Friday, June 01, 2012

मै यूँ ही प्रवाहित हो गई जल में - निरुपमा सिंह


............ निरुपमा सिंह .......
कवित्री , लेखिका
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित 




मैं फरगुदिया

भ्रूण बन रोप दी गई अनचाही धरा में

निरीह (बाप )और गरीब (माँ )द्वारा ..

नियति अपने अंश को आकार देता

जीवन बन चुका था ...

ठीक नौ माह बाद ...

पता नहीं माँ के खेत में काम करने की मज़बूरी ?

या प्रसवपीड़ा ?

मै आ चुकी थी बिना किसी झंझट का

..वस्त्र पहने !

रंग -रूप भी भगवान ने

अमीरों की चाहत की तरह  भर दिया था

'माँ' के थप्पड़ से सहेजती अपने को

पिता की क्रूर आँखों का पहरा

आईना देखने से डरती मै !

सखी -सहेलियों को विदा करते

कब मैंने बचपन को छोड़ दिया ..सुध ही नही

अलहडपन को समेट लौट रही थी .......

.......................रास्ते में बालिग़ करार ..............

.............देते हुए ........मुझसे मेरे जीने का हक छीन लिया गया .

पत्थर मेरी आँखे ...........बर्फ मेरी साँसे .....

घर लौटने का मकसद ...धुंधलाने लगा ...

..........समय की रेत सी (भभकती )सड़क ....

जिन पर से ज़बरन खीचती माँ ...........

ले गई मुझे सीलन भरी कोठारी में ......

पीले दांतों वाली ...काली छाया ने

अनुभवों के मापदंड पर

मृत घोषित कर दिया ..........

........मरने के बाद ..कोई सार्वजनिक जगह नही थी

जहाँ मेरा दाह-संस्कार हो सके ?

कंधे तो चार चाहिए थे .

..पर ...मै तो बिना कंधे वाले समाज की उत्पति थी ....

खैर !!!!!!!!!!

अपने ही भाई बहनों द्वारा ....घसीटती.. पहुंचाई ..गई ..श्मशान तक

संस्कारगत ..कुछ विधियाँ बाक़ी /संवेदनावो के फूल सरीखी ...

सफ़ेद फूल ..मेरी अपवित्रता के लिए ठीक न थे ...

और लाल ...मुझ पर चढ़ाया नही जा सकता था !!

उहापोह में ...

जलाये जाने की विधि किनारे आ गई ..

लड़की और विपन्नता दोनों ...एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ में..

...जितनी लकड़ी मुझें जलाने के लिए चाहिए थी .....

उतने में मेरे परिवार का कई दिन चूल्हा जलता !

संकोच ...निःसंकोच को दबोचता ....

मै यूँ ही प्रवाहित हो गई जल में..

............मेरा वज़ूद ...पीपल की पेड़ पर

............".अपवित्र चुड़ैल "बना टांगा जा चुका है(रहस्यमयी मृत्यु )

.....दूर कहीं से शंख ध्वानि ....किसी और किशोरी को ..

अपवित्र करने का शंख नाद कर रहा था ...........!!


............ निरुपमा सिंह .........कवयित्री , लेखिका 

2 comments:

  1. सफ़ेद फूल ..मेरी अपवित्रता के लिए ठीक न थे ...
    और लाल ...मुझ पर चढ़ाया नही जा सकता था !!
    "_______"

    ReplyDelete

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