई लिव इन रिलेशनशिप की पैरवी करता है, तो यह सर्वथा अमान्य है .....ऐसी ही प्रवृत्तियों की वजह से इस किस्म का समझौता या जीने का ढंग , हमारे समाज में मान्य नहीं है.

इसीके साथ एक दूसरा प्रश्न भी उठता है .... कि लिव इन रिलेशनशिप से हुए बच्चों का भविष्य क्या है? जब उन्हें जन्म देने वाले ही एक दूसरे के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित नहीं हैं, तो वे बच्चों के प्रति क्या उत्तरदायित्व निभाएंगे ? ऐसी उपज का क्या होगा जहाँ उन्हें भावनात्मक सुरक्षा, परिवार की आत्मीयता और संरक्षण नहीं मिलेगा. यह समस्या तो दोनों प्रकार की स्तिथियों में सम्भव है जहाँ अनिच्छा से विवाह हुआ हो, या जहाँ ज़िम्मेदारियों को वहन करने की अनिच्छा हो.

लेकिन बदलती सोच, बदलते परिवेश और उनसे जुड़े हालातों  ने लिव इन रिलेशनशिप को किसी हद तक स्वीकृत किया है. अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता दे दी है और संसद को उन औरतों और बच्चों की सुरक्षा के लिए कड़े नियम बनाने की ताकीद दी है जो इस रिश्ते से प्रभावित होंगे, या हो रहे हैं.


समाज शास्त्री डॉ.सेलिन सनी जो की रिसर्च इंस्टिट्यूट , राजागिरी कॉलेज ऑफ़ सोशल साइंस में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं, का मानना है कि  "समय के साथ सोच बदली ज़रूर है , पर आज भी विधिवत संपन्न हुआ विवाह ही पति पत्नी के बीच सबसे पवित्र बंधन माना जाता है". दरअसल लिव- इन रिलेशन एक सहूलियत का विवाह ( मैरिज ऑफ़ कन्वेनियन्स ), या एक अनुकूलता या अविरोध का विवाह (मैरिज ऑफ़ कम्पैटबिलिटी) है कि वचनबद्धता या प्रतिबद्धता ( कमिटमेंट ) का विवाह . और मैं समझती हूँ कि वचनबद्धता , विश्वास और समर्पण , यह हर रिश्ते की नींव की वह ईंटें हैं जहाँ से रिश्तों की ईमारत उठनी शुरू होती है, फिर चाहे वह  ईमारत किसी ज़मीन पर खड़ी हो.
-सरस दरबारी


जन्मतिथि -  सितम्बर  १९५८
ब्लॉग       - www.merehissekidhoop-saras.blogspot.in
ईमेल       - sarasdarbari@gmail.com

 इटावा (.प्र ) में जन्म हुआ
मुंबई विश्व विद्यालय से राजनितिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री l
विद्यार्थी जीवन में कई कवितायेँ लिखीं और अंतर महाविद्यालय कहानी लेखनकविता लेखन प्रतियोगिताओ में कई पदक और ट्राफी प्राप्त कीं .
प्रखर साहित्यिक पत्रिका 'दीर्घामें 'विशेष फोकस ' के अंतर्गत ११ कविताओं का प्रकाशन.
नवभारत टाइम्स में कविताओं का प्रकाशन
आकाशवाणी मुंबई से 'हिंदी युववाणी ' व् मुंबई दूरदर्शन से 'हिंदी युवदर्शनका सञ्चालन
'फिल्म्स डिविज़न ऑफ़ इंडियाके पेनल पर 'अप्रूव्ड वोईस'
फिर विवाहोपरांत पूर्णविराम
३० साल बादफेब्ररी २०१२ सेब्लॉग की दुनिया में प्रवेश और फिर लेखन की एक नए सिरे से शुरुआत.
रश्मि प्रभाअवं हिंदी युग्म प्रकाशन का काव्य संग्रह "शब्दों के अरण्य में " अवं  सत्यम शिवम् का कविता संग्रह "मेरे बाद " ( उत्कर्ष प्रकाशन ) की समीक्षा
साझा काव्य संग्रह - शब्दों के अरण्य मेंअरुणिमाबालार्कएवं शब्दों की चहलकदमी




  

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