दिल्ली में घरेलू कामगार (डोमेस्टिक हेल्प) के रूप में काम करने वाली रूबी
पर एक आलेख आप पहले सम्बंधित लिंक पर पढ़ चुके हैं
अपने पिताजी के साथ सड़क पर चाय बेचने वाली रूबी का गंभीर आर्थिक तंगी के चलते किसी तरह दिल्ली आगमन हुआ.रूबी नें बताया की पहले से यहाँ रह रही उनकी
मौसी ने उन्हें काफी सपोर्ट किया. यहाँ रूबी की डायरी से लिए गए उनकी आपबीती के कुछ अंश ..
'मेरे मौसा मौसी मम्मी पापा यह चारों पेड़ के नीचे
सोया करते थे और हम गैराज में सोया करते थे चारपाई के नीचे चार जन और चारपाई के
ऊपर तीन जनें ..धिरे- धिरे हमने भी एक गैराज लिए.मेरी मम्मी नें
कोठियों में काम करना शुरू कर दिया और मेरे पापा ने गाड़ (गार्ड)की नौकरी करनी शुरू कर दी.और मैं गैराज वालों का
काम और घर का सारा खाना बनाना शुरू कर दिया.'
धिरे-धिरे मेरी मम्मी नें हम तीनों को स्कूल में भारती करवा दिया और इसी
तरह हम सबकी जिंदगी व्यतीत होती गयी.
‘मैं जब पंद्रह साल की हो गयी और उस समय आठंवी कक्षा में थी तब से मेरी
शादी की बात चलनी शुरू हो गयी क्यूंकि हमारे गाँव में लड़कियों की शादी १२ या १३
साल के अंदर किया जाता है .गाँव में मेरी शादी हो
गयी उस समय मुझे शादी का मतलब तक नहीं मालूम था..की शादी के बाद लड़कियों के साथ क्या क्या
मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.’
शादी के डेढ़ महीने बाद मैं दिल्ली आ गयी .और यहाँ पर आने के बाद मैंने स्कूल जाना शुरू
कर किया .मैंने अपनी जिंदगी के साथ समझौता कर लिया..
'सुबह चार बजे उठती थी और सबसे पहले मैं मेरे और अपने पति के लिए नाश्ता और खाना
एक ही बार में बना कर रख दिया करती थी.उसके बाद मैं पांच बजे निकल जाया करती थी घर से काम करने के लिए.और फिर ७.३० बजे तक दो घर का काम करके जल्दी-जल्दी साइकिल चला कर घर वापस आती थी और फिर
स्कूल के लिए तयार (तैयार) होकर जल्दी -जल्दी भगा दौड़ी में यदि खाना खाने का टाइम मिलता था तो खाती
वरना मैं दो बजे खाना खा पाती थी.'
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घर में नियमित आमदनी नहीं होने के कारण रूबी अभी माँ नहीं बनना चाहती थी
लेकिन सास की जबरदस्ती के चलते उन्हें गर्भ धारण करना पड़ा.बेहद दुःख हुआ यह जानकर और
खिसियाहट भी कि दो साल पहले दिल्ली से जाने के बाद गाँव में उन्होंने एक लड़के को
जन्म दिया ,खून की कमी से माँ-बच्चा दोनों बेहद कमजोर थे ..बच्चे नें तीसरे दिन दम
तोड़ दिया. हाल ही में मालूम हुआ की रूबी फिर से सात माह से गर्भवती है वह बेहद कमजोर दिखती है उसे गंभीर अनीमिया है और वह अभी दिल्ली
में ही है.अपनी गर्भ-अवधि के दौरान ही उन्होंने यह डायरी लिखी.फिलहाल उनकी देखभाल
के लिए उनके परिवार से कोई भी नहीं है.
हमनें रूबी को हमेशा एक जुझारू लड़की के रूप में ही देखा है लेकिन अब उनके चेहरे पर एक ठहरी हुई उदासी है ..उम्मीद है हमारे साथ से यह उदासी कुछ कम हो पाए .हम रूबी के साथ हैं ..
फर्गुदिया मंच से
चंद्रकांता
क्या बात है, बहुत बढिया
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