Saturday, January 05, 2013

"अनुगूंज" कार्यक्रम में आनंद कुमार शुक्ल द्वारा प्रस्तुत कविताएँ

आनंद कुमार शुक्ल         



युवा कवि आनंद कुमार शुक्ल की कविताओं में  गाँव की यादों की सुखद अनुभूति हैं, महानगरों की व्यवस्था के प्रति शिकायत  हैं. 'फर्गुदिया' समूह द्वारा आयोजित "अनुगूंज" कार्यक्रम में आनंद  कुमार शुक्ल द्वारा  प्रस्तुत संवेदनशील  कविताएँ . 












१-


अबके बरस-
जब सावन आएगा
मैं रिमझिम में
मतवाला-सा नाचूँगा...
हर बरस-
मैं बस यही ख्वाब देखता हूँ...

२-
खेत में पड़ी यादें
बीज हैं.
बीज से
छोटे-छोटे अंकुर फूटते हैं.
और अंकुर पौधा बनते हैं
फिर, अन्न बनते हैं
ढेर सारे
भूखे पेट भरने के लिए.
या पेड़ बनते हैं
जो छाया देते हैं
किसानों को
और उन राहगीरों को
जो जाते हुए कहीं
तनिक देर ठहर जाते हैं.

लेकिन, खेत में पड़ी यादें
दिल्ली शहर में
वैसी नहीं रह जातीं....
दिल्ली में न कोई बीज है
न कोई अंकुर
और न ही कोई पौधा!
चंद पेड़ हैं
जो सरकारी तंत्र के काम आते हैं
कि दिल्ली में हरियाली है.
दिल्ली में
हरियाली हो न हो
बहुत बड़ी-बड़ी जड़े हैं,
उनकी नहीं
जो यहाँ के आदिवासी थे,
उनकी जो यहाँ आये
और अपनी जड़ें जमाते गए...
अक्सर
जब गुजरता हूँ
राजनीतिक, सामाजिक गलियारों से
और जब टटोल कर देखता हूँ अपना मन
एक उलझा हुआ सिस्टम पाता हूँ.
क्योंकि-
दिल्ली शहर एक-दूसरे में
भसड़ मचा चुकी जड़ों का शहर है.
यहाँ न कोई बीज है
न कोई अंकुर
और न ही पौधा....


३-
बदरा कारे
घुमड़-घुमड़
मन में कोई
बात कहें
बरसें
और मोर नाचें
तो ठहकें
रात को चाँद ढंकें
दिन को इक गिलाफ करें
सांझ को कोई
आफताब रचें
सुर्ख आबनूसी ज़र्द
और कोई मिस्वा
आब करें ऐसे
बातों बातों में बहकें
सितार साज करें,
बदरा कारे
कोई बात कहें!


आनंद कुमार शुक्ल   

कवि और आलोचक.
जन्म स्थान इलाहाबाद. वहीं से बी.ए. तक की पढ़ाई. जे.एन.यू., नई दिल्ली से उच्च शिक्षा.
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के साहित्यिक-सामाजिक अवदान पर पी-एच.डी. की उपाधि.
कविता संग्रह 'प्रकीर्णित' क्रांति मंच प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित.
पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें और लेख प्रकाशित.
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अध्यापन.
सम्प्रति: संयुक्त राष्ट्र के भारत में संचालित एक कार्यक्रम से संबद्ध और स्वतंत्र रूप से पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन.
मो.- 09968002284
ई मेल- anandkrshukla@gmail.com

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