सोनरूपा विशाल
पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा ज़िला है बदायूँ | इल्तुतमिश,अमीर खुसरो ,हज़रत निजामुद्दीन, इस्मत चुगताई ,फानी बदायूँनी ,शकील बदायूँनी ,दिजेंद्र नाथ'निर्गुण ',मुंशी कल्याण राय ,पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफ़ा खां ,पद्म श्री उस्ताद राशिद खां ,ओज कवि डॉ.ब्रजेन्द्र अवस्थी ,राष्ट्रीय गीतकार डॉ.उर्मिलेश जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों एवं संगीतकारों की जन्मभूमि बदायूँ में मैं भी जन्मी हूँ ,यहाँ की मिट्टी में ही संगीतिकता,साहित्यकता,सांस्कृति कला की सुगंध मिली हुई है |
अँग्रेज शासित समय में निर्मित 'बदायूँ क्लब 'जो कि पहले यहाँ के कलेक्टर 'एलन' के नाम पर 'एलन क्लब' के नाम से जाना जाता था ,बदायूं के इतिहास में बड़ा एतिहासिक महत्व रखता है उसकी महिला विंग की विगत दो वर्षों से मैं सक्रेटरी रही हूँ |बहुत से सांस्कृतिक आयोजन हम समय -समय पर करते रहे हैं समय -समय पर क्लब सदस्यों की श्रीमतियाँ एकत्रित होती हैं 'गेट टुगेदर' के लिए ,वहाँ बड़ी खुशमिज़ाजी से एक बारह साल का बच्चा जो कि क्लब के एक employee का बेटा है.....चाय,पानी इत्यादि की service कर देता है इस उम्र में भी एक अक्षर लिखना उसके लिए भारी है , स्कूल का मुँह उसने देखा ही नहीं .......
उसका शुष्क बचपन मेरी 'टिप' से कुछ पल के लिए हरा हो जायेगा ,इसी लोभ में वो मेरे पास मंडराता रहता है (ऐसा मुझे महसूस होता है ) ज़रा सोचने की आदत ज़्यादा है इसीलिए घर जाकर भी उसका चेहरा आँखों के सामने बार बार आता रहता है जब अपने बच्चों को उसी टिप वाले नोट को एक बस एक chocolate के स्वाद में ही उड़ता हुआ देखती हूँ | किसी के लिए 'कुछ' इतना ज्यादा और किसी के लिए 'कुछ 'इतना कम...... ख़ैर 'इसे कहते हैं'क़िस्मत' ...इस सेंटेंस को डिफाइन करने में काम आते होंगे ये कुछ और ज़्यादा जैसे लफ्ज़ ...........
कुछ सोचा तो कुछ लिखा भी.............कुछ लिखा कुछ मिटाया हुआ आज आप के साथ.........
मेरी ये रचना समाज के कुछ ऐसे लोगों ( जिनमें मैं भी शामिल हूँ )केंद्रित है जो जागरूक होने का दंभ तो भरते हैं लेकिन उनकी जागरूकता सिर्फ स्वयं के सुकून लिए है ,लेकिन ये भी माना जाये कि अगर हमारे मन में संवेदनाएं हैं तो संवेदनाएं होना भी आज के यांत्रिक युग में एक उपलब्धि ही कही जायेगी लेकिन अपनी अपनी व्यस्तताओं में घिरे हम सब ऐसे बच्चों की शिक्षा के प्रति उदासीनता दूर करने की कोशिशों को गंभीरता से नहीं लेते और लेते भी हैं तो समय के अभाव का रोना रोकर कतराए हुए से रहते हैं या इनके विकृत हो चुके बचपन जिसका कारण मैं इनकी नासमझ परवरिश को ही मानती हूँ , को सुधारना इतना जटिल होता है कि कोशिशें इनके सामने नाकाम सी होती देख उन्हें उसी हाल में छोड़ कर अपनी जिंदगी में हम फिर लौट आते हैं जहाँ वो अपने जीवन की विडंवनाओं से अनजान हैं लेकिन मस्त हैं .....इनके लिए हमारा पहला कदम ये भी होना चाहिए कि ये किताबें उठायें उसमें दर्ज अक्षरों को पढ़ने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए भी!
वो बचपन
जी हाँ
सिर्फ़ कम उम्र ही वजह है
कि बचपन कहा जाये
वरना कहाँ है बचपन ?
