Thursday, December 27, 2012

एक समाधान की प्रतीक्षा

वंदना ग्रोवर   

16 दिसंबर दामिनी/निर्भया /पीडिता की ज़िन्दगी के साथ साथ बहुत सारी जिंदगियों में बदलाव लाया है ..बदलाव के नाम पर भय ,आक्रोश और कहीं कहीं हताशा भी नज़र आई ..

इनसे बात करने पर इन युवा बच्चियों ने जिनमे एक बी बी ए की छात्रा ,एक दिल्ली विश्वविद्यालय में बी कॉम (ऑनर्स ) के साथ साथ छात्र संघ की वाइस प्रेजिडेंट ,एक ग्राफिक डिज़ायनर ,एक 12 वीं और एक दसवीं की छात्रा हैं, अलग अलग बातचीत करने पर पहली बात सभी ने यही की कि वे सब बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं .

दसवीं में पढने वाली मुस्कान घर से अकेले बाहर निकलने में डरने लगी है ,बोलती भी कम है .उनकी माँ का कहना था कि शाम को रोज़ उन्हें बच्ची को टयूशन से लेने जाना पड़ रहा है ..

ग्राफिक डिज़ायनर अदिति को उनके पिता सुबह उनके ऑफिस छोड़ने जाते हैं और शाम को लेकर आते हैं और इनकी अपनी छोटी बहन ,जो सी ए कर रही हैं और आक्रामक स्वभाव की है ,को सख्त हिदायत है कि फब्ती कसने वालों को अनसुना किया जाए .

बी बी ए की छात्रा अनामिका के मन में काफी आक्रोश तो है ,पर असहाय होने का भाव भी है .उन्हें हर नज़र बलात्कारी लगने लगी है .अनामिका ने तो यहाँ तक कहा कि वो पीडिता का दर्द महसूस करती हैं एक बुरा सपना सा है ये ,लेकिन उनके लिए कोई भविष्य नहीं देखती .

छात्र संघ की वाइस प्रेजिडेंट अनिला कहती हैं कि असुरक्षा की भावना बढ़ी है और साफ़ तौर पर मानती हैं कि ऐसी स्थिति में कुछ भी करना संभव नहीं है .वह दिन में भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं .

12वीं की छात्रा वेरोनिका कहती हैं कि उनकी माँ नहीं चाहती कि फब्ती कसने वालों को पलट कर जवाब दिया जाए और अपनी मां की इस सलाह से बहुत हैरान नज़र आती हैं क्योंकि उनकी नज़र में उनकी माँ हमेशा बहुत साहसी महिला रही हैं .और अब मां के दृष्टिकोण में आया बदलाव वेरोनिका समझ नहीं पा रही हैं

सभी युवतियाँ यौन शिक्षा पाठ्य-क्रम में शामिल करने के पक्ष में हैं ,सख्त क़ानून की मांग तो करती हैं लेकिन अनिला मृत्यु दण्ड के विरोध में अपनी यह दलील देती हैं कि बतौर सज़ा मृत्यु दण्ड की स्थिति में पीडिता की ह्त्या करने की संभावना बढ़ जायेगी क्योंकि एक हत्या करने पर भी समान दण्ड का प्रावधान होने की स्थिति में बलात्कारी सबूत मिटाने के लिए पीडिता की हत्या कर सकता है .

अनामिका कहती हैं कि मानसिकता और सोच में बदलाव बहुत ज़रूरी है ,अब वो फब्तियों को अनसुना करने लगी हैं जबकि अनिला पलट कर जवाब देने की अपनी जिद पर कायम हैं जबकि उनकी मित्र ऐसी स्थिति में चुप रहना पसंद करती हैं .

अनामिका कहती हैं कि कड़े क़ानून के बावजूद सोच न बदलने पर स्थिति में ज्यादा परिवर्तन की आशा नहीं दिखाई देती .पहले वो छेड़-छाड़ को लेकर भयभीत नहीं थी ,पर अब उन्हें लगता है कि यह कब एक दूसरी स्थिति में बदल जाए ,अब विश्वास नहीं किया जा सकता .काफी रोष से उन्होंने कहा कि आक्रान्ता की हिम्मत भी इसीलिए होती है क्योंकि वह जानता है कि उसे सज़ा नहीं होगी ,लोकतंत्र है ,क़ानून है पर उसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हुआ है

अनिला,अदिति,वेरोनिका ,अनामिका सभी का कहना था कि लड़कों के पालन-पोषण और शिक्षा पर शुरू से ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे एक मानसिक रूप से रुग्ण युवा बनने की संभावनाएं न्यूनतम हो ..कैसे ? यह जवाब इन युवतियों ने अपनी अपने ढंग से दिया और परिवार, विशेष रूप से माता-पिता की भूमिका को महत्वपूर्ण माना .

