भरत तिवारी
आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाईनर
लेखन के साथ-साथ संगीत और फोटोग्राफी में भी विशेष रूचि रखतें हैं.
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गज़लें प्रकाशित हैं.
मुंबई के प्रसिद्ध पृथ्वी थियेटर में एकल कविता पाठ.
'मशाल' कार्यक्रम में भरत तिवारी जी अपनी कविता "घटिया ओछे नाकारा हम" के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया ..
घटिया ओछे नाकारा हम
इक अनहोनी घट गयी
के सारा आलम सोते से जाग गया
अबला का शारीरिक शोषण
टी.वी. ने दिखाया
और तब !!! सबको पता चल गया कि
अभद्रता कि सीमा क्या होती है
नेताओं के बिगुल
स्त्री समाज की मुखिया
जिन पर खुद आरोप हैं
शोषण करवाने के
नए नए तरीके के व्याख्यान देने लगे
अरे ! हाँ !
वो क्या हुआ राजस्थान वाले केस का
रोना आता है इस समाज के खोखलेपन पर
जहाँ हर घड़ी
घर के आँगन से शहर के चौक तक
रोज़ ये हो रहा होता है
और समाज आँख खोले
सो रहा होता है,
और जो उबासी आये तो पुलिस को गरिया दिया
... भई ये सब तो शासन ने देखना है ना !!!
हम क्या करें ?
... अब इन्तिज़ार है सबको
ऐसा कोई वी.डी.ओ
सामूहिक बलात्कार का भी आ जाए
तो थोडा और जागें ..
या फ़िर रेप के वी.डी.ओ का इन्तेज़ार है
( जाओ बेंडिट क्वीन देख लो अगर व्यस्क हो गए हो )
किसको बहला रहे हो मियाँ
अन्दर जो आत्मा ना मार डाली हो
तो झाँक लेना ...
फ़िर सो जाना
सच सुनकर नींद अच्छी आती है
घटिया ओछे नाकारा
dardnaak... !!
ReplyDeletesundar rachna!Yeh mashaal jalaye rakhiye. Abi to T V dekh ke jaagata ho ga koi. Samay aayega ki poora desh aur desh ki aatama hi sotee milegi.
ReplyDeletesachchai vyakt karti behad sanjeeda rachna.
ReplyDeletektu saty jisko padh ker rongte khde ho gye
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