Sunday, December 30, 2012

"एक समाधान की प्रतीक्षा" -भाग दो, कुछ अनछुए पहलू,कुछ सवाल --- सरोज सिंह ,

सरोज सिंह          माँ !! उसका जीवित बचना उचित था या मर जाना ? ---- कुछ अनछुए पहलू,कुछ सवाल                 दामिनी की दारुण मृत्यु की खबर मिलते ही विचार शून्य थी. बस शोक ,शर्मिंदगी,बेबसी...

Thursday, December 27, 2012

एक समाधान की प्रतीक्षा

वंदना ग्रोवर    16 दिसंबर दामिनी/निर्भया /पीडिता की ज़िन्दगी के साथ साथ बहुत सारी जिंदगियों में बदलाव लाया है ..बदलाव के नाम पर भय ,आक्रोश और कहीं कहीं हताशा भी नज़र आई .. इनसे बात करने पर इन युवा बच्चियों ने जिनमे एक बी बी ए की छात्रा...

Monday, December 24, 2012

बलात्कार और आत्मा _ अंजू शर्मा

अंजू  शर्मा      दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना से आज  पूरा देश सकते की स्थिति में है ... इंसाफ की मांगें जायज है ...  .. लेकिन अंजू शर्मा द्वारा धैर्य से लिखा ये आलेख पढना बहुत जरुरी है ...  क़ानूनी जानकारी ...

Sunday, December 23, 2012

'दामिनी प्रकरण' से बेहद आहत लेकिन बुलंद हौंसलों के साथ

चंद्रकांता          worked at -serve to child old blind welfare socity Delhi, India 'स्त्री देह के लिए उन्मांदी' इस भीड़ का यह चरित्र हम सबनें मिलकर तैयार किया है।.." स्त्री का 'स्त्री होना' हमारे समाज...

Friday, December 21, 2012

सवाल सबके है और वाजिब हैं .....जवाब ???

वंदना ग्रोवर             यूँ हर सवाल अपने आप में पूरा जवाब है .. फिर भी इन सवालिया जवाबों पर समाज के सवाल खड़े हो जाते हैं ..क्यों ? क्यों कि आपका दर्ज़ा एक औरत का है जिसे कुछ भी माना जाता हो ..पर इंसान तो...

Monday, December 17, 2012

सोनरूपा विशाल की कविता 'टिप'

सोनरूपा विशाल        पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा ज़िला है बदायूँ | इल्तुतमिश,अमीर खुसरो ,हज़रत निजामुद्दीन, इस्मत चुगताई ,फानी बदायूँनी ,शकील बदायूँनी ,दिजेंद्र नाथ'निर्गुण ',मुंशी कल्याण राय ,पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफ़ा...

Sunday, December 16, 2012

"एक कली मुस्काई "

उपासना सियाग   इधर कविताओं के साथ-साथ कहानियाँ भी लिख रहीं हैं, जीवन में दुःख और सुख धूप-छाँव  की तरह आते-जाते रहतें हैं , उपासना सियान जी की कहानियाँ बनते-बिगड़ते  रिश्तों में सामंजस्य बैठाये रखने का संदेस देतीं हैं....

Tuesday, December 11, 2012

फर्गुदिया समूह द्वारा आयोजित काव्य-पाठ 'अनुगूँज' की रिपोर्ट

अंजू शर्मा अंजू शर्मा कवयित्री, लेखिका, ब्लॉगर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित होतें रहतें हैं अभी हाल ही में बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित स्त्री-विषयक काव्य-संग्रह "औरत होकर भी सवाल करती है" में भी कवितायेँ प्रकाशित...

Thursday, December 06, 2012

सुश्री सुशीला पुरी की कवितायें __ अयोध्या

आज छह दिसंबर है.... इतिहास के लिए काले अध्याय की तरह... आज के दिन सिर्फ एक विवादित ढांचा ही नहीं ...  बहुत कुछ टूटा था  ... किसी की साँसें .. किसी उम्मीदें ... स्वयं सुशीला पुरी जी के शब्दों में .. "आज छह दिसंबर...