मैले कुचले कपड़ों में सिमटी दुर्गंधित देह में
साँस लेता बचपन
सफाई जिसके लिए अभिशाप जैसी है
बड़ी चुस्ती फुर्ती से ,सफाई से प्लेट्स चमका रहा है
किसी लोभ में
वही बचपन
जिसकी सूखी जीभ
प्लेटों में सजे स्वाद
बार बार गीली कर रहे हैं
उसी बदरंग से बचपन पर
न जाने कितनी बार
सार्वजानिक तौर पर संवेदनाएं जताती रही हूँ ,
व्यक्तिगत रूप से अपनी संवेदनाओं को
कुछ जरूरत भर की चीज़ें ,कपड़े,किताबें देकर
संतुष्ट हो जाती हूँ
आज जब किसी से सुना
कि मेरे दिए कपड़े
इतवार के बाज़ार में बिकने वाले उतरन कपड़ों के साथ बिकते हैं
और किताबें चूल्हे की आग तो तेज़ करती हैं
बाक़ी चीजों को बेचने के बाज़ार का रास्ता भी वो जानता है
क्यों कि ज़रूरी है बेचना
जुआ खेलने के लिए
तब से
अपनी नाम मात्र की संवेदनाएं को
मैंने पर्स में संभाल कर रख लिया हैं
लेकिन पता नहीं क्यों मैं
कुछ आश्वस्त सी हूँ
भले ही ये 'छोटू ' जाहिल बना रहे, अनपढ़ रहे
लेकिन ऊपर वाले की बक्शी हुई साँसों को खींच ही लेगा
इन चालाकियों से आज के समय के लिए
क़ाबिल सा लगने लगा है मुझे
अब ये बचपन ,
लेकिन
मैं
मैं क्या
सिर्फ
लिखूँ
जताऊँ.........
और इतिश्री ?
सोनरूपा विशाल
शिक्षा - एम.ए (पूर्वार्द्ध) संगीत -दयालबाग विश्वविद्यालय,आगरा
एम.ए (हिंदी)पी .एच . डी -एम.जे.पी रूहेलखंड विश्वविद्यालय,बरेली
प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद द्वारा 'संगीत प्रभाकर ' की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण
सम्प्रति-
आई सी सी आर एवं इंडियन वर्ल्ड कत्चरल फोरम (नयी दिल्ली ) द्वारा गजल गायन हेतु अधिकृत
दिल्ली दूरदर्शन से समय समय पर कवितायेँ प्रसारित
रामपुर आकाशवाणी से ग़जल गायन हेतु विगत ९ वर्षों से अधिकृत
लखनऊ एवं बरेली आकाशवाणी से गायन का प्रसारण'संस्कार' चैनल से भजन प्रसारित
अखिल भारतीय कविसम्मेलनों में काव्य पाठ
बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संग्रह 'स्त्री होकर सवाल करती है ' में रचनायें प्रकाशित
हिंदी की ख्यातिलब्ध पत्र -पत्रिकाओं एवं ब्लॉगस पहली बार, नव्या,सरस्वती सुमन ,आधारशिला,परिंदे ,गगनांचल,पांखी,वटवृक्ष,सृजन गाथा इत्यादि में रचनाएँ प्रकाशित
कृति - 'आपका साथ' (डॉ.उर्मिलेश की गजलों और गीतों की आडियो सी.डी सस्वरबद्द
सम्मान -मॉरिशस में आधारशिला फाउंडेशन द्वारा आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन में 'कला श्री सम्मान'
'उदभव विशिष्ट सम्मान ' डॉ.अशोक वालिया द्वारा ( पूर्व वित्त मंत्री भारत सरकार)
'बदायूँ गौरव सम्मान' तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव (उ.प्र.) द्वारा
उ.प्र के पूर्व राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा द्वारा सम्मान
डॉ.उर्मिलेश जन चेतना समिति की आजीवन सदस्य
संपर्क - डॉ.सोनरूपा
'नमन 'opp. राजमहल गार्डन
प्रोफेसर्स कॉलोनी , 'बदायू'(उ .प्र) २४ २६०१
पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा ज़िला है बदायूँ | इल्तुतमिश,अमीर खुसरो ,हज़रत निजामुद्दीन, इस्मत चुगताई ,फानी बदायूँनी ,शकील बदायूँनी ,दिजेंद्र नाथ'निर्गुण ',मुंशी कल्याण राय ,पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफ़ा खां ,पद्म श्री उस्ताद राशिद खां ,ओज कवि डॉ.ब्रजेन्द्र अवस्थी ,राष्ट्रीय गीतकार डॉ.उर्मिलेश जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों एवं संगीतकारों की जन्मभूमि बदायूँ में मैं भी जन्मी हूँ ,यहाँ की मिट्टी में ही संगीतिकता,साहित्यकता,सांस्कृति कला की सुगंध मिली हुई है |
अँग्रेज शासित समय में निर्मित 'बदायूँ क्लब 'जो कि पहले यहाँ के कलेक्टर 'एलन' के नाम पर 'एलन क्लब' के नाम से जाना जाता था ,बदायूं के इतिहास में बड़ा एतिहासिक महत्व रखता है उसकी महिला विंग की विगत दो वर्षों से मैं सक्रेटरी रही हूँ |बहुत से सांस्कृतिक आयोजन हम समय -समय पर करते रहे हैं समय -समय पर क्लब सदस्यों की श्रीमतियाँ एकत्रित होती हैं 'गेट टुगेदर' के लिए ,वहाँ बड़ी खुशमिज़ाजी से एक बारह साल का बच्चा जो कि क्लब के एक employee का बेटा है.....चाय,पानी इत्यादि की service कर देता है इस उम्र में भी एक अक्षर लिखना उसके लिए भारी है , स्कूल का मुँह उसने देखा ही नहीं .......
उसका शुष्क बचपन मेरी 'टिप' से कुछ पल के लिए हरा हो जायेगा ,इसी लोभ में वो मेरे पास मंडराता रहता है (ऐसा मुझे महसूस होता है ) ज़रा सोचने की आदत ज़्यादा है इसीलिए घर जाकर भी उसका चेहरा आँखों के सामने बार बार आता रहता है जब अपने बच्चों को उसी टिप वाले नोट को एक बस एक chocolate के स्वाद में ही उड़ता हुआ देखती हूँ | किसी के लिए 'कुछ' इतना ज्यादा और किसी के लिए 'कुछ 'इतना कम...... ख़ैर 'इसे कहते हैं'क़िस्मत' ...इस सेंटेंस को डिफाइन करने में काम आते होंगे ये कुछ और ज़्यादा जैसे लफ्ज़ ...........
कुछ सोचा तो कुछ लिखा भी.............कुछ लिखा कुछ मिटाया हुआ आज आप के साथ.........
मेरी ये रचना समाज के कुछ ऐसे लोगों ( जिनमें मैं भी शामिल हूँ )केंद्रित है जो जागरूक होने का दंभ तो भरते हैं लेकिन उनकी जागरूकता सिर्फ स्वयं के सुकून लिए है ,लेकिन ये भी माना जाये कि अगर हमारे मन में संवेदनाएं हैं तो संवेदनाएं होना भी आज के यांत्रिक युग में एक उपलब्धि ही कही जायेगी लेकिन अपनी अपनी व्यस्तताओं में घिरे हम सब ऐसे बच्चों की शिक्षा के प्रति उदासीनता दूर करने की कोशिशों को गंभीरता से नहीं लेते और लेते भी हैं तो समय के अभाव का रोना रोकर कतराए हुए से रहते हैं या इनके विकृत हो चुके बचपन जिसका कारण मैं इनकी नासमझ परवरिश को ही मानती हूँ , को सुधारना इतना जटिल होता है कि कोशिशें इनके सामने नाकाम सी होती देख उन्हें उसी हाल में छोड़ कर अपनी जिंदगी में हम फिर लौट आते हैं जहाँ वो अपने जीवन की विडंवनाओं से अनजान हैं लेकिन मस्त हैं .....इनके लिए हमारा पहला कदम ये भी होना चाहिए कि ये किताबें उठायें उसमें दर्ज अक्षरों को पढ़ने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए भी!
टिप
__________________वो बचपन
जी हाँ
सिर्फ़ कम उम्र ही वजह है
कि बचपन कहा जाये
वरना कहाँ है बचपन ?
