Saturday, June 02, 2012

स्वाति ठाकुर की कविताएँ




1-लड़ना,
जरूरी हो चला है अब,

एक अर्थ में अनिवार्य

लड़ना,

अपने होने को पाने के लिए,

अपनी जिंदगी जी पाने के लिए!

लड़ना,

सच को साबित करने के लिए,

अँधेरी राहों में ग़ुम न होने के लिए!

लड़ना,

अपने लिए रस्ते तैयार करने के लिए

सपनों को जिंदा रखने के लिए!

लड़ना,

जरूरी हो चला है वाकई

आज के वक़्त में,

क्यूंकि

जरूरी हो चला है बेहद

जिंदगी को जिंदगी बनाये रखना!!



2- सजा
किस बात की मिली है उसे

जवाब की जगह है,

एक गहरा मौन...

बस्स!!

क्या सिर्फ लड़की होने की सजा है यह?

लड़की,

क्या शरीर से इतर भी,

कुछ है हमारे सभ्य समाज में?

किसी के वहशीपन की सजा,

क्यूँ भोगे एक लड़की?

सामाजिक विरूपताओं की सजा,

क्यूँ भोगे एक लड़की?

क्यूँ गहरा सन्नाटा है पसरा...

तोडना ही होगा,

इस मौन को,

क्यूंकि लड़की,

महज एक शरीर नहीं,

एक पूरी इन्सान है,

जिसकी आँखों में चमक है

सपनों की,

जिसके हौसलों में ताकत है

उन्हें सच करने की,

पर सभ्य कहने वाले समाज ने,

क्यूँ देखा उसे,

सदा भोग की नजर से?

आज भी देखो,

इठला रहा है,

वहशी समाज

और वह मासूम

खो चुकी है,

सपनों से भरा अपना जीवन!!


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