Sunday, December 16, 2012

"एक कली मुस्काई "




उपासना सियाग   इधर कविताओं के साथ-साथ कहानियाँ भी लिख रहीं हैं, जीवन में दुःख और सुख धूप-छाँव  की तरह आते-जाते रहतें हैं , उपासना सियान जी की कहानियाँ बनते-बिगड़ते  रिश्तों में सामंजस्य बैठाये रखने का संदेस देतीं हैं. प्रस्तुत है उनकी अप्रकाशित कहानी "एक कली मुस्काई".







सोनाली हर बार यानि पिछले आठ वर्षों से अपना जन्म -दिन , घर के पास के पार्क में खेलने वालों बच्चों के साथ ही मनाती है। उनके लिए बहुत सारी  चोकलेट खरीद कर उनमे बाँट देती है।आज भी वह पार्क की और ही जा रही है।उसे देखते ही बच्चे दौड़ कर  पास आ गए।और वह ...! जितने बच्चे उसकी बाँहों में आ सकते थे , भर लिया। फिर खड़ी हो कर  चोकलेट का डिब्बा खोला और सब के आगे कर दिया।बच्चे जन्म-दिन की बधाई देते हुए चोकलेट लेकर खाने लगे।
 " एक बच्चा इधर भी है ,  उसे भी चोकलेट मिलेगी क्या ...?" सोनाली के पीछे से एक आवाज़ आई।
सोनाली ने अचकचा कर मुड़  कर देखा।उसे तो वहां कोई बच्चा नज़र नहीं आया। उसके सामने तो एक सुंदर कद -काठी का एक व्यक्ति खड़ा था। हाँ , उसके चेहरे पर एक बच्चे जैसी शरारती मुस्कान जरुर थी।
" कहाँ है बच्चा ...? मुझे तो नज़र नहीं आ रहा।" सोनाली थोड़ी सी चकित हुयी सी बोली।
" वह बच्चा मैं ही हूँ , मैं अपनी माँ का सबसे छोटा बेटा  हूँ और अभी मेरे कोई बच्चा  नहीं है तो मैं खुद को बच्चा ही मानता हूँ ...!"उस अजनबी ने हँसते हुए कहा।
" लेकिन मैं दो चोकलेट लूँगा ...!" उसने बच्चों की तरह की कहा।
" लेकिन क्यूँ ...! दो किसलिए ? सभी बच्चों ने एक -एक ही तो ली है ...!" सोनाली ने भी उसके सेन्स ऑफ़ ह्यूमर को समझते हुए ,थोडा सा डांटते हुए कहा।
" लो कर लो बात , मैं बड़ा भी तो हूँ एक चोकलेट से कैसे काम चलेगा मेरा ...!" वह फिर बच्चों की तरह ही मुस्कुरा कर बोला।
" लीजिये आप जितनी  मर्ज़ी हो उतनी ही चोकलेट लीजिये ..." हंस पड़ी सोनाली। उसके आगे डिब्बा ही कर दिया।
" शुक्रिया ...! मैं दो ही लेता हूँ। मेरा नाम आलोक है। मैं यहाँ आगरा में एक सेमिनार में आया हूँ। मैं लखनऊ से हूँ और बोटनी का लेक्चरर हूँ। शाम को घूमने  निकला तो यह पार्क दिख गया और यहाँ आ गया।यहाँ आपको चोकलेट लिए देखा तो मुझसे रहा नहीं गया।
 "आप यहीं की रहने वाली है क्या ? " आलोक ने पूछा।
" जी हाँ ...मैं यहाँ सरकारी स्कूल में हिंदी पढाती हूँ। " कह कर सलोनी चल दी।
सलोनी घर आ कर चुप चाप कुछ देर कुर्सी पर बैठी रही। फिर उसकी माँ का कानपुर  से फोन आ गया।
थोड़ी ही देर में बाहर  का अँधेरा गहराने लगा था।सोनाली को अब उठाना ही पड़ा। लाइट्स जलाते हुए सोच रही थी , घर में तो रौशनी हो गयी पर मन के अन्दर जो अँधेरा है वह कैसे दूर होगा।
कहने को जन्म-दिन था पर ऐसा भी कभी मनाना होगा कब सोचा था।ऐसे तो लगभग दस सालों से होता आ रहा है।जब से वह आगरा आयी है।
रसोई में गयी कुछ बनाया कुछ फ्रिज से निकाला, गर्म किया और खा लिया।खाते हुए सोच रही थी कि इस बार छुट्टियों में घर जा कर आएगी।
फिर अपना लेपटोप लेकर बैठ गयी। 
आज कल लोगों में सोशल साइट्स भी काफी लोकप्रिय हो चुका है। उसका भी एक एकाउंट था। उसी में थोड़ी बिजी हो गयी। तभी उसकी नज़र एक  दिलचस्प वक्तव्य पर पड़ी।साथ ही में उस पर की गयी रोचक टिप्पणी पर भी।पढ़ कर उसे हंसी आ गयी।गौर से देखा के वह कौन है। उसे याद आया शायद ये वही है जो उसे आज शाम को पार्क में मिला था।
"अरे हां ...!लगता तो वही है नाम भी वही है आलोक , आलोक मेहरा ...!" उसने उस को मित्रता का निवेदन भेज दिया।