मैले कुचले कपड़ों में सिमटी दुर्गंधित देह में
साँस लेता बचपन
सफाई जिसके लिए अभिशाप जैसी है
बड़ी चुस्ती फुर्ती से ,सफाई से प्लेट्स चमका रहा है
किसी लोभ में
वही बचपन
जिसकी सूखी जीभ
प्लेटों में सजे स्वाद
बार बार गीली कर रहे हैं
उसी बदरंग से बचपन पर
न जाने कितनी बार
सार्वजानिक तौर पर संवेदनाएं जताती रही हूँ ,
व्यक्तिगत रूप से अपनी संवेदनाओं को
कुछ जरूरत भर की चीज़ें ,कपड़े,किताबें देकर
संतुष्ट हो जाती हूँ
आज जब किसी से सुना
कि मेरे दिए कपड़े
इतवार के बाज़ार में बिकने वाले उतरन कपड़ों के साथ बिकते हैं
और किताबें चूल्हे की आग तो तेज़ करती हैं
बाक़ी चीजों को बेचने के बाज़ार का रास्ता भी वो जानता है
क्यों कि ज़रूरी है बेचना
जुआ खेलने के लिए
तब से
अपनी नाम मात्र की संवेदनाएं को
मैंने पर्स में संभाल कर रख लिया हैं
लेकिन पता नहीं क्यों मैं
कुछ आश्वस्त सी हूँ
भले ही ये 'छोटू ' जाहिल बना रहे, अनपढ़ रहे
लेकिन ऊपर वाले की बक्शी हुई साँसों को खींच ही लेगा
इन चालाकियों से आज के समय के लिए
क़ाबिल सा लगने लगा है मुझे
अब ये बचपन ,
लेकिन
मैं
मैं क्या
सिर्फ
लिखूँ
जताऊँ.........
और इतिश्री ?
सोनरूपा विशाल
शिक्षा - एम.ए (पूर्वार्द्ध) संगीत -दयालबाग विश्वविद्यालय,आगरा
एम.ए (हिंदी)पी .एच . डी -एम.जे.पी रूहेलखंड विश्वविद्यालय,बरेली
प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद द्वारा 'संगीत प्रभाकर ' की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण
सम्प्रति-
आई सी सी आर एवं इंडियन वर्ल्ड कत्चरल फोरम (नयी दिल्ली ) द्वारा गजल गायन हेतु अधिकृत
दिल्ली दूरदर्शन से समय समय पर कवितायेँ प्रसारित
रामपुर आकाशवाणी से ग़जल गायन हेतु विगत ९ वर्षों से अधिकृत
लखनऊ एवं बरेली आकाशवाणी से गायन का प्रसारण'संस्कार' चैनल से भजन प्रसारित
अखिल भारतीय कविसम्मेलनों में काव्य पाठ
बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संग्रह 'स्त्री होकर सवाल करती है ' में रचनायें प्रकाशित
हिंदी की ख्यातिलब्ध पत्र -पत्रिकाओं एवं ब्लॉगस पहली बार, नव्या,सरस्वती सुमन ,आधारशिला,परिंदे ,गगनांचल,पांखी,वटवृक्ष,सृजन गाथा इत्यादि में रचनाएँ प्रकाशित
कृति - 'आपका साथ' (डॉ.उर्मिलेश की गजलों और गीतों की आडियो सी.डी सस्वरबद्द
सम्मान -मॉरिशस में आधारशिला फाउंडेशन द्वारा आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन में 'कला श्री सम्मान'
'उदभव विशिष्ट सम्मान ' डॉ.अशोक वालिया द्वारा ( पूर्व वित्त मंत्री भारत सरकार)
'बदायूँ गौरव सम्मान' तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव (उ.प्र.) द्वारा
उ.प्र के पूर्व राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा द्वारा सम्मान
डॉ.उर्मिलेश जन चेतना समिति की आजीवन सदस्य
संपर्क - डॉ.सोनरूपा
'नमन 'opp. राजमहल गार्डन
प्रोफेसर्स कॉलोनी , 'बदायू'(उ .प्र) २४ २६०१
लेकिन
ReplyDeleteमैं
मैं क्या
सिर्फ
लिखूँ
जताऊँ.........
और इतिश्री ?
आज यही होता है
चाहे वो जिम्मेदारियों का बोझा
रोज सिर पर ढोता है
मगर उनका बचपन कहाँ होता है
ना देखा ना जाना
बचपन पर तो उनके
सिर्फ़ प्रश्नचिन्ह लगा होता है
बहुत सुन्दर लिखा आपने .....
ReplyDeleteकविता बड़ी सादगी से बच्चे की विवशताएं ,अंभिलाषाएं और चतुराई प़कट करती है । ज़िन्दा
ReplyDeleteरहने के लिए उसे अनेक अच्छे बुरे काम करने पड़ते हैं । यह सब कुछ कविता में ध्वनित
होता है ।कवयित्री को बधाई ।