निंदिया के पाँव-रजनी मोरवाल------------------------------------
1-
रिश्तों की मधुशाला
कैसे मन का दीप जलाऊँ
खुशियाँ पर जाले हैं,
रिश्तों के द्वारे पर कब से
पड़े हुए ताले हैं |
सोने के पिंजरे में पालूँ
मोती रोज चुगाऊँ,
साँसों की वीणा में गाकर
प्यारा गीत सुनाऊँ |
रिश्तों के पंछी ने आखिर
डेरे कब डाले हैं ?
कितना चाहूँ और सहेजूँ
सपनों से नाजुक हैं,
जन्मों की चाहत से परखूँ
आँसू से भावुक हैं |
रिश्तों के मधुशाला में तो
दृग- जल के प्याले हैं |
पर्वत -सी ऊँचाई इनमें
नदियों से आकुलता,
झीलों- सी गहराई इनमें
सागर-सी व्याकुलता |
रिश्तों की पीड़ाओं के पग
छाले ही छाले हैं |
*****************
2-
तुम्हारा ख़त
तुमको याद किया जब - जब दिल मेरा भर आया |
बहुत दिनों के बाद तुम्हारा गीला ख़त आया |
शब्द-शब्द की व्यथा बाँचते
तन - मन मुरझाया,
बाँसों के जंगल में जैसे
सन्नाटा छाया |
पलकों ने पीड़ाओं का फिर आँगन बुहराया |
आँसू टपके छिन -छिन आँखें
हारी बेचारी,
बदली आकर जैसे सींचे
पलकों की क्यारी |
प्रेम - पत्र में साजन ने सपनों को बरसाया |
सूने आँगन में बिखरी
बिन साजन तन्हाई,
यौवन में सावन की बूँदों
ने ली अँगड़ाई |
काग़ज -पाती में प्रियतम का मुखड़ा मुसकाया |
*******************
3-
निंदिया के पाँव
निंदिया के पाँव चले सपनों की ओर
नयनों से झाँक रही काजल की कोर |
यादों ने करवट ली
खोल दिए नैन,
योवन ने छीन लिया
तन-मन का चैन |
प्रेमिल उन्माद जगा नाचे ज्यों मोर |
साजन के द्वार चली
प्रीति की पतंग,
जीवन की डोर बँधी
प्रियतम के संग |
आँगन में रिश्तों-सी उतरी है भोर |
मौसम ने ऋतुओं के
खोले भुजबन्ध,
अंगों में लहराई
फागुनी सुगंध |
अँगिया को चूम रहा चूनर का छोर |
♦♦♦
4-
कश्मीर की वादियाँ
-----------------------
ऋतुओं के आँचल में फूलों
के तार
कलियों ने बाँधी हैं झूम
के कतार|
कश्मीरी वादी में
काँपती तरंग,
घाटी भी देख रही
केशर का रंग|
दूर तलक बिखरे हैं घने
देवदार|
झीलों में तैर रहे
सतरंगी फूल,
पर्वत से नदियाँ की
देह गई झूल|
सिरहन ने माँग लिया धुप
को उधार|
धुंधियाते आँगन
औ' मिट्टी के गाँव,
जाड़े की रातों में
ठिठुर रहे पाँव|
खेतों के दामन में शीत
की फुहार|
***
5-
ओस-सा मन
वेदना से पिघलता है मोम-सा मन|
आँधियों ने राह
रोकी जब कभी
दर्द सहलाए बवंडर ने सभी
खुल गयी परतें सभी उम्मीद की,
टिक गया है फुनगियों पर, धुप-सा मन|
मखमली बाँहे हुई अभिसार में
खिल गए हों
ज्यों सुमन पतझार में
घाटियों में तान चादर साँझ की,
छिप गया है बादलों में चाँद-सा मन|
प्रीति की चटकी कली जब बाग़ में
देह सारी सिहरती अनुराग में
क्या जगी है कामना उन्माद की?
घुल गया सूरज-किरण में ओस-सा मन|
***
परिचय-पत्र
श्रीमती रजनी मोरवाल
जन्म-तिथि : 1 जुलाई 1967
जन्म-स्थान : आबूरोड़
(राजस्थान)
शिक्षा : बी.ए.(हिन्दी),
बी.कॉम, एम.कॉम, बी.एड.
संप्रति : केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत
प्रकाशन : (1) काव्य-संग्रह - “सेमल के गाँव से”
(2) गीत-संग्रह - “धूप उतर आई”
(3) गीत-संग्रह - “अँजुरी भर प्रीति”
सम्मान : (1) वाग्देवी पुरस्कार
(2) रामचेत वर्मा गौरव पुरस्कार
(3) हिन्दी साहित्य परिषद, गुजरात द्वारा आयोजित काव्य
प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्ति
स्वरूप रजत पदक एवं
प्रशस्ति-पत्र से, महामहिम श्रीमती (डॉ.) कमला
बेनीवाल,
राज्यपाल, गुजरात द्वारा हिन्दी पर्व पर
पुरस्कृत।
(4) अस्मिता साहित्य
सम्मान
मूल-निवास : 23/97, ‘आर्ष’ स्वर्ण पथ, मानसरोवर, जयपुर – 302021
सम्पर्क-सूत्र : सी- 204, संगाथ प्लेटीना, साबरमती-गाँधीनगर
हाईवे,
मोटेरा, अहमदबाद -380
005
दूरभाष : 079-27700729, मोबा.09824160612
***
सभी रचनाएं बेहद खूबसूरत ... बधाई रजनी जी
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteधन्यवाद मीना जी
Deleteकल 11/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद यशवंत जी
Delete
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |