मंजिलें और भी हैं - विश्व विकलांग दिवस पर विशेष
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मेरा मानना है....
कुछ तस्वीरें जो बारहा नज़र नहीं आतीं
खूबसूरत इतनी कि दिल में समा जातीं
वो कलम जो कुछ कह नहीं पातीं
काश लिखती तो इतिहास बना जातीं
दूर से मंजिल को देखने की है मजबूरी
काश मंज़िल उन तलक चल कर आ जाती ..
1/12/12 को इंडिया हैबिटेट सेंटर में 'मंथन एवार्ड' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ' इनेबल इंडिया ' संगठन 'मंथन एवार्ड, 2012 का विजेता रहा.साहित्य से लगाव रखने वाले मेरे कुछ प्रिय मित्र नेक मकसद से बनाये गए इस संगठन निस्वार्थ भाव से जुड़ें हैं, उनमें से एक मित्र जो संगठन के निदेशक हैं श्री प्राणेश नागरी जी की रचना और संगठन से जुडी कुछ जानकारी आप सभी के लिए 'फर्गुदिया' के माध्यम से .
इनेबल इंडिया वर्ष 1999 से शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से अक्षम लोगों के साथ काम कर रही बैंगलोर मैं स्थापित स्वयंसेवी संस्था है। संस्था की संस्थापक शांति राघवन हैं और सह संस्थापक दीपेश सुतारिया हैं। शान्ति एवं दीपेश अमरीका में सूचना प्रौद्योगिकी में अभियंता का कार्य कर रहे थे। इसी दौरान उन को अपने परिवार में अक्षमता का सामना करना पड़ा जब शान्ति के भाई की द्रष्टि हीनता अचानक उन के समक्ष आयी । अपने भाई की अक्षम सिथिति से सामना करते करते शांति को विशवास हुआ कि उन की अक्षमता का सामना करने की विधि और भी कई लोगों के जीवन में इस समस्या के सुधार हेतु काम आ सकती है।
आज इनेबल इंडिया हर वर्ष 400 विकलांगता से प्रभावित लोगों को कंप्यूटर प्रशिक्षण देते हाई एवं उन को 350 से ऊपर कॉरपोरेट नौकरी के अवसर प्रधान करते हैं।
अवार्ड्स
Ashoka fellowship
GLobal Amazing Indian Award from Times now.
National award for working in the area of disability
Manthan -2012
Hellen keller shell NCPEDP Award
इनेबल इंडियामें मेरे दिन
मैं हर दिन यहाँ आता हूँ
दिन की शुरुवात करने
मैंने अक्सर सोचा है
क्यूँ आता हूँ यहाँ मैं यहाँ
इन सबके बीच
जो देख नहीं पाते
जो सुन नहीं पाते
जो चल-फिर नहीं पाते
और जो समझ भी नहीं पाते !
शायद इसलिए
कि यहाँ ज़िन्दगी
राग दरबारी सी मधुर
सूर्य की किरणों सी प्रखर
और विस्तृत आकाश सी
मुझे छूती है, मुझसे
आलिंगनबद्ध हो जाती है
और मुझसे कहती है
काया और काया के अवशेष
विकलांग नहीं होते
विकलांग होती है सोच
और सोच यहाँ
सूर्य के संवाद में
मन मग्न,नित नयी
दिशाओं पर चल पड़तीं हैं
यह सब मुझसे कहतें हैं
कि जीवन अँधेरे और उजाले
के उस पार रहता है
मात्र चलना-फिरना ही
मंजिल पाना नहीं
हाथ अक्सर इसलिए
खाली होतें हैं कि
इनसे कुछ ऐसा हो
जो आज तक देखा नहीं
और आज तक सुना नहीं !
(प्राणेश नागरी )
ये पंक्तियाँ समर्पित हैं उन्हें .. वो जो देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते, चल नहीं सकते लेकिन सब कुछ समझ सकतें हैं... वो भी बहुत कुछ कर सकतें हैं ..
