सरोज सिंह
माँ !! उसका जीवित बचना उचित था या मर जाना ? ---- कुछ अनछुए पहलू,कुछ सवाल
दामिनी की दारुण मृत्यु की खबर मिलते ही विचार शून्य थी. बस शोक ,शर्मिंदगी,बेबसी और लाचारी के भाव ही उभरे .....कुछ सत्ताधारियों ने उसे शहीद और बलिदानी कहकर इस समस्या से पल्ला झाड़ने की चेष्टा की . ये बलिदान नहीं, नृशंस बलि है , उसका जिस्म जरुर ख़त्म हुआ है, पर उसकी रूह हम सभी के जेहन में तब तक भटकेगी,झकझोरती रहेगी ,जब तक इन्साफ नहीं होता .
मेरी 13 साल की बेटी शुभि, जो टी वी पर कार्टून शो देखना पसंद करती है, पिछले तेरह दिनों से केवल न्यूज़ चेनल ही देखती रही , उसके जाने की खबर सुनते ही मुझसे कहने लगी मम्मी अच्छा ही हुआ न दामिनी मर गयी, अगर जिन्दा रहती भी तो फिजिकली और मेंटली सोसाइटी को कैसे फेस करती ? उसकी बात बड़ी क्रूर लगी मुझे, कैसे सपाट उसने कह दिया ......पर बात में सत्यता तो थी ही .....शारीरिक तकलीफ से ज्यादा लोगों की दया दृष्टि उसके लिए कष्टकर होती .
हमारे समाज में एक नहीं ,ऐसी कई दामिनियाँ है ,जिसके बारे में हम नहीं जानते कि वो किस गर्त में गई . इस घटना के बाद लोगो के हुजूम और जन जागृति देखकर कुछ उम्मीद तो बंधी है ,शायद अब वो समय आ गया है जब समाज एक वैचारिक क्रांति चाहता है ,जहाँ सेक्स शब्द को अपराध से न जोड़ा जाये ......पीड़ितों को समाज में स्थान और सम्मान मिले.....महिलाएं खुलेआम वक़्त बेवक्त बेख़ौफ़ बाहर निकल सकें ! समानता व स्वतंत्रता हो .
इस दुर्घटना ने जेहन में कुछ प्रश्न उजागर किये हैं, जिनका हल ढूँढना और समझना चाहती हूँ ...
• हमारे समाज में चर्चा का विशेष मुद्दा बाहर महिलाओं का पहनावा क्योँ बनता है जबकि मुद्दा बलात्कार का होता है.
• ऐसे माहौल में क्या हम बेहिचक अपने बच्चों को पढने या नौकरी करने दूसरे शहरों में भेज सकते हैं ?
• .हमारे समाज में क्योँ "प्यार" शब्द, "रेप" शब्द से भी अधिक अप्रतिष्ठित है ?
• हमारे कानून व्यवस्था में अभी भी पुरातन व अप्रासंगिक नियमों का अनुपालन क्योँ हो रहा है ?
• हमारे समाज के कुछ लोग अब भी यह मानते हैं कि महिलाओं का देर रात निकलना उचित नहीं है ?
• क्योँ बाज़ार में एसिड कहीं भी आसानी से ख़रीदा जा सकता है जबकि अल्कोहल खरीदने के लिए परमिट की जरुरत होती है ?
• यदि बलात्कार पीड़ित बच भी जाए तो क्या समाज उसे पुरवत उसी सम्मान के साथ अपनाता है ?
• हम सेक्स की सही परिभाषा अपने बच्चो के समक्ष रखने में क्योँ झिझकते हैं ...नतीजा यह होता है कि वो इधर- उधर से और सस्ती पत्रिकाओं से गलत जानकारी हासिल करते हैं जिसका नतीजा आज हम भुगत रहे हैं .
• गर्भ से लेकर गृह तक समाज से लेकर संसार तक महिलायें क्योँ सुरक्षित नहीं है ?
जारी .............
सरोज सिंह
निवास : जयपुर
नैनीताल से भूगोल विषय स्नातकोत्तर एवं बी एड
नैनीताल से भूगोल विषय स्नातकोत्तर एवं बी एड
बास्केटबाल उत्तर प्रदेश राज्य स्तर पर सहभागिता
विवाहोपरांत कुछ वर्षों तक सामाजिक विज्ञानं की शिक्षिका रहीं.
सी आई एस ऍफ़ " के परिवार कल्याण केंद्र की संचालिका के तौर पर कार्यरत
"स्त्री होकर सवाल करती है" (बोधि प्रकाशन) ,युग गरिमा और कल्याणमयी पत्रिका और विभिन्न ई पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित हैं
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