Wednesday, August 01, 2012

चेतना की "मशाल" रोशन करतीं अपर्णा मनोज

अपर्णा मनोज :
कवयित्री , कहानीकार,अनुवादक
'मेरे क्षण ' कविता संग्रह प्रकाशित
कत्थक, लोकनृत्य में विशेष योग्यता, ब्लागिंग में सक्रिय
संपादन : 'आपका साथ साथ फूलों का '


स्त्री की स्वतंत्रता आज भी एक मिथ है.

एक विधवा, परित्यक्ता, बलात्कार की विक्टिम और वैश्या अभी भी अछूत स्त्रियों की श्रेणी में हैं..क्यों?

राष्ट्रव्यापी स्त्री आन्दोलन कम हुए हैं. संथाल परगनों में होने वाले अत्याचारों को देखते हुए ये न्यून ही हैं.

स्त्रियों को स्व-सुरक्षा के लिए हम क्या सिखा रहे हैं? मार्शल आर्ट उनकी फेमिनिटी को बचाए रखने के भ्रम में अभी भी लड़कियों से दूर है.

स्कूल से ही विद्यार्थियों को क़ानून की शिक्षा देनी चाहिए. उसका सिलेबस में कहीं स्थान नहीं....

स्त्री हित में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाते हुए अपर्णा मनोज जी ने अपने प्रभावशाली व्यक्तव्य में कहा कि हमारे स्कूली शिक्षा में मानवाधिकार शामिल नहीं है | साथ ही साथ उन्होने महिलाओं से संबन्धित समस्याओं के प्रति जागरूकता प्राथमिक स्तर से ही नदारद है | बागपत काण्ड का उदाहरण देते हुये हुये उन्होने इस बात कि तरफ संकेत किया कि हमारे समाज में लड़कियों का अनुकूलन दोषपूर्ण है | आज के समय और समाज को देखते हुये उन्होने मंटो की कहानियों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होने कहा की आज 'सकीना' जगह जगह पायी जाती है |

तमिलनाडु में "सम्मान " जैसे अपमान को चिह्नित करते हुए कहा कि आज भी बलात्कारी स्त्री को अपमान से बचाने के लिए उसका विवाह अपराधी से कराये जाने की प्रथा है, जो एक स्त्री के लिए जीवनभर का गरल है.
एक परित्यक्ता, स्पिंस्टर ,विधवा, पागल स्त्री,बलात्कार की विक्टिम, बिनब्याही माँ और वैश्या अस्पृश्य हैं. उनका शोषण भी समाज को दिखाई नहीं देता. इन्हें लेकर स्वतंत्र भारत में विशेष आन्दोलन नहीं हुए. ये एक विघटनकारी और अप्रगतिशील समाज के द्योतक हैं.

5 comments:

  1. अपर्णा जी से सहमत हूँ ..........वास्तव में वक़्त सिर्फ़ देखने और रोते रहने का नहीं है .....जानना जरूरी है कानून और स्वरक्षा भी अधिकार है स्त्रियों का !

    ReplyDelete
  2. ये तो तभी होगा जब महिलाएं खुद अपना और दूसरी औरतों के हक़ में खड़ा होना सीखेगी .....इसके लिए स्त्री को शिक्षित होना बहुत जरुरी है वो भी ग्रमीण क्षेत्रों में ,वहां बहुत बाद-हाल है औरतों का जीवन .....और सबसे बड़ी बात बुनियादी जरूरतें पूरी ना होना भी है ....इनसे परे इन्सान कुछ भी सोचने समझने की शक्ति नहीं रखता

    ReplyDelete
  3. Aapka pryas sarahneeya hi nahiN Sahsik hai .

    ReplyDelete
  4. मार्शल आर्ट ,क़ानूनी शिक्षा, मानवाधिकार स्कूली शिक्षा में शामिल नहीं है...जबकि ज़रुरत सबसे अधिक इन्ही की है ...
    आदरणीय अपर्णा दी के विचारों पर अमल होने की ज़रूरत है...

    ReplyDelete
  5. मेरी सहमति है ...

    ReplyDelete

फेसबुक पर LIKE करें-