अनीता कपूर जी की पांच कविताएँ

अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र “यादें” की प्रमुख संपादिका , कवयित्री अनीता कपूर जी की कविताएँ स्त्री मन के भावों की   सहज अभिव्यक्ति है  1. नहीं चाहिए अब तुम्हारे झूठे आश्वासन मेरे घर के आँगन में फूल नहीं खिला सकते चाँद नहीं उगा सकते मेरे घर की दीवार की ईंट भी नहीं बन सकते अब तुम्हारे वो सपने मुझे सतरंगी इंद्रधनुष नहीं दिखा सकते जिसका न शुरू मालूम है न कोई अंत अब तुम मुझे काँच के बुत की तरह अपने अंदर सजाकर तोड़ नहीं सकते मैंने तुम्हारे अंदर के अँधेरों को सूँघ लिया है टटोल लिया है उस सच को भी अपनी सार्थकता को अपने निजत्व को भी जान लिया है अपने अर्थों को भी मुझे पता है अब तुम नहीं लौटोगे मुझे इस रूप में नहीं सहोगे तुम्हें तो आदत है सदियों से चीर हरण करने की अग्नि परीक्षा लेते रहने की खूँटे से बँधी मेमनी अब मैं नहीं बहुत दिखा दिया तुमने और देख लिया मैंने मेरे हिस्से के सूरज को अपनी हथेलियों की ओट से छुपाए रखा तुमने मैं तुम्हारे अहं के लाक्षागृह में खंडित इतिहास की कोई मूर्त्ति नहीं हूँ नहीं चाहिए मुझे अपनी आँखों पर तुम्हारा चश्मा अब मैं अपना कोई छोर तुम्हें नहीं पकड़ाऊँगी मैंने भी अब सीख लिया है शिव के धनुष को तोड़ना 2 सीधी बात आज मन में आया है न बनाऊँ तुम्हें माध्यम करूँ मैं सीधी बात तुमसे उस साहचर्य की करूँ बात रहा है मेरा तुम्हारा सृष्टि के प्रस्फुटन के प्रथम क्षण से उस अंधकार की उस गहरे जल की उस एकाकीपन की जहाँ  तुम्हारी साँसों की ध्वनि को सुना है मैंने तुमसे सीधी बात करने के लिए मुझे कभी लय तो कभी स्वर बन तुमको शब्दों से सहलाना पड़ा तुमसे सीधी बात करने के लिए वृन्दावन की गलियों में भी घूमना पड़ा यौवन की हरियाली को छू आज रेगिस्तान में हूँ तुमसे सीधी बात करने के लिए जड़ जगत, जंगम संसार सारे रंग देखे है मैंने ए कविता ......... तुम रही सदैव मेरे साथ जैसे विशाल आकाश, जैसे स्नेहिल धरा, जैसे अथाह सागर, तुमको महसूस किया मैंने नसों में, रगों में जैसे तुम हो गयी, मेरा ही प्रतिरूप शब्दों के मांस वाली जुड़वा बहनें स्वांत: सुखाय जैसा तुम्हारा सम्पूर्ण प्यार... इसील्ये आज मन में अचानक उभर आया यह भाव- कि बनाऊँ न तुम्हें माध्यम अब करूँ मैं सीधी बात तुमसे 3 साँसों के हस्ताक्षर हर एक पल पर अंकित कर दें साँसों के हस्ताक्षर परिवर्तन कहीं हमारे चिह्नों   पर स्याही न फेर दे साथ ही जिंदगी के दस्तावेजों पर अमिट लिपि में अंकित कर दे अपने अंधेरे लम्हों के स्याह हस्ताक्षर कल को कहीं हमारी आगामी पीढ़ी भुला न दे हमारी चिन्मयता चेतना लिपियाँ प्रतिलिपियाँ.... भौतिक आकार मूर्तियां मिट जाने पर भी जीवित रहे हमारे हस्ताक्षर खोजने के लिए जीवित रहें हमारे हस्ताक्षर कहीं हमारा इतिहास हम तक ही सीमित न रह जाये इसीलिये आओ प्रकृति के कण-कण में सम्पूर्ण सृष्टि में चैतन्य राग भर दें अपनी छवि अंकित कर दें दुनिया की भीड़ में खुद को शामिल न करें। भविष्य की याद हमें स्वार्थी बना कर आज ही पाना चाहती है अपना अधिकार न हम गलत है, न हमारे सिद्धांत फिर भी स्वार्थी कहला कर नहीं लेना चाहते अपना अधिकार आओ अंकित कर दें हर पल पर अपनी साँसों के हस्ताक्षर 4 अलाव तुमसे अलग...

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