Saturday, January 05, 2013

'अनुगूँज ' कार्यक्रम में वंदना ग्रोवर द्वारा प्रस्तुत कविताएँ

 वंदना ग्रोवर    
  उर्दू शायरा
कवयित्री

हिंदी और पंजाबी में लिखी वंदना ग्रोवर जी की कविताएँ सहजता और सादगी से भरपूर हैं, इनकी कविताओं में शब्दों के स्वर बहुत धीमें और खूबसूरत होतें हैं ,  फर्गुदिया द्वारा आयोजित 'अनुगूँज' कार्यक्रम में वन्दना ग्रोवर द्वारा प्रस्तुत कविताएँ ...







वे सुण        

वे    
सुण

बड़ा रिस्की ज्या हो गिया ऐ
सारा मामला
हाल माड़ा ऐ मिरा
जित्थे वेखां
तूं दिसदा एं
गड्डी दे ड्रेवर विच
होटल दे बैरे विच
दफ्तर दे चपरासी विच

वे
सुण

एस तरां चल नी होणी
जे आणा है ते आ फेर
कदे लफ्जां दा सौदागर बण के
उडीक रईं आं
कदे पढ़ेंगा ते कहेंगा फखर नाल
जिस्म औरत दा
नीयत इंसान दी ते ज़हन कुदरत दा
लेके जम्मी सी
हक दे नां ते ज़ुल्म नई कीत्ता
फ़र्ज़ दे नां ते ज़ुल्म सिहा नई

वे
सुण

ना कवीं कदे जिस्म मैनू
ना कवीं कदे हुस्न
ना रुबाई ना ग़ज़ल कवीं
बण जावांगी कुज वी तेरी खातिर

वे
सुण

तेरे वजूद नू अपना मनया
इश्क़ लई इश्क़ करना सिखया
घुटदे साहां नाल
क़ुबूल करना सिखया
ते पत्थर हिक्क रखना सिखया

वे
सुण

तू मैंनू मगरूर कैन्ना एं
मैं तैंनू इश्क़ कैंनी आं

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आँखें बंद होती और  
दुनिया के दरवाज़े खुल जाते
आम बहुत ख़ास हो जाता
अलफ़ाज़ सजे-धजे ,नए -नए
खूबसूरत लिबास में
ज़हन पर दस्तक देते
वो अधमुंदी आँखों से पकडती ,
दिल के करीब लाती
महसूस करती
साँसें रफ़्तार पकडती
ज़हन जज़्बात बेकाबू हो जाते
आँखें खुल जाती
तब
न अह्सास न अलफ़ाज़

एक औरत
बिस्तर पर दम तोड़ रही होती ..


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उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा
कितने दिन हुए तुम्हे
आँख बंद किये
अपने दिल की सुने
कितने अच्छे थे वो दिन
जब शब्दों की दुनाली से
ख्यालों को ज़मीनोंदाज़ कर दिया जाता
अँधेरे मौसमो
गहराते सायों को
नेस्तनाबूद किया जाता
तुम्हारे आत्म-समर्पण ने
अलसा दिया है सपनों को
अब ढूंढ रहे हैं
आँखों की छाँव
भटक रही हैं आँख
भटक रहे हैं सपने
ठहरी आँख को नहीं है कोई इंतज़ार
न देखती हैं बाहर
न देखती हैं भीतर
अलसाए से लम्हे
वक़्त से नज़रें चुराते
दामन से लिपटे
मासूम बच्चे की मानिंद बेखबर
बैठे हैं देहरी पर
तकते हैं राह
कि बजेगा घड़ियाल
और चल देंगे आगे
कुछ भी तो नहीं होता
रुक गया है सब
सुनो !
पलक को झपकने दो
आँख को सोने दो
सपनों को आने दो
दुनिया को चलने दो
फर्क पड़ता है
तुम्हारे होने,
न होने से



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घुटता है दम
लरजता है कलेजा
दरवाजे खोल दो

मेरी सुबह को अन्दर आने दो

खंजर लो
उतार दो
मेरे सीने में

मुझे जीने दो


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अन्दर दा शोर एहना वध गिया है
बाहर दीयां वाजां सुणाई नईं देंदीयाँ

ओह कोल वी हैं ते हैं दूर वी बहुत
उसदे आन दीयां आहटां सुणाई नईं देंदीयाँ

मरण नूं जी ते नईं करदा हुन मिरा
मैंनू आप्नियां सावां सुणाई नईं देंदीयाँ

ज़ख्म दे रई है ज़द्दो-ज़हद आपणे नाल
क्यूं किसे नूं कुरलाहटाँ सुणाई नईं देंदीयाँ

ओ इश्क है मेरा, ओ ही रब्ब है मेरा
क्यूं मेरियाँ फ़रियादां सुणाई नईं देंदीयाँ

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