Friday, November 02, 2012

अनुपमा तिवाड़ी की बात करती कविताएँ

अनुपमा तिवाड़ी
  की बात करती कविताएँ

जयपुर, राजस्थान की युवा कवियित्री अनुपमा तिवाड़ी । हिन्दी व समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर तथा पत्रकारिता व जनसंचार में स्नातक हैं ।
पिछले 24 वर्षो से स्वयमसेवी संस्थाओं में कार्यरत और वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन राजस्थान से जुड़ी हैं ।
आपकी कविताए व कहानियाँ अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं । अनुपमा का पहला कविता संग्रह आईना भीगता हैजयपुर के बोधि प्रकाशन से 2011 में प्रकाशित हुआ है ।

अनुपमा की इन कविताओं की अपनी इंसानियत है अपनी आवाज़ें हैं जो कभी प्रेमिका के रूप में अपनी व्यथा साफ़ शब्दों में कहती नज़र आती हैं, कहीं तालिबान को ललकारती हैं । एक तरफ़ आदमी के अमानवीय  चेहरे को उजागर करती हैं तो वहीँ दूसरी ओर स्त्रीविमर्श ।
आइये उनकी कुछ कविताओं को पढ़ें, उनसे सीखें और काव्य का आनंद उठायें  ।

 आना - जाना                                  
न तुम मुझे बुलाते हो
न मैं तुम्हें छोड़ कर जाती हूँ
तुम तो अपनी जगह तटस्थ हो
मैं ही आती हूँ
और मैं ही जाती हूँ

आदमी के अंदर एक आदमी रहता है                 
आदमी के अंदर रहता है
एक और आदमी ।
रहते हैं दोनों
साथ - साथ।
पर खूब झगड़ते हैं
चलते रहते हैं
उनके बीच द्वंद्व
उन दोनों को झगड़ते देखा है
मेंने बहुत बार
एक रात तो रात के आदमी ने कह दिया
" देख जैसे - जैसे तू बूढ़ा होगा, मैं और, और जवान हौऊँगा"
उस रात दोनों में खूब हुई थी कहासुनी ।
और फिर तबसे  रात का आदमी दिन में रहने लगा था
चुप-चुप ।
पर रात तो उसकी थी न !
मैंने अपने बुजुर्गो से सुना था
"कि पहले ये दोनों हमेशा साथ-साथ रहते थे
पता नहीं इनके बीच ऐसा क्या हो गया कि दोनों रहने लगे है
अब अलग-थलग" ।
दिन का आदमी अब उसे सुनना ही नहीं चाहता
पर वो भी है न, चुप नहीं बैठेगा
चाहे हार जाए दिन के आदमी से
रात के आदमी, मैंने सुना है तुम बहुत ताकतवर हो
तुम लड़ो न दिन के आदमी से
पता है तुम ही जीतोगे
तुममें बहुत ताकत है यार !
बस बाहर आ कर खड़े हो जाओ
और दिन में भी चलो उस आदमी के साथ
जो तुमसे अलग-थलग घूम रहा है
फिर देखो आदमी, आदमी लगने लगेगा।

छुअन तुम्हारी                                   
तुमने छुआ मुझे आंखो से
छुआ मुझे आवाज़ से
छुआ मुझे दिल से
पर छुआ नहीं ।
फिर भी छुआ कितना
तुमने मुझे ।



मलाला                                        
13 साल की मलाला
तुम जियो 113 साल
तुम नहीं मरोगी गोली से
तुम्हारी धमनियों में बहता लहू का हर कतरा कितना गरम है
तुम्हारी सपनीली आंखो में लड़कियों के शिक्षित होने के सपने हैं
तुम्हारी आवाज़ आसमान से बात करती है
भला, ऐसी फौलाद लड़की को कौन मार सकेगा ??
तालिबानियों तुम मारो एक मलाला
एक हज़ार मलाला
पैदा हो जाएंगी
ठीक  पत्थरचट्टे की तरह
जिसके हर पत्ते से एक नया पौधा उग आता है
तालिबानियों, तुम नहीं जानते
बंदूक के कारखाने में जितनी बंदूके बनती हैं
उससे कहीं ज्यादा आवाज़े हुमकती है दिलों में ।
बेताब होती हैं
बाहर आने के लिए
हाथ बढाती हैं आगे
छूने को आकाश ।

