आज छह दिसंबर है.... इतिहास के लिए काले अध्याय की तरह... आज के दिन सिर्फ एक विवादित ढांचा ही नहीं ... बहुत कुछ टूटा था ... किसी की साँसें .. किसी उम्मीदें ... स्वयं सुशीला पुरी जी के शब्दों में ..
"आज छह दिसंबर है। यह एक ऐसी काली तारीख है, जिसने आजाद व धर्मनिरपेक्ष भारत को जो जख्म दिये, वो अभी तक हरे हैं। इस जख्म को यह हकीकत और भी कुरेदती है कि बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने वालों को अब तक सजा नहीं मिली है।
इसी घटना की बेचैनी में मैंने उसी साल ( या शायद एक साल बाद...ठीक से याद नहीं ) कुछ कवितायें लिखी थी ..."
अयोध्या--- 4
अयोध्या में गर्म हवाएँ चलती हैं
बिल्कुल गर्म
जेठ की दुपहरी की तरह
तपती है अयोध्या
आस्था की आँधी मे
उड़ गया है सब कुछ
ज़िद की बुनियाद पर
बनते हैं मंदिर यहाँ
बनती है मस्जिद यहाँ
कराहती है सरयू
आकंठ प्यास मे डूबी
उसकी गोद मे निढाल हैं
लू खाए राम ।
नाम --- सुशीला पुरीजन्मतिथि --- 31 मई
जन्मस्थान -- बलरामपुर, उत्तर -प्रदेश
शिक्षा --- M. A. B.ed
प्रकाशन ----- दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, कादंबिनी, हंस, कथाक्रम, वसुधा, वागर्थ, निष्कर्ष, अमर उजाला, उत्तर प्रदेश, पाटल और पलाश, दुनिया इन दिनों, गुंजन, संडे पोस्ट, लोकायत, प्रगतिशील वसुधा, पाखी, स्त्रीकाल, साक्षात्कार, लमही, रचना समय, जनसत्ता आदि पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से रचनाओं का निरंतर प्रसारण और कुछ कविताओं का पंजाबी ,नेपाली , इंग्लिश में अनुवाद व एक कविता का नाट्य रूपांतरण । एक दैनिक पत्र व एक पत्रिका में नियमित स्तंभ -लेखन !
सम्मान--- प्रथम रेवान्त 'मुक्तिबोध साहित्य सम्मान'
संपर्क -------
सुशीला पुरी
सी -479/सी ,
इन्दिरा नगर ,
लखनऊ -- 226016
मो 0-- 09451174529 E-mail------ puri.sushila@yahoo.in
अयोध्या---- 1
अयोध्या में मिलती है
टिकुली और सेनुर
टिकुली से झाँकती है
सीता की मुस्कान
सुहागिनें करतीं हैं
परिक्रमाएँ
अटल सुहाग के वास्ते
मत्तगजेन्द्र के पास
औरतें मांगती हैं
मांग की लाली
मुस्कराती हैं सीता
मंद-मंद
उनकी मुस्कान में
छिपी है अयोध्या ।
अयोध्या--- 2
चौदह कोसी अयोध्या में
आतें हैं तीर्थ-यात्री
परिक्रमाएँ करते हैं
नंगे-पाँव
उनके पाँवों के साथ
चलती है अयोध्या
डोलते हैं राम
आस्था के जंगल में
छिलते हैं पाँवों के छाले
रिसता है खून
तीर्थ यात्री
दुखों की गठरियाँ
ढोते हैं सिर पर
उफनती है सरयू
कि धो दे उनके पाँव
उमगती है हवा
कि सुखा दे उनके घाव
पर उनकी परिक्रमा
कल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज
राम की ।
अयोध्या--- 3
गूंगी अयोध्या
टूटते हैं मंदिर यहाँ
टूटती हैं मस्जिद यहाँ
टूट कर बिखर जाते हैं
अजान के स्वर
चूर-चूर हो जाती है
घंटियों की स्वरलहरियाँ
कोई नहीं बचाता यहाँ
सरगमों के स्वर
कोई नहीं पोछता
सरयू के आँसू
उसके लहरों की उदास कम्पन
अक्सर भटकती है सरयू
खोजते हुए
सीता की कल-कल हँसी ।
सभी लाजवाब
ReplyDeleteसुशीला जी की कविताएं भाव और विचार से बनी ऐसी छ्डी होती है जो हृदय पर टंकार पैदा करती ! ये कविताएं भी वैसी है .... उन्हे बधाई
ReplyDeleteसुशीला जी की कविताएं भाव और विचार की ऐसी छ्ड है जो हृदय पर टंकार देती है , ये कविताएं भी ठीक वैसी ही है ... उन्हे बधाई बहुत बहुत
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