प्रेम, प्रकृति, प्रवास , निर्वासन ... सभी भाव उनकी कविताओं में भरपूर
दिखतें है . चाहे वो प्रेम में डूबी स्त्री हो या ईंट तोड़ती स्त्री या
देश से निष्काषित स्त्री हो ... हर वर्ग की स्त्री की पीड़ा को बखूबी
उन्होंने अपनी कविताओं में उकेरा है.
प्रस्तुत है हाल ही में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कवयित्री, कथाकार तसलीमा नसरीन का कविता संग्रह " मुझे देना और प्रेम " की कुछ कविताएँ. कवी, कथाकार, निबन्धकार, कला-समीक्षक , अनुवादक प्रयाग शुक्ल द्वारा अनुवादित संग्रह .
1.मैं तो नहीं कोई ऐसी चमत्कारी
करते हो बात प्रेम की इतनी अधिक, कि बीच-बीच में
सचमुच मैं भूलवश कर लेती इस पर विश्वास कि
तुम करते हो मुझे प्रेम |
समझना उचित था मुझको कि अनर्गल कोई
कुछ कह दे तो वह होता नहीं सच |
प्रेम केवल बात करने कि चीज़ नहीं,
प्रेम तो है निमग्न होने में, त्याग में |
तुम हो कितना निमग्न ?
मैं तो ऐसी कोई चमत्कारी नहीं कि मुझसे
करना ही होगा प्रेम |
मत करना प्रेम |
हजारो मनुष्य करते नहीं प्रेम,
तो क्या गयी मैं मर ?
मत करो प्रेम - यह ज्यादा अच्छा है, मुझे
मिथ्या के जल में डुबोकर मेरी सांस रोक देने से !
2. चरित्र ही ऐसा है आदमी का
चरित्र ही ऐसा है आदमी का
बैठो तो कहेगा बैठो नहीं
चलने को हो तो कहेगा क्या होगा
घूम फिरकर इधर-उधर, अरे बैठो
सो जाओ तो ताना --- न सोने पर भी
नहीं निश्चन्त,
कहेगा अच्छा रहेगा कुछ देर सो लेना |
उठक बैठक करते हुए नष्ट हुए जाते हैं दिन
मरने जाओ तो कह उठेगा ---जियो |
पता नहीं कब देखकर जीते हुए कह उठे -- अरे मरो |
बड़े भय से रहती हूँ जीती हुई गुपचुप |
3. ईंट तोड़ने वाली लड़की
रास्ते के किनारे बैठ लड़की एक तोड़ती ईंट
लाल साड़ी पहने लड़की तोड़ती ईंट
धूप में तपती तोड़ती लड़की तोड़ती ईंट
तांबे के रंग वाली लड़की तोड़ती ईंट
उम्र है इक्कीस की, लगती है
चालीस से ज्यादा |
घर में एक नहीं दो नहीं, हैं संतानें सात |
सारा दिन तोड़ती जाती ईंट लड़की |
दिन भर के बाद देगा महाजन
गिनकर रुपये देगा दस |
दस रुपये से नहीं चलता उसका काम
नहीं जुटता सात पोषितों का भरपेट खाना |
लड़की फिर भी तोड़ती जाती ईंट रोज |
पास बैठा जो पुरुष तोड़ता ईंट,
वह तोड़ता है एक छतरी तले बैठा,
दिन बीतने पर उस पुरुष को मिलते रुपये बीस
पुरुष होने से भी मिलता उसे दोगुना |
लड़की की है गोपन इच्छा एक, बैठे वह भी
धूप में नीचे छतरी के
उसकी है इच्छा एक और भी गोपन
हठात बन जाए वह पुरुष किसी भोर बेला में
पुरुष होने पर बीस, पुरुष होने पर दोगुना |
करती अपेक्षा वह, किन्तु कहाँ हो पाती
किसी छूमन्तर से पुरुष वह
एक मलिन छतरी भी जुटती नहीं भाग्य में उसके |
लड़की की तोड़ी हुई ईंट से बनता नया रास्ता ,
उठती इमारतें बड़ी-बड़ी शहर में |
इधर उड़ गया है छप्पर लड़की के घर का,
अंधड़ में पिछले साल हुए उसमें कई छेद,
उस पर जो टाट जड़ा छू दे यदि उसको तो
झर-झर झरने लगता जल |
चाहती है खरीदना वह पाउडर का डिब्बा एक,
रखती नहीं गोपन इसे
जोर से सुनाकर कहती है वह खरीदेगी पाउडर,
सुनकर हँसते लोग,कहते अहा ! चाहिए उसको
केशों में तेल, पाउडर मुख में |
सात पोषितों के घर, तपती लड़की
धूप में, होती रहती ताम्बई
दिन-दिन अंगुलियाँ उसकी होती जाती
ईंटों की तरह सख्त |
लड़की खुद भी होती रहती है ईंट
होते होते होती वह ईंट से अधिक मजबूत,
हथौड़ी से टूटती है ईंट,
लड़की टूटती नहीं |
धूप में तपती, खाली मन खाली पेट रहना,
पाउडर न मिलना - कष्ट ये
सब करते नहीं अब उसे स्पर्श !