 अभिवावक के विचार: युवा बेटियों की माँओँ से बात करने पर लगभग यही असंतोष दिखाई दिया कि इस सब के लिए प्रशासन ज़िम्मेदार है .अदिति की माँ काफी हद तक फ़ोन और इन्टरनेट को भी दोषी मानती हैं जबकि अनिला और अनामिका की माएँ कहती हैं कि इस स्थिति को नए सिरे से देखे जाने की आवश्यकता है बच्चियों को ,उनके पहनावे को दोषी ठहराना गलत है ,जब छोटी बच्चियां और उम्रदराज़ महिलायें इन हमलों की शिकार हो रही हैं ,तब पहनावे पर प्रश्न-चिह्न लगाना उचित नहीं .

सब एक बात पर सहमत थे कि अब वे भयभीत हैं ,असुरक्षा की भावना बढ़ी है ,कानून और व्यवस्था में उनकी आस्था कम हुई ,लेकिन ख़त्म नहीं हुई है और एक समाधान की प्रतीक्षा है उन्हें .....

जारी है .......

6 comments:

  1. iss dardvodaral ghatna ne yuvtiyon ke man me dar paida kar diya hai, isko dur karne ki koshish bhi karni hi hogi...

    ReplyDelete
  2. Being a father of a daughter I can feel the pain of Damini n her parents, I feel helpless n depressed when I watch TV n hear wat police n politicians debate on the ongoing issue. I feel the accused should not be hanged rather they should b punished in such a way that they plead for death n they r forced to live in a hell till they r allive. Mout bahut sasti maafi hogi en jaanwaro k liye.

    ReplyDelete
  3. जो हुआ या जो होगा इसकी पड़ताल करती रपट
    इस तरह की वारदातोँ के पीछे कुंठित मानसिकता वाले पुरुष या लड़के होते हैँ
    आपकी पड़ताल मेँ यह बात सामने आयी कि वर्तमान मेँ लड़कियाँ असुरक्षित हैँ
    सार्थक रपट के लिये बधाई

    ReplyDelete
  4. bahut sarthak prayas hai vandana di apka yah lekh,.. mana ki sabhi dare hue hain sahme hue hain,.. koi mahol ko doshi manta hai koi parmparon ko,..koi pashchatya sabhyata ko,... sabhi apni apni jagah sahi tark bhi dete hain,..sudhar ke marg bhi sujhae jate hain,.. sarthak kadam bhi utae jate hain,.. par do char kadam chalte hi sath chalne wale kadmo ki sankhya kam hoti jati hai,..aandolan shuru to hote hain,..lekin rajneeti ka rang chadhte hi moulik samsya puri tarah rajnaitik hokar rah jati hai,.. main to yahi samjh pai hun ki koi bhi sudhar ab khud se shuru ho,..har vyakti vyaktiat sudhar me jut jae ,.. tabhi kuch ho sakega warna har koi dusro pe ungali uthane me itna mashgul hai ki apni galtiyon ko najarandaj kar jata hai,.. hum aaj se khud ko aur apne pariwaro ko sudharne ka sankalp karne ka andolan shuru kare to shayad kuchh ho,... ye main sochti hun jaruri nahi ki sab sahmat ho,..

    ReplyDelete
  5. हर शब्द , हर भाव, हर डर ...........सब सही !!!

    ReplyDelete
  6. सार्थक और संवेदनशील राय मिली आपसे दोस्तों ..स्थिति भयावह है पर मानना होगा कि अच्छे लोगों की तादाद आज भी कहीं बहुत ज्यादा है ,और बदलते हालात को लेकर सभी की चिंताएं और प्रश्न एक से ही हैं .ऐसी स्थिति में उम्मीद की जा सकती है कि मिलकर हल भी ढूंढ लिया जाएगा ..
    आभार दोस्तों

    ReplyDelete

फेसबुक पर LIKE करें-