सुबह फिर से वही दिनचर्या ....जल्दी उठो , नाश्ता बनाओ , स्कूल जाओ फिर घर। उसे इंतजार होता था शाम का , जब वह पार्क में जा कर कुछ देर बच्चों के साथ बतिया लेती और मन में ख़ुशी सी महसूस करती थी।
और फिर रात का काला अँधियारा शरू होता तो उसे लगता शायद रात उसके मन के अंधियारे से अँधेरा  और ले लेती है।
रात के खाने से निबट कर वह अपना लेपटोप लेकर बैठी और अपना सोशल नेटवर्क पर अपना अकाउंट खोल कर देखा तो आलोक का मेसेज आया हुआ था।
" अच्छा जी आप सोनाली है ...,आपने नाम तो बताया ही नहीं था उस दिन , ये तो आपकी सूरत  कुछ याद रह गयी थी तो  आप पहचान में आ गयी।"
सोनाली ने बताया , वह कानपुर की रहने वाली है और यहाँ आगरा में पिछले दस सालों से हिंदी की टीचर है। परिवार के बारे में पूछा तो वह बात टाल  गयी।
आलोक ने बताया वह चार भाई -बहन है और  वह सबसे छोटा है। सभी लोग साथ ही रहते हैं और ' वेल सेटल्ड ' है। उसने अभी शादी नहीं की हालाँकि वह 45 साल का है।क्यूँ नहीं की , क्यूँ की उसे कोई मिली ही नहीं उसके मन के मुताबिक।जब मिलेगी वह शादी जरुर करेगा।
थोड़ी देर  इधर -उधर की बात कर वह  रात हो गयी कह कर बंद कर के सोने चली गयी।
सोनाली सोच रही थी के वह आलोक को उसके बारे में क्या बताती ...!
क्या यह बताती वह कि उसके 25 वर्ष की एक बेटी और 20 वर्ष का बेटा है। वह तलाक शुदा है।आलोक ही क्यूँ वह किसी भी को क्यूँ बताये अपनी कहानी के बारे में।

