वंदना ग्रोवर जी की कवितायें स्त्री पक्ष को बहुत ही सीधे और सरल ढंग से
रखतीं हैं, पुस्तक मेले में उनके पहले कविता संग्रह "मेरे पास पंख
नहीं हैं " का विमोचन हो रहा है , उन्हें बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ...
1-एक हिस्सा मेरे वजूद का
मेरे वजूद का एक हिस्सा
सोया है किसी कोने में
खुदाया महफूज़ रख उसे
कि लम्हे हैं कुछ हसीनतर क़ैद उसमें
बचपन है जवानी है
ठिठोली है ठहाके हैं
कुछ नर्म अहसास भी हैं ..
और
कुछ अनछुए
अनजाने पल
किसी की ज़िन्दगी के
जो कर देते
मुक़म्मल एक शख्सियत को
काश !
मिल जाता वो दस्तावेज़
लिखा जाता था जो
खामोशी में अक्सर
फिक्र थी जिसमे ,कशमकश थी ,
हौसले थे ,कोशिशें थी ,
ज़द्दो-ज़हद थी ..और थी
बुलंदी पर पहुँचने की पूरी दास्ताँ ..
पर
मुझे तलाश है
कुछ रूमानी लम्हों की
और
कुछ अपने साथ जिए वक़्त की
मुझे तलाश है अपनी रूह की
मेरे खुदा
दे दे मुझे
मेरे वालिद की
वो
सफ़ेद -सुनहरी डायरी !
- 2-शब्द तैरते हैं उन्मुक्त से
आहलाद बन कभी सतह पर
अवसाद बन डूबते उतरते हैं कभी
कुछ ऊपर कुछ भीतर
बजते हैं जलतरंग से
फुंफकारते हैं अर्थ जब
सहमे जज़्बात की मछलियाँ
दम तोड़ने लगती हैं
ज़हर घुलने लगता है
विवेक के सागर में
नीला जो जीवन है
फैला है
ज़मीं से आसमां तक
यकायक काला होने लगता है
शब्दों पर व्याप्त
अर्थ की काली छाया
क़ैद कर उन्हें अपनी सीमा में
डुबो देना चाहती है
शब्द बेबस, बेजुबान ,अवाक ..
दिशाहीन
असमंजस के भंवर में जा फंसे हैं
उनका डूबना तय है
अर्थ ने विश्वासघात किया है .
3-
शिकायत नहीं
रोना भी नहीं
अतीत अब रुलाता नहीं
खामोशी को गहराता है
अपने साथ जीना
अब आखिरी विकल्प है जैसे
हँसना अब सार्वजनिक विषय है
रेलगाड़ी रूकती है
हंसी का कोई हाल्ट भी नहीं
क्रंदन एक्सप्रेस ट्रेन सा
सारे फासलों को तय करता
उड़ता जाता है
गंतव्य को पहचानते हुए भी
अजनबी सा
रास्ते की हर चीज़ से अनजाना सा
नहीं देखता
क्या छूटा क्या साथ रहा
जैसे खुद से भाग रहा है
क्षणिकाएं
1..
तार तार कर दो
उधेड़ दो
मेरा क्या
ज़िन्दगी भी तुम्हारी ,बखिये भी
2..
घुटता है दम
लरजता है कलेजा
दरवाजे खोल दो
मेरी सुबह को अन्दर आने दो
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत ही बेहतरीन रचनाये...
ReplyDeleteअति सुन्दर...
:-)
सभी शानदार रचनाएं ,वंदना ग्रोवर जी को हार्दिक बधाई
ReplyDeleteखूबसूरत....
ReplyDeleteबधाई वंदना जी....
सांझा करने का शुक्रिया शोभा जी.
अनु
भावपूर्ण रचनाएँ ...बहुत बधाई , शुक्रिया .
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