नित्यानंद गायेन
20 अगस्त 1981 को पश्चिम बंगाल के बारुइपुर , दक्षिण चौबीस परगना के शिखरबाली गांव में जन्मे नित्यानंद गायेन की कवितायेँ और लेख सर्वनाम, कृतिओर ,समयांतर , हंस, जनसत्ता, अविराम ,दुनिया इनदिनों ,अलाव,जिन्दा लोग, नई धारा , हिंदी मिलाप , स्वतंत्र वार्ता , छपते –छपते , समकालीन तीसरी दुनिया , अक्षर पर्व, हमारा प्रदेश , ‘संवदिया’ युवा कविता विशेषांक , कृषि जागरण आदि पत्र –पत्रिकाओं में प्रकशित .
इनका काव्य संग्रह ‘अपने हिस्से का प्रेम’ (२०११) में संकल्प प्रकाशन से प्रकशित .कविता केंद्रित पत्रिका ‘संकेत’ का नौवां अंक इनकी कवितायों पर केंद्रित .इनकी कुछ कविताओं का नेपाली, अंग्रेजी,मैथली तथा फ्रेंच भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है . फ़िलहाल हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन.
इनका काव्य संग्रह ‘अपने हिस्से का प्रेम’ (२०११) में संकल्प प्रकाशन से प्रकशित .कविता केंद्रित पत्रिका ‘संकेत’ का नौवां अंक इनकी कवितायों पर केंद्रित .इनकी कुछ कविताओं का नेपाली, अंग्रेजी,मैथली तथा फ्रेंच भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है . फ़िलहाल हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन.
१.मैं भी पर्वत होना चाहती हूँ
जारी है तुषारापात निरंतर
फिर हौसला न पस्त हुआ
पर्वत का
मैं भी पर्वत होना चाहती हूँ
हिम, बिजली और आंधियों से
लड़ते रहना है मुझे |
२. ताड़ का पेड़
तालाब के किनारे
एक पेड़ है ताड़ का
जल दर्पण में दिखती है
परछाई ...
फैला कर अपने विशाल पत्तों को
वह करता है इजहार
अपनी खुशी का
क्यों दुखी है आइना देखकर
तमाम इंसान ?
३. साईकिल मरम्मत वाला
साईकिल के हर पुर्जे से
वाकिफ़ है याकूब भाई
हथौड़ी, छैनी,पेचकस, ग्रीस
सब पहचानते हैं
उसके हाथों को
कभी नही करते नखरे
याकूब भाई
चेन कसता है
ग्रीस लगता है
मेरी बीमार साईकिल
स्वस्थ होकर शुक्रिया अदा करता है
साईकिल डाक्टर याकूब को ......||
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4- किन्तु फीका पड़ चुका है मेरा चेहरा ....
उन्होंने कहा
हम हैं भारतवासी
हमें गर्व है ..
मैंने कहा
मैं भी हूँ भारतवासी
और मुझे दुःख है , देखकर
कुपोषण के शिकार बच्चों की तस्वीरें
सूखे शरीर ,चहरे पर झुर्रिओं के साथ
ज़हर के नीले रंग ढका हुआ
या फिर फंसी पर लटकता किसान
होगा तुम्हें गर्व
पर मुझे खेद है
सीखने, खेलने की उम्र में
मजदूरी करता बचपन
मेरे देश में
चमकता होगा
तुम्हारा राज्य
,
,
और देश
किन्तु फीका पड़ चुका है
मेरा चेहरा .....
5-
शिक्षक दिवस पर ..
हे गुरुवर
मैं, एकलव्य की जाति का हूँ
सूद्पुत्र हूँ कर्ण की तरह
किन्तु ,मैं नही दे सकता
अपना अंगूठा
न ही बना सकता हूँ
आपकी प्रतिमा
पर , कमी नही है मुझमें
सूद्पुत्र हूँ कर्ण की तरह
किन्तु ,मैं नही दे सकता
अपना अंगूठा
न ही बना सकता हूँ
आपकी प्रतिमा
पर , कमी नही है मुझमें
प्रतिभा की ..
फिर भी ,
मैं उन लाखों बच्चों में हूँ
जो आज भी वंचित हैं
शिक्षा के अधिकार से
पूर्ण आदर और विनम्रता के साथ
मेरा यह निवेदन है आपसे
न कीजिए भेदभाव मेरे साथ
मेरे जन्म और जाति के आधार पर
क्यों कि अर्जुन की परीक्षा के लिए
एकलव्य और कर्ण का बनना जरूरी है
नही तो फिर से
शिक्षा की रणभूमि पर
निहत्था मारा जायेगा कर्ण
और गुमनामी में खो जायेगा
एकलव्य ....
फिर भी ,
मैं उन लाखों बच्चों में हूँ
जो आज भी वंचित हैं
शिक्षा के अधिकार से
पूर्ण आदर और विनम्रता के साथ
मेरा यह निवेदन है आपसे
न कीजिए भेदभाव मेरे साथ
मेरे जन्म और जाति के आधार पर
क्यों कि अर्जुन की परीक्षा के लिए
एकलव्य और कर्ण का बनना जरूरी है
नही तो फिर से
शिक्षा की रणभूमि पर
निहत्था मारा जायेगा कर्ण
और गुमनामी में खो जायेगा
एकलव्य ....
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बहुत खुशी हुई . आभार स्वीकारें .
ReplyDeleteअच्छी कवितायें नित्यानन्द भाई की ।फर्गुदिया का आभार.....
ReplyDeleteनित्यानंद की कवितायें हमारे समय की तर्जुमानी करती हैं और उन्हें अपने समय का सजग कवि सिद्ध करती हैं...
ReplyDeleteनित्यानंद हमारे समय के बेहद सजग कवी हैं और छोटी छोटी डिटेल भी चूकते नही हैं...उनमे संभावनाएं हैं...
ReplyDeleteशुक्रिया भैया , मेरा लेखन सार्थक हुआ .
Deleteशुक्रिया भैया , मेरा लेखन सार्थक हुआ .
Deleteनित्यानंद भाई की कवितायों में समय से मुखरता से बात करते रहने की निरंतरता का भाव झलकता है, जिनकी पलकें समय से आँख मिलाते हुए कभी नीची नहीं होती हैं. फर्गुदिया का आभार!
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