सोनाली बचपन से ही बहुत शान -शौकत से पली थी।पिता जिला स्तरीय एक उच्चाधिकारी थे।बहुत रौबिला व्यक्तित्व था उनका। मजाल थी के कोई उनके आगे कोई आवाज़ भी ऊँची  कर सके। अपने पिता की बेहद लाडली सोनाली पढाई में  भी बहुत अच्छी  थी। माँ के तो आँखों का तारा और भाई की बहुत अच्छी और ज्ञानवान दीदी थी वह।
वह रविवार ही था जिस दिन उसके पिता भानु प्रताप किसी से फोन पर बात कर रहे थे। बात बंद कर के उसकी माँ नीलिमा को आवाज़ दी। वह बता रहे थे के उनके और उनकी बिटिया के तो भाग्य ही खुल गए। एक बहुत बड़े और प्रतिष्ठित व्यवसायी के यहाँ से सोनाली के लिए रिश्ता आया है।माँ ने बात का विरोध करते हुए कहा के अभी तो सोनाली सिर्फ दसवी कक्षा में ही है मात्र अठारह वर्ष की ही तो है। पर पिता को उसकी पढाई से मतलब नहीं एक अच्छा रिश्ता हाथ  से ना चला जाये , यह ज्यादा चिंता थी। उनके विचार से वह पढाई तो शादी के बाद भी कर सकती है लेकिन ऐसा अच्छा रिश्ता निकल जायेगा तो फिर क्या मालूम मिले या नहीं।सोनाली की मनस्थिति कुछ अजीब सी थी।ना तो उसने सहमती जताई और ना ही विरोध।वैसे भी उससे पूछा भी किसने था।जन्म कुंडली भी मिल गयी।
फिर आनन - फानन रिश्ता तय हो गया। उनके दूसरे रिश्ते दारों के लिए यह बहुत इर्ष्या का विषय बन गया और तब तो और भी जब उसकी सगाई में हीरे की अंगूठी और बहुत कीमती जेवर और कपडे आये।यह एक किवदंती की तरह कई दिन तक चर्चा का विषय बना रहा।
दोनों की जोड़ी कोई खास जच  भी नहीं रही थी।यह जलने वालों को कुछ सुकून भी दे रही थी।सोनाली बहुत सुंदर , सुन्दर कद , जो भी देखता एक बार बस देखता ही रह जाता। सुमित साधारण रंग रूप , कद में ज्यादा लम्बा नहीं था।तिस पर थोडा मोटा भी था।पर लड़के का रूप कौन देखता है बस उसमे गुण ही होने चाहिए ....रूप का क्या वह एक बार ही दिखता है गुण तो सारी  उम्र काम आते है। लेकिन कुछ तो बराबरी का होना चाहिए था। लेकिन यह सभी  सारे सवाल   हीरे की अंगूठी की चमक में दब कर रह गए।
सोनाली की सास तो उस पर बलिहारी जा रही थी उसके सर पर बार-बार ममता से हाथ फिराए जा रही थी।आखिर क्यूँ नहीं ममता लुटाती। उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी होने जा रही थी।बहू लाने  की ...हर माँ की इच्छा होती है एक चाँद सी बहू लाने की।
दसवीं का रिजल्ट आने के बाद सोनाली की शादी कर दी गयी। वहां भी बहुत स्वागत हुआ उसका। सास सच में ही बहुत ममतामयी माँ ही साबित हुयी।आखिर उनके एकलौते बेटे की बहू जो थी।ससुर भी बहुत अच्छे थे।और पति सुमित का व्यवहार ठीक -ठाक ही था।सुबह घर से निकलता शाम को ही घर आता ...पिता के साथ काम तो संभालता था पर ..

