1 - सीमा
जितना तप यशोधरा के
व्यक्तित्व में हैं
शायद ही किसी
बुद्ध में हो
जितना संघर्ष
इस मुट्ठी भर हृदय में हैं
शायद ही किसी
विश्व युद्ध में हो |
2 - गौतम
अच्छा हुआ गौतम !
की तुम
इस युग में
नहीं हुए
अगर होते
तो __
मेरे साथ
अस्पताल की
बैंच पर बैठ
दुसाध्य रोगी,
असमय वृद्ध
और कई शव
देखने के बावजूद भी
शायद तुम्हें
कुछ नहीं व्यापता
और तुम
बुद्ध बनने से
वंचित रह जाते |
3 - स्त्री-पुरुष
मुझे कहा जाता रहा _
स्त्री बूंद है, पुरुष सागर
प्रकृति का नियम
बताता रहा मुझे बार-बार ज़माना
नदी की नियति सागर में समाना
पर सच कहूँ _
मैंने तो विपरीत पाया
जब ज्ञान आया
नदी तो पुरुष है चंचल मदमाता
हिलोरे डुलाता भागता सीमा रहित
और स्त्री लगी सागर
सीमित,शांत और गंभीर
पर
प्रकृति का सच
सच है आज भी
की नदी की नियति अंततः
सागर ही है
अतः
पुरुष बूंद है, स्त्री गागर
पुरुष नदी है, स्त्री सागर |
"प्रकृति का सच
ReplyDeleteसच है आज भी
की नदी की नियति अंततः
सागर ही है
अतः
पुरुष बूंद है, स्त्री गागर
पुरुष नदी है, स्त्री सागर |" सच का उद्घाटन और स्थापन जमा, रुचा.