Thursday, December 06, 2012

अनीता कपूर जी की पांच कविताएँ


अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र “यादें” की प्रमुख संपादिका , कवयित्री अनीता कपूर जी की कविताएँ स्त्री मन के भावों की   सहज अभिव्यक्ति है 








1.

नहीं चाहिए

अब
तुम्हारे झूठे आश्वासन
मेरे घर के आँगन में फूल नहीं खिला सकते
चाँद नहीं उगा सकते
मेरे घर की दीवार की ईंट भी नहीं बन सकते
अब
तुम्हारे वो सपने
मुझे सतरंगी इंद्रधनुष नहीं दिखा सकते
जिसका  शुरू मालूम है  कोई अंत
अब
तुम मुझे काँच के बुत की तरह
अपने अंदर सजाकर तोड़ नहीं सकते
मैंने तुम्हारे अंदर के अँधेरों को
सूँघ लिया है
टटोल लिया है
उस सच को भी
अपनी सार्थकता को
अपने निजत्व को भी
जान लिया है अपने अर्थों को भी
मुझे पता है अब तुम नहीं लौटोगे
मुझे इस रूप में नहीं सहोगे
तुम्हें तो आदत है
सदियों से चीर हरण करने की
अग्नि परीक्षा लेते रहने की
खूँटे से बँधी मेमनी अब मैं नहीं
बहुत दिखा दिया तुमने
और देख लिया मैंने
मेरे हिस्से के सूरज को
अपनी हथेलियों की ओट से
छुपाए रखा तुमने
मैं तुम्हारे अहं के लाक्षागृह में
खंडित इतिहास की कोई मूर्त्ति नहीं हूँ
नहीं चाहिए मुझे अपनी आँखों पर
तुम्हारा चश्मा
अब मैं अपना कोई छोर तुम्हें नहीं पकड़ाऊँगी
मैंने भी अब
सीख लिया है
शिव के धनुष को
तोड़ना


2
सीधी बात

आज मन में आया है
 बनाऊँ तुम्हें माध्यम
करूँ मैं सीधी बात तुमसे
उस साहचर्य की करूँ बात
रहा है मेरा तुम्हारा
सृष्टि के प्रस्फुटन के
प्रथम क्षण से
उस अंधकार की
उस गहरे जल की
उस एकाकीपन की
जहाँ  तुम्हारी साँसों की
ध्वनि को सुना है मैंने
तुमसे सीधी बात करने के लिए
मुझे कभी लय तो कभी स्वर बन
तुमको शब्दों से सहलाना पड़ा
तुमसे सीधी बात करने के लिए
वृन्दावन की गलियों में भी घूमना पड़ा
यौवन की हरियाली को छू
आज रेगिस्तान में हूँ
तुमसे सीधी बात करने के लिए
जड़ जगतजंगम संसार
सारे रंग देखे है मैंने
 कविता .........
तुम रही सदैव मेरे साथ
जैसे विशाल आकाश,
जैसे स्नेहिल धरा,
जैसे अथाह सागर,
तुमको महसूस किया मैंने नसों मेंरगों में
जैसे तुम हो गयी, मेरा ही प्रतिरूप
शब्दों के मांस वाली जुड़वा बहनें
स्वांतसुखाय जैसा तुम्हारा सम्पूर्ण प्यार...
इसील्ये
आज मन में अचानक उभर आया यह भाव-
कि बनाऊँ  तुम्हें माध्यम
अब करूँ मैं सीधी बात तुमसे

3
साँसों के हस्ताक्षर

हर एक पल पर अंकित कर दें
साँसों के हस्ताक्षर
परिवर्तन कहीं हमारे चिह्नों   पर
स्याही  फेर दे
साथ ही
जिंदगी के दस्तावेजों पर
अमिट लिपि में अंकित कर दे
अपने अंधेरे लम्हों के स्याह हस्ताक्षर
कल को कहीं हमारी आगामी पीढ़ी
भुला  दे हमारी चिन्मयता
चेतना लिपियाँ
प्रतिलिपियाँ....
भौतिक आकार मूर्तियां मिट जाने पर भी
जीवित रहे हमारे हस्ताक्षर
खोजने के लिए
जीवित रहें हमारे हस्ताक्षर
कहीं हमारा इतिहास
हम तक ही सीमित  रह जाये
इसीलिये आओ
प्रकृति के कण-कण में
सम्पूर्ण सृष्टि में
चैतन्य राग भर दें
अपनी छवि अंकित कर दें
दुनिया की भीड़ में खुद को
शामिल  करें।
भविष्य की याद हमें स्वार्थी बना कर
आज ही पाना चाहती है
अपना अधिकार
 हम गलत है हमारे सिद्धांत
फिर भी
स्वार्थी कहला कर नहीं लेना चाहते
अपना अधिकार
आओ
अंकित कर दें
हर पल पर
अपनी साँसों के हस्ताक्षर


4
अलाव

तुमसे अलग होकर
घर लौटने तक
मन के अलाव पर
आज फिर एक नयी कविता पकी है
अकेलेपन की आँच से

समझ नहीं पाती
तुमसे तुम्हारे लिए मिलूँ
या एक और
नयी कविता के लिए ?


5
खिड़कियाँ

लफ़्ज़ों के झाड़ उगे रहते थे
जब तुम थे मेरे साथ
हम दोनों थे हमारे पास
रिश्ते की ओढ़नी थी
लफ़्ज़ों के रंगीले सितारे
टँके ही रहते थे
नशीले आसमाँ  पर.....
फिर तुम चले गए

कई बरसों बाद
अचानक एक मुलाक़ात
हम ओढ़नी के फटे हुए
टुकड़ों की तरह मिले
मेरा टुकड़ा
तुम्हारे सड़े टुकड़े के साथ
पूरी  कर पाया वो अधूरी नज़्म
सिसकते टुकड़ों पर फेर लकीर
साँस लेने के लिए
खोल दी है मैंने
सभी खिड़कियाँ
____________


परिचय
 डॉ. अनिता कपूर
जन्म : भारत (रिवाड़ी)
शिक्षा : एम .ए.(हिंदी एवं अँग्रेजी )पी-एच.डी (अँग्रेजी ), सितार एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा.
कार्यरत : अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र “यादें” की प्रमुख संपादिका
 प्रकाशन: बिखरे मोती ,कादम्बरी, अछूते स्वर एवं ओस में भीगते सपने और साँसों   के हस्ताक्षर (काव्य-संग्रह), दर्पण के सवाल (हाइकु-संग्रह), अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित,प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक शीघ्र प्रकाशीय. 
Address
Union City, CA 94587  USA

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