अब सोनाली को समझ आगया था कि उन्होंने अपने बिगडेल बेटे के पैरों में लगाम डालने के लिए इतनी जल्दी शादी की है।उसके साथ कोई दुर्व्यवहार भी नहीं था तो कोई लगाव भी नहीं था सुमित को। इसी दौरान उसकी सास ने उसको बाहरवीं की परीक्षा देने के लिए फार्म भरवा दिया। बीच में पढाई और साथ ही पति के साथ हनीमून भी दोनों चल रहा था। और हनीमून भी क्या था बस घर वालों को भुलावा ही  देना था।वहां भी काम के बहाने से सुमित दिन भर गायब ही रहता। कई-कई दिन बाहर रहने के बाद घर  वे दोनों लौट आते। 
इतना पैसा -रुतबा हौने के बाद भी सोनाली का मन एक बियाबान सा ही था।कोई फूल खिलने की उम्मीद नहीं थी वहां पर।
लेकिन एक दिन उसकी गोद में फूल खिलने की खबर से बहुत खुश  थी वह और सारा परिवार भी। यहाँ तो सुमित भी खुश था। बेटी हुई थी उसके ....सभी बहुत खुश थे। रूबल नाम रखा गया उसका।
सोनाली की पढाई भी साथ ही में चल रही थी।इस दौरान उसने  बी .ए . भी कर लिया था। सास ने सुमित और उसको कुछ दिनों के लिए गोवा भेज दिया, बेटी को अपने पास रख लिया। दो महीने का प्रोग्राम बना कर गए थे लेकिन बीच में ही लौटना पड़ा दोनों को ...कारण था सोनाली के गर्भवती होना।
अब वह बेटे की माँ बनी।नामकरण  , रोहन किया गया।
सब ठीक -ठाक ही चल रहा था।एक दिन सुबह -सुबह एक फोन आया और समय एक बारगी ठहरा हुआ लगा सभी को। समाचार था सुमित के चाचा -चाची का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया। उनकी बेटी करुणा ही बची थी।
करुणा अब उनके साथ ही रहने लगी।देखने में सुंदर और तेज़ - तर्र्रार करुणा ने सबके मनो को जीत लिया और बेटी के से अधिकार जताने लगी। सुमित के तो अधिक ही नज़दीक रहती थी। वो भी उससे बात कर के खुश होता था। जबकि कई बार सोनाली को करुणा के सामने झिडक भी दिया करता था।
लगभग एक साल बाद उसके ससुर का ह्रदयघात से निधन हो गया।अब तो सुमित के हाथों में सारा कारोबार आ गया था।वह भी एक कुशल व्यवसायी था। लेकिन एक अव्वल दर्जे का अय्याश  भी था।माँ की कोई परवाह नहीं थी। धीरे -धीरे वह निरंकुश होता जा रहा था। वह किसी की नहीं सुनता पर करुणा की लच्छेदार बातों  का बहुत आज्ञाकारी था। उसका कहा कभी नहीं टालता था। सोनाली की सास भी मानसिक रोगी जैसे होती जा रही थी।दिन में कई-कई बार कह उठती ये मौत उसे क्यूँ नहीं आती, क्यूँ नहीं कोई बस - ट्रेन ही उसके उपर से गुजर जाती।सोनाली को बात  बहुत हैरान करती और माँ के पास बैठ उनको समझाने की कोशिश करती। लेकिन माँ के आंसू थमते ही नहीं थे।
दोनों को एक दुसरे  ही का सहारा था।