प्रणय गाडोदिया
प्रणय गाडोदिया टेक्नोलोजी में बहुत ज्यादा रूचि रखतें हैं और इस समय स्कोर फाउनड़ेशन में प्रोग्राम मेनेजर हैं . उन्नीस वर्ष की उम्र में प्रणय की दृष्टिहीनता का स्पष्ट पता चला और इसकी पहचान retianitis pigmentosa के रूप में हुई . चूँकि इसमें दृष्टि क्षय बहुत धीमी गति से होता है , अत : इस रोग को समझने में 6 माह का समय लगा . दृष्टिहीनता ने प्रणय के आत्म-विश्वास और जीवन के प्रति उत्साह को कम नहीं किया . उन्होंने वर्ष 2006 में दृष्टिहीनता में सहायक एक हेल्प लाइन 'Eyeway ' शुरू की और वर्ष 2009 में SMS अलर्ट वेब लिंक शुरू की जिसमे दृष्टिहीन व्यक्ति प्रोडक्ट ,रोज़गार इत्यादि संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं . प्रणय रेडियो कार्यक्रम ' ये है रौशनी का कारवां ' में 5 साल तक रेडियो प्रोड़क्शन से भी जुड़े रहे। अपने पहले साल में यह कार्क्रम 6 प्राइमरी चेनलों से प्रसारित होता था ,किन्तु अपने शुरुआत के दूसरे वर्ष से यह विविध भारती के 30 केन्द्रों से प्रसारित होता है .
प्रणय ने 01 दिसंबर ,2012 को इंडिया हेबिटेट सेंटर में आयोजित 'मंथन अवार्ड ' में 'एनेबल इंडिया ' एन जी ओ के लिए स्वैच्छिक सेवाएँ दीं और एन जी ओ के स्टाल को कुशलता पूर्वक संभाला .
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प्रस्तुति
संचालिका
शोभा मिश्रा
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मेरा मानना है....
कुछ तस्वीरें जो बारहा नज़र नहीं आतीं
खूबसूरत इतनी कि दिल में समा जातीं
वो कलम जो कुछ कह नहीं पातीं
काश लिखती तो इतिहास बना जातीं
दूर से मंजिल को देखने की है मजबूरी
काश मंज़िल उन तलक चल कर आ जाती ..
1/12/12 को इंडिया हैबिटेट सेंटर में 'मंथन एवार्ड' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में ' इनेबल इंडिया ' संगठन 'मंथन एवार्ड, 2012 का विजेता रहा.साहित्य से लगाव रखने वाले मेरे कुछ प्रिय मित्र नेक मकसद से बनाये गए इस संगठन निस्वार्थ भाव से जुड़ें हैं, उनमें से एक मित्र जो संगठन के निदेशक हैं श्री प्राणेश नागरी जी की रचना और संगठन से जुडी कुछ जानकारी आप सभी के लिए 'फर्गुदिया' के माध्यम से .
इनेबल इंडिया वर्ष 1999 से शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से अक्षम लोगों के साथ काम कर रही बैंगलोर मैं स्थापित स्वयंसेवी संस्था है। संस्था की संस्थापक शांति राघवन हैं और सह संस्थापक दीपेश सुतारिया हैं। शान्ति एवं दीपेश अमरीका में सूचना प्रौद्योगिकी में अभियंता का कार्य कर रहे थे। इसी दौरान उन को अपने परिवार में अक्षमता का सामना करना पड़ा जब शान्ति के भाई की द्रष्टि हीनता अचानक उन के समक्ष आयी । अपने भाई की अक्षम सिथिति से सामना करते करते शांति को विशवास हुआ कि उन की अक्षमता का सामना करने की विधि और भी कई लोगों के जीवन में इस समस्या के सुधार हेतु काम आ सकती है।
आज इनेबल इंडिया हर वर्ष 400 विकलांगता से प्रभावित लोगों को कंप्यूटर प्रशिक्षण देते हाई एवं उन को 350 से ऊपर कॉरपोरेट नौकरी के अवसर प्रधान करते हैं।
अवार्ड्स
Ashoka fellowship
GLobal Amazing Indian Award from Times now.