5.परवास
किसके कारन किस दोष में
आज मैं हूँ परवास में
उत्तर नहीं मालूम |
जानती केवल यह जीवन की नदी में उत्ताल
वर्षा की ऋतु में,
परती गयी है बिछ |
प्रस्तुत है हाल ही में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कवयित्री, कथाकार तसलीमा नसरीन का कविता संग्रह " मुझे देना और प्रेम " की कुछ कविताएँ. कवी, कथाकार, निबन्धकार, कला-समीक्षक , अनुवादक प्रयाग शुक्ल द्वारा अनुवादित संग्रह .
1.मैं तो नहीं कोई ऐसी चमत्कारी
करते हो बात प्रेम की इतनी अधिक, कि बीच-बीच में
सचमुच मैं भूलवश कर लेती इस पर विश्वास कि
तुम करते हो मुझे प्रेम |
समझना उचित था मुझको कि अनर्गल कोई
कुछ कह दे तो वह होता नहीं सच |
प्रेम केवल बात करने कि चीज़ नहीं,
प्रेम तो है निमग्न होने में, त्याग में |
तुम हो कितना निमग्न ?
मैं तो ऐसी कोई चमत्कारी नहीं कि मुझसे
करना ही होगा प्रेम |
मत करना प्रेम |
हजारो मनुष्य करते नहीं प्रेम,
तो क्या गयी मैं मर ?
मत करो प्रेम - यह ज्यादा अच्छा है, मुझे
मिथ्या के जल में डुबोकर मेरी सांस रोक देने से !
2. चरित्र ही ऐसा है आदमी का
चरित्र ही ऐसा है आदमी का
बैठो तो कहेगा बैठो नहीं
चलने को हो तो कहेगा क्या होगा
घूम फिरकर इधर-उधर, अरे बैठो
सो जाओ तो ताना --- न सोने पर भी
नहीं निश्चन्त,
कहेगा अच्छा रहेगा कुछ देर सो लेना |
उठक बैठक करते हुए नष्ट हुए जाते हैं दिन
मरने जाओ तो कह उठेगा ---जियो |
पता नहीं कब देखकर जीते हुए कह उठे -- अरे मरो |
बड़े भय से रहती हूँ जीती हुई गुपचुप |
3. ईंट तोड़ने वाली लड़की
रास्ते के किनारे बैठ लड़की एक तोड़ती ईंट
लाल साड़ी पहने लड़की तोड़ती ईंट
धूप में तपती तोड़ती लड़की तोड़ती ईंट
तांबे के रंग वाली लड़की तोड़ती ईंट
उम्र है इक्कीस की, लगती है
चालीस से ज्यादा |
घर में एक नहीं दो नहीं, हैं संतानें सात |
सारा दिन तोड़ती जाती ईंट लड़की |
दिन भर के बाद देगा महाजन
गिनकर रुपये देगा दस |
दस रुपये से नहीं चलता उसका काम
नहीं जुटता सात पोषितों का भरपेट खाना |
लड़की फिर भी तोड़ती जाती ईंट रोज |
पास बैठा जो पुरुष तोड़ता ईंट,
वह तोड़ता है एक छतरी तले बैठा,
दिन बीतने पर उस पुरुष को मिलते रुपये बीस
पुरुष होने से भी मिलता उसे दोगुना |
लड़की की है गोपन इच्छा एक, बैठे वह भी
धूप में नीचे छतरी के
उसकी है इच्छा एक और भी गोपन
हठात बन जाए वह पुरुष किसी भोर बेला में
पुरुष होने पर बीस, पुरुष होने पर दोगुना |
करती अपेक्षा वह, किन्तु कहाँ हो पाती
किसी छूमन्तर से पुरुष वह
एक मलिन छतरी भी जुटती नहीं भाग्य में उसके |
लड़की की तोड़ी हुई ईंट से बनता नया रास्ता ,
उठती इमारतें बड़ी-बड़ी शहर में |
इधर उड़ गया है छप्पर लड़की के घर का,
अंधड़ में पिछले साल हुए उसमें कई छेद,
उस पर जो टाट जड़ा छू दे यदि उसको तो
झर-झर झरने लगता जल |
चाहती है खरीदना वह पाउडर का डिब्बा एक,
रखती नहीं गोपन इसे
जोर से सुनाकर कहती है वह खरीदेगी पाउडर,
सुनकर हँसते लोग,कहते अहा ! चाहिए उसको
केशों में तेल, पाउडर मुख में |
सात पोषितों के घर, तपती लड़की
धूप में, होती रहती ताम्बई
दिन-दिन अंगुलियाँ उसकी होती जाती
ईंटों की तरह सख्त |
लड़की खुद भी होती रहती है ईंट
होते होते होती वह ईंट से अधिक मजबूत,
हथौड़ी से टूटती है ईंट,
लड़की टूटती नहीं |
धूप में तपती, खाली मन खाली पेट रहना,
पाउडर न मिलना - कष्ट ये
सब करते नहीं अब उसे स्पर्श !
5.परवास
किसके कारन किस दोष में
आज मैं हूँ परवास में
उत्तर नहीं मालूम |
जानती केवल यह जीवन की नदी में उत्ताल
वर्षा की ऋतु में,
परती गयी है बिछ |
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