डा. रति सक्सेना
कवि, आलोचक, अनुवादक और वेद शोधिका है ।
हिन्दी में चार ( माया महा ठगिनी, अजन्मी कविता की कोख से जन्मी कविता, और सपने देखता समुद्र, एक खिड़की आठ सलाखें ), अंग्रेजी में दो और मलयालम में एक ( अनूदित ) एक द्विभाषी कविता पुस्तक , झील में मसालों की खुशबू कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । वर्ष 2000 में केन्द्र साहित्य अकादमी का अवार्ड मिला । मलयालम की कवयित्री बालामणियम्मा को केन्द्र में रख कर एक आलोचनात्मक पुस्तक लिखी ( बालामणियम्मा , काव्य कला और दर्शन ) रति सक्सेना का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अथर्ववेद को आधार बना कर लिखी पुस्तक " ए सीड आफ माइण्ड - ए फ्रेश अप्रोच टू अथर्ववेदिक स्टडी" जिसके लिए उन्हे " इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र " फेलोशिप मिली ।अभी हाल में ही उनकी दो पुस्तके आई हैं, चींटी के पर, यात्रा वृ्त्तान्त, और संस्मरणात्मक पुस्तक अंग्रेजी में Every thing is past tense। रति सक्सेना को विशिष्ट कवितोंत्सवों "PoesiaPresente" मोन्जा ( इटली )Monza ( Italy) में, Mediterranea Festival द्वारा रोम में और International House of Stavanger नोर्वे,और शीर फेस्टीवल देन्जिली तुर्क, स्त्रुगा पोइट्री फेस्टीवल 3rd hofleiner donauweiten poesiefestival 2010, Vienna में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया गया था।
www.kritya.in नामक द्विभाषी कविता की पत्रिका की संपादिका,
वैश्विक संघटन वर्ल्ड पोइट्री मूवमेन्ट की फाउण्डर मेम्बर भी हैं।
इनमें से अधिकतर की मंजिल बेहद करीब है। सोलह सोलह मंजिल के वाले फ्लैटों की इमारतों की कालोनियाँ, जिसमें घुसते ही महसूस होता है कि हम किसी और ही भारत मे आ पहुँचे हैं। इन फ्लैटों का रखरखाव बेहद सतर्कता से होता है। चप्पा साफ जगह जगह की पुताई।
यहाँ दो दुनिया एक ही समय में रहती है, एक वह जो अपने ही स्वप्न संसार में रहती है, जिनके पास सब कुछ बड़ा बड़ा है, बड़ी गाड़ी, गाड़ी में पोशाकदार
ड्राइवर. बड़े फ्लैट , और मोटी सी तंख्वाह। उन्ही बड़े फ्लैटों में छोटी बस्ती से आने वाले वे लोग हैं जो इन बड़े घरों को चलाते हैं। वे सुबह सुबह शान से विदेशी नस्ल वाले कुत्तों को लेकर खास पार्क में फिराने आते हैं।कुछ लड़किया उतरन की जीन्स में तनी बड़े घरों के छोटे छोटे बच्चों का हाथ पकड़े स्कूल बस में आती है।
यहाँ दो तरह की तहजीब है। हर दरबान या सफाई कर्मचारी आपकों देखते ही नमस्ते करता है और हर बच्चा अपनी ही दुनिया में आपके अस्तित्व को नकारता है। कर्मचारियों को नमस्कार करना सिखाया गया होगा, लेकिन बच्चों को नमस्कार से परहेज करना क्यों सिखाया, यह समझ में नहीं आया।
जिस वक्त दूसरी दुनिया की लड़कियाँ घरों में नाश्ता तैयार करती हैं, उसी वक्त घरों की महिलाएं (नहीं महिलाएं कहने से वे बुरा मान जाएंगी)या फिर छरहरी अतिवयस्क कन्याएँ ट्रेक सूट में सजी , हाथ में पानी की बोतल थामें , दौड़ती हुई पसीना बहाती हैं, बेचारी कितना परिश्रम करती हैं, इस दौड़भाग के बाद जिम जाती होंगी, शटल खेलती होंगी.....
मैं सोचती हूँ कि क्या बातें करती होंगी ये अतिपरिश्रमी महिलाएँ, जिनका सारा पसीना अपने को ट्रिम रखने में बह जाता है, हो सकता है कि इनकों बुढ़ापा ही नही आएगा, हो सकता है कि इनके बीमारी ही नहीं फटकेगी....
दूसरी दुनिया की महिलाओं के पास बाते करने को बहुत कुछ होता है ... मसलन मैडम ने क्या बनवाया , कुत्ते को क्या पसन्द है, बाबा या बेबी को क्या पसन्द है...
मैं इस सोलह मंजिल वाली फ्लैटों की दुनिया में अपने को बेहद अलग सा महसूस कर रही हूँ, लगता है कि एक पिंजरे में मेरी आत्मा को टांग दिया...
मै आश्वस्त हूं कि मैं यहाँ सिर्फ मेहमान हूँ...