National award for working in the area of disability
Manthan -2012
Hellen keller shell NCPEDP Award
इनेबल इंडियामें मेरे दिन
मैं हर दिन यहाँ आता हूँ
मैंने अक्सर सोचा है
क्यूँ आता हूँ यहाँ मैं यहाँ
इन सबके बीच
जो देख नहीं पाते
जो सुन नहीं पाते
जो चल-फिर नहीं पाते
और जो समझ भी नहीं पाते !
शायद इसलिए
कि यहाँ ज़िन्दगी
राग दरबारी सी मधुर
सूर्य की किरणों सी प्रखर
और विस्तृत आकाश सी
मुझे छूती है, मुझसे
आलिंगनबद्ध हो जाती है
और मुझसे कहती है
काया और काया के अवशेष
विकलांग नहीं होते
विकलांग होती है सोच
और सोच यहाँ
सूर्य के संवाद में
मन मग्न,नित नयी
दिशाओं पर चल पड़तीं हैं
यह सब मुझसे कहतें हैं
कि जीवन अँधेरे और उजाले
के उस पार रहता है
मात्र चलना-फिरना ही
मंजिल पाना नहीं
हाथ अक्सर इसलिए
खाली होतें हैं कि
इनसे कुछ ऐसा हो
जो आज तक देखा नहीं
और आज तक सुना नहीं !
(प्राणेश नागरी )
ये पंक्तियाँ समर्पित हैं उन्हें .. वो जो देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते, चल नहीं सकते लेकिन सब कुछ समझ सकतें हैं... वो भी बहुत कुछ कर सकतें हैं ..
प्रणय गाडोदिया
प्रणय गाडोदिया टेक्नोलोजी में बहुत ज्यादा रूचि रखतें हैं और इस समय स्कोर फाउनड़ेशन में प्रोग्राम मेनेजर हैं . उन्नीस वर्ष की उम्र में प्रणय की दृष्टिहीनता का स्पष्ट पता चला और इसकी पहचान retianitis pigmentosa के रूप में हुई . चूँकि इसमें दृष्टि क्षय बहुत धीमी गति से होता है , अत : इस रोग को समझने में 6 माह का समय लगा . दृष्टिहीनता ने प्रणय के आत्म-विश्वास और जीवन के प्रति उत्साह को कम नहीं किया . उन्होंने वर्ष 2006 में दृष्टिहीनता में सहायक एक हेल्प लाइन 'Eyeway ' शुरू की और वर्ष 2009 में SMS अलर्ट वेब लिंक शुरू की जिसमे दृष्टिहीन व्यक्ति प्रोडक्ट ,रोज़गार इत्यादि संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं . प्रणय रेडियो कार्यक्रम ' ये है रौशनी का कारवां ' में 5 साल तक रेडियो प्रोड़क्शन से भी जुड़े रहे। अपने पहले साल में यह कार्क्रम 6 प्राइमरी चेनलों से प्रसारित होता था ,किन्तु अपने शुरुआत के दूसरे वर्ष से यह विविध भारती के 30 केन्द्रों से प्रसारित होता है .
प्रणय ने 01 दिसंबर ,2012 को इंडिया हेबिटेट सेंटर में आयोजित 'मंथन अवार्ड ' में 'एनेबल इंडिया ' एन जी ओ के लिए स्वैच्छिक सेवाएँ दीं और एन जी ओ के स्टाल को कुशलता पूर्वक संभाला .
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प्रस्तुति
संचालिका
शोभा मिश्रा
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बहुत नेक प्रयास है ...ऐसे समर्पण से ही निशक्त लोगों को एक मजबूत हाथ मिलेगा !
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