Friday, February 08, 2013

अकेली महिला, दर्द कितना बड़ा ? संतोष राय

संतोष राय               


जन्म स्थान: आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश
शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन एवं पत्रकारिता में डिग्री
2005 से दिल्ली में पत्रकारिता के पेशे में हैं 
वर्तमान में समय (सहारा न्यूज़ नेटवर्क) में कार्यरत 


अकेली महिला, दर्द कितना बड़ा ?
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दिल्ली की रेनू कहती हैं- “ पांच साल पहले मैंने घर वाले की सहमति के बगैर रजनीश से शादी की। सबसे बड़ी खुशी इस बात की थी कि मुझे मेरा प्यार मिल गया था। शादी के बाद स्थिति बदलती गई। रजनीश जो नौकरी करते थे छोड़ दिया। ज्यादातर वक्त घर पर ही बीतने लगा। जब मैं उन्हें नौकरी के लिए कहती –खूब झगड़ा होता। जब मैं खुद की नौकरी की बात करती तो उनके इज्जत पर बन आती कि तुम नौकरी कैसे कर सकती हो। इस बीच एक बेटा हो गया। सोचने लगी कि हो सकता है बेटे के होने के बाद रजनीश कोई नौकरी शुरू कर दें। लेकिन उनके भीतर कोई बदवाल नहीं आया। ससुर जी के रिटायरमेंट के जो पैसे मिले सब खर्च हो गए। एक दिन जो घटना घटी- पहले से जो मेरे भीतर जो दर्द था वो और गहरा हो गया। रजनीश दो दिन के लिए पटना गए फिर लौट कर नहीं आए। कुछ समय बाद पता चला कि वो किसी और के साथ शादी करके रह रहे हैं वो भी अपनी उम्र की दोगुनी महिला के साथ।“

आगरा की अनीता कहती हैं- “मेरी शादी पारिवारिक सहमति से हुई। शादी के कुछ समय तक सब ठीक ठाक था। मेरे पति शराब पीते थे लेकिन बाद में वो लत में बदल गई। बिना शराब पीए घर नहीं आते थे और घर आने के बाद रोज झगड़ा। यही दिनचर्या बन गई थी। इसी बीच दो बेटियां जन्म ले चुकी थीं। पति की शराब की लत और आने वाले दिनों में परिवार के खर्च ने मेरी परेशानी को दुगुना कर दिया था। मैं अपने मायके में आकर रहने लगी। पतिदेव के बारे में बस इतना पता है कि वो एक सुधार गृह में भर्ती हैं। लेकिन दो-चार महीने में जब उन्हें घर लाया जाता है फिर शराब पीने लगते हैं।”
गार्गी इंदौर में रहती हैं। कहती हैं शादी के बाद के दो साल ग्यारह महीने अट्ठारह दिन ही मेरे जीवन का स्वर्णिम था इसके बाद तो पूरा जीवन नरक बन गया- “मेरी शादी खूब धूमधाम से हुई थी। अगले करीब तीन साल तक घर में खुशियां ही खुशियां थीं। मेरे पति बहुत अच्छे थे। शायद यही अच्छाई ईश्वर को पसंद नहीं आई। मामूली झगड़े में पति की हत्या कर दी गई। मैं ईश्वर को कभी माफ नहीं करूंगी। पति के देहांत के बाद एक बेटी पैदा हुई। जो आज 22 बरस की है जिसके सहारे मैं जी रही हूं। लेकिन कब तक?”
ये तीनों महिलाएं दिल्ली, आगरा और इंदौर में रहती हैं तकदीर ने उन्हें जो घाव दिए हैं और उससे बड़ा दर्द जो एक स्त्री होने का है-वो शायद पूरे जीवन नहीं भूल पाएंगी। ये विडंबना रेनू, गार्गी और अनीता तक ही सीमित नहीं है बल्कि हजारों महिलाएं इसी परिधि में जीने को मजबूर हैं।
पुराने समय में लोग कहा करते थे कि स्त्री को हमेशा एक संरक्षण की जरूरत पड़ती है। शादी से पहले पिता और भाई, शादी के बाद पति और बुढ़ापे में बेटा। क्या इससे इतर स्त्री का कोई वजूद नहीं हो सकता? क्या अकेली पड़ी स्त्री को सम्मान पूर्वक जीने का हक नहीं है?
गार्गी कहती हैं- “इलाहाबाद के बाद जब हम इंदौर आकर रहने लगे तो कुछ समय तक तो सब ठीक था लेकिन लोगों को जैसे-जैसे पता चलने लगा कि ये महिला अकेली है। लोगो के देखने का नजरिया बदल गया। कुछ लोग आसपास मडराने लगे। उनकी भूखी निगाहें खा जान के लिए ताकती रहतीं। इन्हीं सब वजहों से पिता जी मेरे साथ रहने लगे। कई बार लोगों से झगड़ा हुआ। जब ये पता चल गया कि यहां दाल नहीं गलने वाली है तो ये खबर फैलाने लगे कि ये महिला ही गंदी है, कॉलगर्ल टाइप की है।”
गार्गी की कहानी की प्रतिक्रिया है कि आज महिलाएं ये भी फैसले लेने लगी हैं कि वो पूरी जिंदगी अकेले गुजारेंगी । शादी तो बहुत दूर की बात है। ऐसी ही परिस्थितियों से पीड़ित महिलाओं के मन में पुरुषों के प्रति एक अजीब सी घृणा पैदा हो गई है। हमारे समाज में आज तक ये सोच नहीं बन पाई है कि अपने परिवार से इतर की महिलाओं को भी सम्मान दिया जाना चाहिए। खुद के परिवार की बहन-बेटी, बहन बेटी है और दूसरे परिवार की बेटी-बहन माल है-ये नजरिया और स्त्रियों के देखने का पुरुष का दृष्टिकोण कब बदलेगा इसका कोई वक्त तय नहीं लगता।
दिल्ली की रेनू कहती हैं – “मैं आज भी ये बता पाने की हिम्मत नहीं कर पाती कि मेरे पति मुझसे अलग रहते हैं और किसी अन्य महिला के साथ रहते हैं। मुझे इस बात की चिंता सताती है कि लोगों को पता चलेगा तो परिवार की बाकी इज्जत भी चली जाएगी। पिछले तीन साल से अलग हूं फिर भी सिंदूर लगाती हूं क्या करूं कुछ समझ नहीं आता। शायद किस्मत में यही लिखा है।”
आगरा की अनीता कहती हैं – “कौन मां-बाप चाहेगा कि शादी के बाद भी उसकी बेटी उसके पास आकर रहे। लेकिन धन्य हैं मेरे मम्मी-पापा जो ना सिर्फ मेरा खर्च उठा रहे हैं बल्कि मेरी दो बेटियों की पढ़ाई लिखाई का खर्च भी दे रहे हैं। लेकिन एक संकोच हमेशा बना रहता है।“
अकेली पड़ी स्त्री का कानून क्या सहयोग करेगा? वकील, कोर्ट, कचहरी वह जहां भी जाएगी अकेली ही तो जाएगी। अकेली स्त्री का दर्द बहुत बड़ा होता है। यहां समाज को ही अपने सोच में बदलाव की जरूरत है। उम्मीद यही की जा सकती है कि आने वाले वक्त में समाज और संवेदनशील होगा और एक स्वस्थ सोच विकसित कर पाएगा।

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