मैं खुश हूँ कि मैने इतनी संपन्नता नहीं देखी कि मेरा अपनापन ही खो जाए.
मैं दुखी हूँ कि इन प्रेतात्माओं का अपनी आत्माओं से सरोकार कब होगा...
मैं आबिदा परवीन के गीतों में कुछ खोजने लगती हूँ .
रति सक्सेना
www.kritya.in नामक द्विभाषी कविता की पत्रिका की संपादिका,
वैश्विक संघटन वर्ल्ड पोइट्री मूवमेन्ट की फाउण्डर मेम्बर भी हैं।
मेहमान की डायरी , दिल्ली से
सोलहवीं मंजिल की बालकनी से एक अलग दुनिया दिखाई दे रही है... सिर से सिर भिड़ाए मकानों का उंघना खत्म नहीं हुआ है, सूअरियाँ अपने बच्चों को थन से अलग नहीं कर पा रही हैं। छतो के ऊपर रखी गूदड़ियाँ अंगड़ाई लिए बिना सिमटी पड़ी हैं..... तभी बर्दी पहने कतार बाहर निकल पड़ी है। कुछ के हाथों में खाने के डिब्बे तो कुछ के हाथ में डोलची, ब्रुश.. कुछ के हाथों में औजार।
इनमें से अधिकतर की मंजिल बेहद करीब है। सोलह सोलह मंजिल के वाले फ्लैटों की इमारतों की कालोनियाँ, जिसमें घुसते ही महसूस होता है कि हम किसी और ही भारत मे आ पहुँचे हैं। इन फ्लैटों का रखरखाव बेहद सतर्कता से होता है। चप्पा साफ जगह जगह की पुताई।
यहाँ दो दुनिया एक ही समय में रहती है, एक वह जो अपने ही स्वप्न संसार में रहती है, जिनके पास सब कुछ बड़ा बड़ा है, बड़ी गाड़ी, गाड़ी में पोशाकदार
ड्राइवर. बड़े फ्लैट , और मोटी सी तंख्वाह। उन्ही बड़े फ्लैटों में छोटी बस्ती से आने वाले वे लोग हैं जो इन बड़े घरों को चलाते हैं। वे सुबह सुबह शान से विदेशी नस्ल वाले कुत्तों को लेकर खास पार्क में फिराने आते हैं।कुछ लड़किया उतरन की जीन्स में तनी बड़े घरों के छोटे छोटे बच्चों का हाथ पकड़े स्कूल बस में आती है।
यहाँ दो तरह की तहजीब है। हर दरबान या सफाई कर्मचारी आपकों देखते ही नमस्ते करता है और हर बच्चा अपनी ही दुनिया में आपके अस्तित्व को नकारता है। कर्मचारियों को नमस्कार करना सिखाया गया होगा, लेकिन बच्चों को नमस्कार से परहेज करना क्यों सिखाया, यह समझ में नहीं आया।
जिस वक्त दूसरी दुनिया की लड़कियाँ घरों में नाश्ता तैयार करती हैं, उसी वक्त घरों की महिलाएं (नहीं महिलाएं कहने से वे बुरा मान जाएंगी)या फिर छरहरी अतिवयस्क कन्याएँ ट्रेक सूट में सजी , हाथ में पानी की बोतल थामें , दौड़ती हुई पसीना बहाती हैं, बेचारी कितना परिश्रम करती हैं, इस दौड़भाग के बाद जिम जाती होंगी, शटल खेलती होंगी.....
मैं सोचती हूँ कि क्या बातें करती होंगी ये अतिपरिश्रमी महिलाएँ, जिनका सारा पसीना अपने को ट्रिम रखने में बह जाता है, हो सकता है कि इनकों बुढ़ापा ही नही आएगा, हो सकता है कि इनके बीमारी ही नहीं फटकेगी....
दूसरी दुनिया की महिलाओं के पास बाते करने को बहुत कुछ होता है ... मसलन मैडम ने क्या बनवाया , कुत्ते को क्या पसन्द है, बाबा या बेबी को क्या पसन्द है...
मैं इस सोलह मंजिल वाली फ्लैटों की दुनिया में अपने को बेहद अलग सा महसूस कर रही हूँ, लगता है कि एक पिंजरे में मेरी आत्मा को टांग दिया...
मै आश्वस्त हूं कि मैं यहाँ सिर्फ मेहमान हूँ...
मैं खुश हूँ कि मैने इतनी संपन्नता नहीं देखी कि मेरा अपनापन ही खो जाए.
मैं दुखी हूँ कि इन प्रेतात्माओं का अपनी आत्माओं से सरोकार कब होगा...
मैं आबिदा परवीन के गीतों में कुछ खोजने लगती हूँ .
रति सक्सेना
रति सक्सेना दीदी ... आपका हार्दिक अभिनन्दन .
ReplyDeleteआपके आशीर्वचन सदा साथ रहें
सादर
भरत
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,