Friday, December 21, 2012

सवाल सबके है और वाजिब हैं .....जवाब ???

वंदना ग्रोवर            

यूँ हर सवाल अपने आप में पूरा जवाब है .. फिर भी इन सवालिया जवाबों पर समाज के सवाल खड़े हो जाते हैं ..क्यों ? क्यों कि आपका दर्ज़ा एक औरत का है जिसे कुछ भी माना जाता हो ..पर इंसान तो हरगिज़ नहीं माना जाता ... सवाल सबके है और वाजिब हैं .....जवाब ???







मैं क्यों दिन भर सोचती रहूँ 
क्यों मैं रात भर जागती रहूँ
मैं क्यों थरथरा जाऊं आहट से
क्यों मैं सहम जाऊं दस्तक से
मैं क्यों चुप रहूँ
मैं कुछ क्यों न कहूं

मैं क्यों किसी के बधियाकरण की मांग करूं
क्यों मैं किसी के लिए फांसी की बात करूं
मैं क्यों न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाऊँ
क्यों मैं जा जाकर आयोगों में गुहार लगाऊं
मैं क्यों न जीऊँ
मैं क्यों खून के घूंट पियूं

मैं क्यों खुद अपने मित्र तय न करूं
क्यों मैं घर से बाहर न जाऊं
मैं क्यों अपनी पसंद के कपडे न पहनूं
क्यों मैं रात को फिल्म देखने न जाऊं
मैं क्यों डरूं
मैं क्यों मरूं

मैं क्यों अस्पतालों में पड़ी रहूँ वेंटिलेटरों पर
क्यों मैं मुद्दा बनूँ कि चर्चा हो मेरे आरक्षणों पर
मैं क्यों इंडिया गेट के नारों में गूंजती रहूँ
क्यों मैं विरोध की मशाल बन कर जलती रहूँ
मैं क्यों न गाऊं
मैं क्यों न खिलखिलाऊं

मैं क्यों धरती-सी सहनशीलता का बोझ ढोऊँ
क्यों मैं मर मर कर कोमलता का वेश धरूं
मैं क्यों दुर्गा,रणचंडी ,शक्तिरूपा का दम भरूं
क्यों न मैं बस जीने के लिए ज़िन्दगी जियूं
मैं क्यों खुद को भूलूं
मैं क्यों खुद को तोलूँ

मैं क्यों अपने जिस्म से नफरत करूं
क्यों मैं अपने होने पर शर्मिंदा होऊं
मैं क्यों अपने लिए रोज़ मौत मांगूं
क्यों मैं हाथ बांधे खड़ी रहूँ सबसे पीछे
मैं क्यों होऊं तार तार
मैं क्यों रोऊँ जार जार

मेरे लिए क्यों कहीं माफ़ी नहीं
क्यों मेरा इंसान होना काफी नहीं

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9 comments:

  1. उद्वेलित ,आक्रोशित मन से निकले भाव क्या मेरा स्त्री होना काफी नहीं !!बहुत खूब http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/

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    1. शुक्रिया राजेश जी

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    2. This comment has been removed by the author.

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  2. शुक्रिया दिव्या जी

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  3. शुक्रिया वंदना जी

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. सार्थक रचना....
    बेहतरीन...
    :-)

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