फर्गुदिया , नाम लेते ही मन के आकाश पर चिड़िया सा एक चित्र उभर जाता है । उसकी उम्र भी अभी उड़ने की ही थी । पूरा जहाँ जानना था उसे ; लेकिन हमारा समाज उससे किसी शिकारी और कसाई से भी ज्यादा क्रूरता से पेश आया और आज बस उसका नाम रह गया है, और रह गया है वह कलंक जो हमारे समाज के माथे पर आज भी व्याप्त है । वैसे तो वह एक गाँव की साधारण सी लड़की ही थी। लेकिन आज जब भी समाचार , अखबार मे कहीं देखती-सुनती हूँ उसी तरह की दरिंदगी तो जैसे जिंदा हो उठती है वह मेरे भीतर।
आज से करीब एक साल पहले जब मैंने फेसबुक पर सिर्फ महिलाओं के लिए एक ग्रुप बनाया और नाम फ़र्गुदिया रखा तो मुझसे फ़र्गुदिया के बारे में बहुत सारे प्रश्न किये गए ..जैसे .. ये फरगुदिया क्या है , कौन है , उसकी कहानी क्या है ...? इत्यादि ... हर किसी को मैं फरगुदिया शब्द का अर्थ और उस लड़की जिसका नाम फर्गुदिया था उसके बारे में समझाती रही , आज फरगुदिया ग्रुप में करीब 400 महिला सदस्य हैं , ग्रुप के लगभग सभी सदस्य आज फरगुदिया नाम से परिचित हैं, वो कौन थी , उसके साथ क्या हादसा हुआ ... लगभग सभी कुछ |
दिनांक 27 / 5 / 12 को संजय मिश्रा जी ,सईद अयूब और मैंने मिलकर ' फर्गुदिया के नाम एक शाम ' का आयोजन किया , कार्यक्रम में सब के साथ मिल –बैठ कर फर्गुदिया के बहाने हम सबने समाज, स्त्री-जीवन और उससे जुड़ी समस्याओं पर विचार किया | आप सभी के सहयोग से यह संभव होगा ऐसी उम्मीद तो अवश्य थी पर एक संशय भी था कि अपनी व्यस्तताओं से कैसे लोग समय निकाल पाएंगे। मेरा कद और नाम ऐसा तो ऐसा था नहीं कि लोग बस नाम सुनके चले आते। लेकिन वह दो लाइनें जो पढ़ा करती थी कल मेरे लिए भी सही साबित हो गईं की ‘लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया ’| कार्यक्रम में आए सभी मित्रों , अतिथियों और विद्वतजनों की आभारी हूँ कि सबने अपनी गरिमापूर्ण सहभागिता प्रदान की | आदरणीय नन्द भारद्वाज जी, पुरुषोत्तम अग्रवाल जी और हरीश नवल जी की विशेष आभारी हूँ | आप सब एक संस्था, एक विधा का प्रतिनिधित्व करते हैं | अग्रवाल जी जो देश की दो महान संस्थाओं से जुड़े हैं, बिना किसी औपचारिकता के समय से आए और अंत तक हमारे बीच रहे, प्रसन्नता से अधिक यह गर्व की बात है | और सच कहूँ तो शायद हर जगह वह इतना समय नहीं देते होंगे | आशा करती हूँ कि भविष्य में भी आप तीनों विद्वतजन और सभी सहयोगी मित्र इसी तरह सहयोग करते रहेंगे | कार्यक्रम सफल रहा या नहीं इसका निर्णय आप सभी करेंगे , मुझे तो बस यही लगा कि जैसे कोई कर्ज चुकता किया हो मैंने | एक संतोष का भाव है अब | आप सब के सहयोग से कुछ सार्थक पहल की शुरुआत हो गयी | इसे बनाए रखना आप सब की ज़िम्मेदारी है ।अब मेरी फर्गुदिया का नाम सिर्फ फेसबुक तक ही सीमित नहीं है फेसबुक के बाहर भी सभी की जुबान पर फर्गुदिया का नाम है | " क्यों न पृथ्वी का नाम फर्गुदिया रख दें " लीना जी की कविता की आखिरी पंक्तियों ने तो फर्गुदिया के लिए बहुत बड़ी बात कह दी !!! सच .. मेरा सपना भी यही है पृथ्वी का नाम फर्गुदिया रख दें और आसमान में फर्गुदिया नाम की बहुत सारी चिड़िया उड़े ......वरिष्ठ कवयित्रियों सविता सिंह जी , सुमन केसरी जी , स्नेह सुधा नवल जी के साथ साथ लीना मल्होत्रा राव , अंजू शर्मा , डॉ सोनरूपा विशाल , विपिन चौधरी , रश्मि भारद्वाज , निरुपमा सिंह , स्वाति ठाकुर की आभारी हूँ |स्वयं कवि और समाज सेवी प्रेम भारद्वाज जी ,डॉ गीता सिंह भी कार्यक्रम में मौजूद थे उनका भी हार्दिक आभार | मुकेश मानस जी , भरत तिवारी जी ,वंदना ग्रोवर जी , पूनम मटिया ,राघवेन्द्र अवस्थी जी , रविन्द्र के दास जी , स्वतंत्र भारत , सुबोध कुमार जी , रूपा सिंह , स्नेह देसाई , धीरज कुमार , नरेन्द्र कुमार , रोहित कुमार , भास्कर ठाकुर , सुशील , महेश दीक्षित जी , मंजू दीक्षित जी , चंद्रकांता , सखी समूह की सह संचालिका अरुणा सक्सेना जी भी कार्यक्रम में उपस्थित थी , आप सभी का हार्दिक आभार |और आखिर में अपने पति संजय मिश्रा जी को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी जो सही मायने में इस कार्यक्रम के आयोजक थे |
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