एक रात को जब वह माँ के पास बैठी थी तो उन्होंने उसका हाथ पकड लिया , रोने लगी और बोली, " बेटी मैने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया , मैं बहुत बड़ी अपराधी हूँ तुम्हारी ,मैंने सोचा था , सुन्दर बहू लाऊंगी  तो इसके बहकते कदम थम जायेंगे। अब तो मुझे मर के भी चैन नहीं आएगा।"
ना जाने कितनी देर रोती  रही दोनों। सोनाली ने माँ को अपने बाँहों के घेरे में ले कर  खड़ा किया और बिस्तर पर सुला दिया। माँ ने हाथ नहीं छोड़ा जब तक वह सो ना गयी।
अगले दिन माँ उठी ही नहीं ,वह तो सो चुकी थी हमेशा के लिए।सोनाली को लगा जैसे उसकी अपनी ही माँ चली गयी।अब कौन सहारा था उसका।
अब शुरू हुआ सोनाली का मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का दौर। बहन करुणा दोगली राजनीती खेल रही थी। उसके सामने कुछ और सुमित के सामने कुछ और।और तो और बच्चों को भी भुआ जी का साथ भाने  लगा।ना जाने करुणा की मीठी  जुबान में क्या जादू था की हर कोई उसके वश में हुआ जाता था।
उन्ही दिनों सोनाली ने बी . एड . करने के लिए फार्म भी भर दिया। इतने तनावपूर्ण माहौल के बावजूद वह अपना मानसिक संतुलन बनाये हुए थी। वह सोच रही थी अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने बच्चों  को लेकर यहाँ से दूर चली जाएगी।
अब उसके माता -पिता को भी अपनी गलती महसूस हो रही थी।पर उसे ही संयम बनाने को कह रहे थे।
एक दिन बच्चों के स्कूल जाने के बाद उसे बाज़ार जाना था ,उसने सुमित से कहा की वह भी उसके साथ चले ,उस दिन वह घर ही था।पीठ में दर्द का कह इनकार कर दिया।वह अकेली ही चल दी।कुछ दूर जाने पर उसको याद आया के उसका केमरा भी थोडा ठीक करवाने देना था। अपनी गाडी को घर की और मोड़ ली। अपना कमरा खोलना चाहा तो अन्दर से बंद था।खटखटाया तो सामने करुणा थी , सोनाली की हैरानी की कोई सीमा नहीं थी।मुहं से कुछ बोला नहीं गया। करुणा का चेहरा भी सफ़ेद पद गया , वह जल्दी से बाहर  की और भागी।सोनाली ने 
सवालिया नज़र से सुमित की और देखा तो वह बेशर्मी से बोला , "मेरी पीठ पर बाम मल रही थी।"
उसे तो वहां कोई बाम तो क्या उसकी महक भी नहीं मिली , हाँ उसके नाक और मन तो कुछ और ही सूंघ रहे थे।वह जल्दी से बाहर आ गयी और सीधे लान की तरफ चली।घर में तो उसका दिल घुट रहा था।कैसे ही कर के अपनी साँसों को संयत कर रही थी। अपनी ही बात पर विश्वास नहीं कर रही थी।
" ठीक है सुमित एक अय्याश इन्सान है ,पर अपने ही घर में  ऐसा व्यभिचार तो नहीं करेगा ,लेकिन कमरा बंद करके बाम लगाने का क्या मतलब ...! "
अब उसे याद आ रहा था के क्यूँ उसकी सास रो-रो कर मौत माँगा करती थी।शायद उनको पता चल ही गया होगा।

आखिर उसे घर में तो आना ही था।लेकिन उस दिन के बाद से सुमित की प्रताड़ना और भी बढ़ गयी।उसे खर्च देना भी बंद कर दिया। कभी मांगती तो हाथ भी उठा दिया करता। एक दिन तो बहस इतनी बढ़ गयी के सुमित ने सोनाली की कनपटी  पर पिस्तौल ही रख दी और जान से मारने की धमकी देने लगा। करुणा ने कैसे बीच बचाव किया और उसे उसके कमरे में छोड़ आयी। वह सोनाली को बहुत हिकारत भरी नज़रों से देख रही थी।

वह हार मानने वालों में से नहीं थी सोनाली ।उसने पुलिस -स्टेशन जा कर अपनी शिकायत दर्ज करवा दी।पुलिस ने कार्यवाही तो की लेकिन वह शाम को जमानत पर वापस आ गया।यह सब उसके बच्चों के सामने ही हुआ था।और बाकी की कसर  करुणा ने पूरी कर दी।इस लिए वह भी सोनाली को ही दोषी मान रहे थे।वह दिन प्रति दिन बच्चों को उससे दूर तो किये ही जा रही थी और उस दिन पुलिस वाली घटना ने आग में घी का काम किया।उसने उस दिन सोचा काश वह अपने बच्चों को सही वस्तुस्थिति बताती तो आज उसे बच्चों की भी बेरुखी ना देखनी पड़ती।
उस दिन के बाद से सुमित ने घर में कदम रखना बंद कर दिया।घर में एक बने  तरफ गेस्ट हाउस में ही रहने लगा। कभी रात गहराती और उसके मन में घुटन सी होती तो वह खिड़की के पास खड़ी  हो बाहर की और देखती तो उसे अक्सर एक साया सा गेस्ट हाउस के पास लहराता हुआ सा नज़र आता। वह करुणा  ही थी। सोनाली को सोच कर ही मतली सी आ जाती और होठ घृणा से सिकुड़ जाते।
जब उसके माता पिता को यह सब मालूम हुआ  तो फौरन चले आये।साथ चलने को कहा , सोनाली ने मना  कर दिया के वह ऐसे नहीं जाएगी अपना हक़ ले कर जाएगी।
उसके पिता अपनी बेटी की हालत देख कर टूट चुके थे।वह सहन नहीं कर पाए और सोनाली का हाथ पकड कर रो पड़े ...एक ऐसा इन्सान जिसके एक इशारे पर दुनिया चला करती थी वह आज इतना मजबूर था। पछता रहा था अपने गलत फैसले  पर ....
संभाले भी नहीं संभल रहे थे वे ...
बेटी का पिता होना भी क्या मजबूरी है ,एक अपराधी जैसा हो जाता है एक इन्सान । उन्होंने तो बेटी की खुशियाँ ही चाही थी।
सोनाली ने कैसे  ही कर के पिता को संभाला  और कहा कि उनकी बेटी कमजोर नहीं है ,बहुत हिम्मत है उसमे।
माँ ने  सोनाली से कहा वह दोनों उसके फैसले में उसके साथ है।वह चाहे तो उनके साथ चल सकती है।बच्चों को यहीं उनके पिता के पास ही छोड़  दे। अब बेटी पन्द्रह साल की हो चुकी है उसे जब  पिता के व्यभिचार का पता चलेगा तो क्या सुमित को शर्मिंदगी नहीं होगी।
लेकिन सोनाली ने कुछ समय माँगा। उसे अपने बच्चों की और से कुछ उम्मीदें अभी बाकी थी।
बच्चों पर तो करुणा ने जैसे काला जादू ही कर दिया था।वह उसकी और देखना भी पसंद नहीं  करते थे।आखिरकार उसने वह घर छोड़ ही दिया। मायके आ गयी।
उसको संभलने में बहुत दिन लगे। तलाक की कार्यवाही में ज्यादा समय नहीं लगा।  इस दौरान उसने कई बार बच्चों से सम्पर्क करने की भी कोशिश की पर वे उससे बात ही नहीं करना चाहते थे।आखिर वह हार गई बच्चों के आगे। उनको भूलना भी कहा आसन था।
उन दो सालों  में उसने बी . एड . कर ली थी।अब आगरा में सर्विस कर रही थी। दस साल के लगभग होगया उसे आगरा में।पहले -पहल तो माँ कुछ दिन आ कर रही थी।पिता की बिगडती हालत देख सोनाली ने माँ को वापस कानपुर भेज दिया।धीरे-धीरे यहाँ भी रम गयी वह।पर मन का अँधियारा इतना था के उसे कुछ भी अच्छा ना लगता था .............

अगली सुबह जब वह सो कर उठी तो सर भारी हो रखा था।फोन करके अपनी सहेली को छुट्टी की अर्जी दे देने  को कह दिया।और फिर से लेट गयी।
जब काम वाली आयी तो खड़ी हो कर घर का जायजा लिया तो लगा की घर थोडा  बिखरा हुआ है तो आज क्यूँ न इसे ही समेटा जाये।सारा दिन घर को संवारने में ही लग गया।कामवाली खाना बना गयी थी।खाना खाने को मन नहीं हुआ तो सोचा के कुछ अच्छा बना कर खाया जाये।
अब शाम हुई ,चल पड़ी पार्क की और। बच्चों  से बातें कर  मन कुछ हल्का सा हुआ सोनाली का।
रात को जब लेपटोप लेकर बैठी तो अलोक भी ऑन  लाइन था। दोनों के कुछ देर बात की ..., 
फिर रोज़ ही बात होने लगी। 
आलोक का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर गजब का था ,बात कुछ ऐसी करता के वह हंस पड़ती।ऐसे ही एक दिन उसने सोनाली का फोन नंबर मांग लिया। एक बार तो वह झिझकी पर फिर उसे  बुरा नहीं  लगा नंबर देना।
एक दिन सोनाली ने अपनी सारी आपबीती भी उसे बता दी। सुमित ने बहुत अफ़सोस जताते हुए उससे सहानुभूति जताई और कहा के उसे यह सब एक बुरा सपना समझ कर भूल जाना चाहिए। एक नयी शुरुआत करनी चाहिए।
आलोक की बातें सोनाली को बहुत सुकून देती थी।

