Monday, November 05, 2012

फर्गुदिया : ' इनकी भी सुने ' कार्यक्रम की रिपोर्ट


फर्गुदिया : ' इनकी भी सुने ' कार्यक्रम पर सईद अयूब की रिपोर्ट
सईद अयूब : कुशीनगर ( उत्तर प्रदेश )
उच्च शिक्षा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से
अमेरिकन इंस्टीटयूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़ में अध्यापन
संस्थापक, सह-निदेशक S . A  ZABEEN  Pvt . Ltd ज्ञानोदय और विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन
वे जिस तरह के माहौल में रहती हैं और काम करती हैं, वह सचमुच शोचनीय है. उन महिलाओं में अधिकतर ने बताया कि उन्हें महीने में कोई छुट्टी नहीं मिलती (जबकि सरकार द्वारा महीने में चार छुट्टियाँ निर्धारित की गयी हैं) अगर किसी कारण वश वे छुट्टी लेती हैं तो मालिक पैसे काट लेते हैं, वे जिन झुग्गी-झोंपड़ियों में रहती हैं उनका किराया हज़ार रुपये से लेकर 1500 रूपये तक है जबकि सरकार द्वारा निर्धारित रेट 600-800 रूपये है. उनमें से कई के पतियों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं, खुद वे भी कोई स्वस्थ नहीं थीं. उनमें से हर एक अपनी उम्र से बड़ी दिख रही थी. उनमें से कई का विवाह तभी हो चुका था जब विवाह करना भारतीय क़ानून के अनुसार अपराध है. वे महीने में (पति की कमाई को जोड़ कर) जितना कमाती हैं, उतने से दिल्ली जैसे शहर नहीं बल्कि गाँव-देहात में भी जीवन-यापन करना अत्यंत मुश्किल है. इसका मतलब है बस वे किसी तरह से जी रही हैं. दिन भर काम करने के बाद वे उन्हें अपने घरों में भी काम करना पड़ता है, (कभी-कभी) पति के ताने, लात-घूसे और शराब की बदबू को भी बरदास्त करना पड़ता है. बच्चों की पढ़ाई और उनकी हारी-बीमारी और विवाह की चिंता इन महिलाओं को असमय ही बूढ़ा कर दे रहा है.

 

नंत समस्याओं में से ये कुछ समस्याएँ हैं जो आज निकलकर सामने आयीं. अगरचे मैं अपने घर काम करने वालियों वालों से यथासंभव संवाद करता रहता हूँ और उनके दुख-सुख से कुछ हद तक परिचित भी हूँ पर आज का अनुभव कुछ अलग था. 'फर्गुदिया' समूह द्वारा कीर्ति नगर, दिल्ली में आयोजित 'इनकी भी सुनें' कार्यक्रम में 40 से अधिक घरों में काम करने वाली महिलाओं से मिलना और उनकी समस्याओं को सुनना और उनसे संवाद स्थापित करना कई मायनों में एक सुखद अनुभव था. सबसे अधिक सुखद था यह देखना कि कार्यक्रम के अंत के बाद भी बहुत सी महिलाएँ हमारे पास रुकी रहीं और बात-चीत करती रहीं. वे सब खुश थीं. हमसे बातें करके, अपनी समस्याएँ बता कर, उनका समाधान / समाधान करने का आश्वासन पाकर, हमारे साथ सहज होकर, फोटो खिंचवा कर और 'फर्गुदिया' ग्रुप की ओर से अपना छोटा-मोटा उपहार पाकर. यह सब सुखद अनुभव तो था पर उनके जीवन के बारे में अगर ठीक से सोचा जाए और महसूस किया जाए तो रोंगटे खड़े करने वाले सच हमारे सामने आ जाते हैं. आज की मीटिंग में उन काम करने वाली महिलाओं की कुछ समस्याओं का तत्काल समाधान कर दिया गया, कुछ समस्याओं जैसे राशन कार्ड का न होना आदि के समाधान के लिए प्रयास किये जायेंगे, संभव होगा तो 'फर्गुदिया' ग्रुप के सदस्य सब महिलाओं से अलग-अलग मिलेंगे. उद्देश्य तो अच्छा है, हम कितना सफल हो पाते हैं यह आप सबके सहयोग, दुआओं और शुभकामनाओं पर निर्भर करता है.
ज का कार्यक्रम अगर संभव हो पाया तो शोभा मिश्रा, वंदना ग्रोवर और भरत तिवारी जी के अथक परिश्रम के कारण.चंद्रकांता और डॉ.सुनीता कविता का योगदान भी कम नहीं था. कार्यक्रम में इन लोगों के अतिरिक्त अंजू शर्मा, राघव विवेक पंडित, आनंद द्विवेदी, संतोष राय, रोहित आदि से मिलकर बहुत अच्छा लगा. एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि अपनी व्यस्तता के कारण आशुतोष कुमार जी इस कार्यक्रम में नहीं आ सके किंतु इस कार्यक्रम की रूप-रेखा पिछली मीटिंग में उनसे मिले बहुमूल्य सुझावों के आधार पर बनायी गयी थी और उनसे मिले लगातार प्रोत्साहन ने हम सबको इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है. आशा है कि भरत भाई कुछ तस्वीरें लगाएँगे आज के इस छोटे से पर अर्थपूर्ण कार्यक्रम के.
- सईद अयूब ५/११/२०१२ , नई दिल्ली 



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