Tuesday, July 09, 2013

कश्मीर की वादियाँ -रजनी मोरवाल,कवितायें

निंदिया के पाँव-रजनी मोरवाल------------------------------------









1-

रिश्तों की मधुशाला





कैसे मन का दीप जलाऊँ

खुशियाँ पर जाले हैं,

रिश्तों के द्वारे पर कब से

पड़े हुए ताले हैं |



सोने के पिंजरे में पालूँ

मोती रोज चुगाऊँ,

साँसों की वीणा में गाकर

प्यारा गीत सुनाऊँ |



रिश्तों के पंछी ने आखिर

डेरे कब डाले हैं ?



कितना चाहूँ और सहेजूँ

सपनों‌ से नाजुक हैं,

जन्मों की चाहत से परखूँ

आँसू से भावुक हैं |



रिश्तों के मधुशाला में तो

दृग- जल के प्याले हैं |



पर्वत -सी ऊँचाई इनमें

नदियों से आकुलता,

झीलों- सी गहराई इनमें

सागर-सी व्याकुलता |



रिश्तों की पीड़ाओं के पग

छाले ही छाले हैं |

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2-

तुम्हारा ख़त





तुमको याद किया जब - जब दिल मेरा भर आया |

बहुत दिनों के बाद तुम्हारा गीला ख़त आया |




शब्द-शब्द की व्यथा बाँचते

तन­ - मन मुरझाया,

बाँसों के जंगल में जैसे

सन्नाटा छाया |



पलकों ने पीड़ाओं का फिर आँगन बुहराया |




आँसू टपके छिन -छिन आँखें

हारी बेचारी,

बदली आकर जैसे सींचे

पलकों की क्यारी |



प्रेम - पत्र में साजन ने सपनों को बरसाया |



सूने आँगन में बिखरी

बिन साजन तन्हाई,

यौवन में सावन की बूँदों

ने ली अँगड़ाई |



काग़ज -पाती में प्रियतम का मुखड़ा मुसकाया |

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3-


निंदिया के पाँव






निंदिया के पाँव चले सपनों की ओर

नयनों से झाँक रही काजल की कोर |



यादों ने करवट ली

खोल दिए नैन,

योवन ने छीन लिया

तन-मन का चैन |



प्रेमिल उन्माद जगा नाचे ज्यों मोर |


साजन के द्वार चली

प्रीति की पतंग,

जीवन की डोर बँधी

प्रियतम के संग |


आँगन में रिश्तों-सी उतरी है भोर |


मौसम ने ऋतुओं के

खोले भुजबन्ध,

अंगों में लहराई

फागुनी सुगंध |






अँगिया को चूम रहा चूनर का छोर |


   ♦♦♦



4-
कश्मीर की वादियाँ
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ऋतुओं के आँचल में फूलों के तार
कलियों ने बाँधी हैं झूम के कतार|

कश्मीरी वादी में
काँपती तरंग,
घाटी भी देख रही
केशर का रंग|

दूर तलक बिखरे हैं घने देवदार|

झीलों में तैर रहे
सतरंगी फूल,
पर्वत से नदियाँ की
देह गई झूल|

सिरहन ने माँग लिया धुप को उधार|

धुंधियाते आँगन
औ' मिट्टी के गाँव,
जाड़े की रातों में
ठिठुर रहे पाँव|

खेतों के दामन में शीत की फुहार|
*** 





5-

ओस-सा मन

वेदना  से  पिघलता है मोम-सा  मन|

आँधियों  ने राह रोकी  जब कभी
दर्द   सहलाए  बवंडर  ने  सभी
खुल गयी परतें सभी उम्मीद की,

टिक गया है फुनगियों पर, धुप-सा मन|

मखमली   बाँहे  हुई  अभिसार  में
खिल  गए हों ज्यों सुमन पतझार में
घाटियों  में  तान चादर  साँझ  की,

छिप  गया है  बादलों में चाँद-सा  मन|

प्रीति की चटकी कली जब बाग़ में
देह  सारी  सिहरती  अनुराग  में
क्या जगी है कामना उन्माद की?

घुल  गया  सूरज-किरण में ओस-सा मन|
***

परिचय-पत्र

     
श्रीमती रजनी मोरवाल                                      
                                           
जन्म-तिथि       :       1 जुलाई 1967
जन्म-स्थान       :       आबूरोड़ (राजस्थान)
शिक्षा            :       बी.ए.(हिन्दी), बी.कॉम, एम.कॉम, बी.एड. 
संप्रति           :               केन्द्रीय विद्यालय  में शिक्षिका के पद पर कार्यरत
प्रकाशन          :               (1) काव्य-संग्रह - सेमल के गाँव से
                                                (2) गीत-संग्रह  - धूप उतर आई
                     (3) गीत‌‌-संग्रह  -  “अँजुरी भर प्रीति

सम्मान                    :       (1) वाग्देवी पुरस्कार
(2) रामचेत वर्मा गौरव पुरस्कार
(3) हिन्दी साहित्य परिषद, गुजरात द्वारा आयोजित काव्य
                            प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्ति स्वरूप रजत पदक एवं
                            प्रशस्ति-पत्र से, महामहिम श्रीमती (डॉ.) कमला बेनीवाल,
                            राज्यपाल, गुजरात द्वारा हिन्दी पर्व पर पुरस्कृत।

                        (4) अस्मिता साहित्य सम्मान 
मूल-निवास       :       23/97, आर्ष स्वर्ण पथ, मानसरोवर, जयपुर 302021

सम्पर्क-सूत्र       :       सी‌- 204, संगाथ प्लेटीना, साबरमती-गाँधीनगर हाईवे,
मोटेरा, अहमदबाद -380 005

दूरभाष          :       079-27700729, मोबा.09824160612
                                 *** 

6 comments:

  1. सभी रचनाएं बेहद खूबसूरत ... बधाई रजनी जी

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  2. कल 11/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  3. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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