अब सोनाली भी मुस्कुराने लगी थी। अब उसे रात का अँधियारा ही नज़र नहीं आता था उसमे जड़े टिमटिमाते सितारे भी नजर आते, खिला चाँद भी नज़र आता। सच भी है हर इन्सान को साथी की जरूरत होती है। उसकी प्रकृति ही ऐसी है ,वह अकेला रह ही नहीं सकता।अकेलापन उसे मुरझा देता है। 
उसे  फूलो से बहुत प्यार था। अपने दो कमरे के मकान  में भी उसने बहुत सारे गमलों में  फूल खिला रखे थे।लेकिन जब मन ही मुरझाया हो तो कोई भी फूल मन को नहीं सुहाता।हां , वह सुबह उठते ही उनको संभालने जरुर जाती।रविवार को तो उनको पूरा समय देती थी।

उस दिन भी रविवार था।
उस दिन भी सुबह जब वह बालकनी खोल अपने गमलों में लगे फूलो को देखने गयी तो देख कर खिल पड़ी। सामने के गमले में लाल गुलाब के पौधे में एक कली  निकल आयी थी।सामने उगते सूरज की किरन और मुस्काती कलि को देख वह भी मुस्कुरा पड़ी।यह मुस्कान उसके दिल से निकली थी।शायद ये आलोक की संगत का असर था जो कि सोनाली की पीली रंगत को भी गुलाबी बनाता  जा रहा था।अब उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा था।उदासी कही दूर चली गयी हो जैसे।
थोड़ी देर में आलोक का फोन भी आ गया। वह अक्सर रविवार को ही फोन किया करता था।
वह किसी बात पर उसे हंसा रहा था। अचानक वह बोल पड़ा ," सोनाली , आई लव यू ......, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ ...!"
अचानक कही गयी बात पर वह जैसे चौंक पड़ी। पहले तो उसे कुछ नहीं सुझा और बोली , " तुम जानते हो मैं 45 साल की हूँ ,यह मेरी शादी की उम्र नहीं है ...!"
" कमाल है मैं भी 45 साल का हूँ ...और मेरी तो शादी की उम्र अभी आयी भी नहीं और तुम्हारी चली भी गयी ...?आलोक हंस  के बोला।
 " लेकिन आलोक , तुमसे मित्रता तक तो ठीक है लेकिन शादी की बात मत करो ..मेरे दो बच्चे भी है ...लोग क्या कहेंगे ? और तुम्हारे घर वाले , तुम्हारी माँ ने जो सपने सजाये हैं अपनी बहू के लिए ,वह एक तलाकशुदा - दो बच्चों की माँ के तो नहीं सजाये होंगे।इसलिए समझदारी की बात करो ऐसा बचपना शोभा नहीं देता तुम्हे और मुझे भी।" सोनाली कुछ परेशान  सी हो गयी थी।
" मैंने माँ के आगे शर्त रखी थी जो मेरे मन में बस जाएगी उसी से शादी करूँगा और तुमने मेरे मन में घर कर लिया है ... तुम बताओ क्या तुम मुझसे शादी करोगी ...!", आलोक ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
कुछ देर सोचने के बाद सोनाली ने हां कह दिया।
आलोक ने कहा वह और उसके माता पिता आगरा आना चाहते है।सोनाली से भी कहा के वह भी अपने परिवार वालों को वही बुला ले।
थोड़ी देर में उसने अपनी माँ से बात की तो माँ को क्या ऐतराज़ हो सकता था भला। उन्होंने भी आगरा आने की हामी भर दी। फोन बंद करते हुए सोनाली  की आँखे  भर आयी ...
आंसुओ को पोंछते हुए जब सामने देखा तो बालकनी में गमले में वह छोटी सी लाल गुलाब की कली  मुस्कुरा रही थी और एक कली  सोनाली के मन में भी मुस्कुरा रही जो उसके होठों पर खिल रही थी ....





उपासना सियाग 
गृहिणी
कवयित्री
निवास : जयपुर
 प्रकाशित रचनाएँ: बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक,
 "स्त्री होकर सवाल करती है" और विभिन्न ब्लॉग पर,
कविताएँ,कहानियाँ  प्रकाशित हो चुकीं हैं 

5 comments:

  1. वक्त के साथ सही फ़ैसले लेना ही समझदारी है।

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  2. बहुत सुंदर बहुत गहरे विचार और सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. सुंदर अभिव्यक्ति.

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  4. bahut hi achi kahani, man ko chu gai

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