कामकाजी स्त्रियाँ                                
कामकाजी स्त्रियाँ
ले कर घूमती हैं
बड़ी - बड़ी गठरियाँ
आंसुओं की।
मिलते ही अपनी - सी
वे खोलती हैं
अपनी - अपनी  गठरियाँ
करती हैं साझा
आँसू.......
अपनी अंगुलियों में फंसाए
एकदूसरी की अंगुलियाँ
देती हैं सांत्वना।
उनकी बेबस आंखे पढ़ती हैं
एकदूसरी को गहरे से
पर, होठ कहते हैं
औरतों में बहुत ताकत होती है

वो धार्मिक                                     
मैं बचपन में समझती थी
पाखंडियों को धार्मिक
जितना पाखंडी
उतना धार्मिक ।
आज धार्मिकों को डर है
पाखंडियों से
ये कैसे धर्म हैं ?
इंसान को इंसान से डर ?
क्योंकि,
वे धार्मिक नहीं कट्टर हैं ।
डर बिठाया था
मेरे अंदर बचपन में ।
अन्य धर्मावलंबियों से
पर आज में डर गई
अपने ही धर्म के लोगों से
क्योंकि, उनके कान बंद
और मुँह हाथ खुले थे ।

प्रेम                                           
कितना मारा है
तुम सबने मिलकर
इस प्रेम को ।
पर, ये मुआ मारा कहाँ है ?
मरेगा भी नहीं
पलता रहेगा
तुम्हारे दिल के कोने में पड़ा
कितनी बात करता है
यह तुमसे
जब तुम अकेले होते हो

खिड़की                                        
तुम्हारा दिल था
बंद दरवाज़ा
मेरा खुली खिड़की ।
उस दिन आए तूफान के बाद से
खिड़की आज तक बंद है ।

रेत सी जिंदगी                                  
जानता हूँ  कि
जिंदगी
रेत सी फिसल रही है
मुट्ठी से
पर तुम्हारी आंखो से छलक़ती हँसी में
विस्तार पा रही है
मेरी जिंदगी ।

स्त्रियाँ और प्रेम                                  
स्त्रियाँ प्रेम करती हैं
धोखा खाती हैं
प्रेम करती हैं
धोखा खाती हैं
स्त्रियाँ प्रेम करती हैं....


(ऊपर चित्र साभार गूगल से लिये गये हैं यदि कोई चित्र, कलाचित्र इत्यादि किसी सर्वाधिकार का उलंघन हो तो कृपया सूचित करें उसे हटा दिया जायेगा )

9 comments:

  1. आपने सही कहा "बात करती कवितायेँ" मैं कहूँगा "बोलती कवितायेँ" अनुपमा तिवाड़ी जी को हार्दिक बधाई और आपका आभार.

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    1. राकेश जी बहुत - बहुत शुक्रिया !

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  2. बेहद खूबसूरत कवितायेँ,,,,,,सचमुच बात करती सी,,,,,,बधाई अनुपमा जी, आभार शोभा दी, फर्गुदिया,,,,,,,,

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  3. बेहद खूबसूरत कवितायेँ,,,,,,सचमुच बात करती सी,,,,,,बधाई अनुपमा जी, आभार शोभा दी, फर्गुदिया,,,,,,,,

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  4. बहुत सुंदर कवितायेँ .....मन को छूती है सीधे

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    1. आप सभी का बहुत - बहुत आभार !!

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  5. आप सभी पाठक दोस्तों की बहुत - बहुत आभारी हूँ ......!

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  6. आप सभी पाठक दोस्तों की बहुत बहुत आभारी हूँ ........!

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  7. आप सभी दोस्तों की बहुत - बहुत आभारी हूँ ......।

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