विपिन चौधरी
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"हर व्यक्ति का जीवन सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव के अनुभवों के अनेक द्वीपों से होकर गुजरता हुआ निरंतर आगे बढ़ता रहता है, उन्हीं अनुभवों को कभी-कभी हम डायरी के पन्नों में सहेजकर रख लेतें हैं , जीवन के उजले पन्नों पर अनुभव की स्याही से लिखे कुछ अंश फरगुदिया पर विपिन चौधरी की डायरी से ..."
"हर व्यक्ति का जीवन सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव के अनुभवों के अनेक द्वीपों से होकर गुजरता हुआ निरंतर आगे बढ़ता रहता है, उन्हीं अनुभवों को कभी-कभी हम डायरी के पन्नों में सहेजकर रख लेतें हैं , जीवन के उजले पन्नों पर अनुभव की स्याही से लिखे कुछ अंश फरगुदिया पर विपिन चौधरी की डायरी से ..."
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कथ्य:डायरी विधा से कभी भी दोस्ती नहीं रही। मन ही मन कुछ जालें जरूर बुन करती थी जो किसी दीवार पर अपना घर न बना सके। अभी कुछ समय पहले एक कवि दोस्त के बहुत ज़ोर देने में इस विधा से परिचय करने की कोशिश की। बहरहाल कुछ अंश ...
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हिसार १ २ १३
पुरानी चीजें अनायास ही कई बार चौंका देती हैं और दुःख तो देती ही हैं। आज घर में झाड-पोंछ के दौरान यह किताब हाथ लगी है। लिखने का नया-नया शौक लगा था तब किसी पत्रिका में दर्ज साहित्यकारों के फ़ोन नंबर नोट कर लिया करती थी हालाँकि आज की तरह तब भी एक फ़ोन करना पहाड़ पर चढ़ने जैसा कठिन लगता था। आज इन पीले सफ़ों पर दिवगंत हो चुके विष्णु प्रभाकर, पत्रकार आशा कुंदन, कन्हैया लाल नंदन, निर्मल वर्मा, गुमशुदा स्वदेश दीपक, हंसराज रहबर, हमारे शहर हिसार के प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी बलदेव तायल, के फ़ोन नंबर देख कर जीवन की विश्वसनीयता पर एक बार फिर संदेह उपजने में तनिक भी देर नहीं लगी। कुछ देर तटस्त रहने के बाद डायरी को बंद कर फिर से हाथ में डस्टर थाम लिया।
हिसार- 5.2.13
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घर आने के बाद फेसबुक पर आना कम हो जाता है; सोचा देखा जाए क्या कुछ चल रहा है इस मायावी दुनिया में।
अजीब स्तिथि है पहले साहित्यिक गलियारे अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर शाब्दिक मारा-मारी, आरोप-प्रत्यारोप। विज्ञान पढ़ते हुए 320,000 वनस्पतियों की प्रजातियाँ फिर उप प्रजातियाँ और लगभग 62,000 जानवरों की उत्पति, खान-पान, उनके प्राकृतिक रहन-सहन आदि के बारे में पढना और उन्हें अपनी दिमाग की कोशिकाओं में स्थिर रखना इतना कठिन नहीं था,जितना एक मनुष्य योनि के अजीबों गरीब व्यवहार, विचारों, नाना प्रकार की ईर्ष्याओ, आदि से दो-चार होना। उस पर सामने वाला इंसान यदि साहित्यकार हो तो कहना ही क्या। उसकी अगल-बगल के लोगों को अनदेखा कर आगे बढ़ने की ललक को देख कर यह लगता है कि survival of the fittest का सूत्र आज का तथाकथित साहित्यकार ही समझ पाया है तभी वह दुनिया में सबसे 'फिट' दिखना चाहता है। दूर-दराज़ किसी गाँव-कस्बे में लिखने की कोशिश करता कोई नवोदित रचनाकार जब इन महानुभावों के नज़दीक पहुँचता है तो इस दमघोटू साहित्यिक वातावरण से परिचित परिचित के बाद नकारात्मक उर्जा से भर उठता है। सोचती हूँ, नामचीन रचनाकारों के साहित्यिक सरोकारों इस वातावरण की जड़ता को सिरे से ख़तम करना शामिल क्यों नहीं है।
दिल्ली 4 .4.13
क्या दूरियां, रिश्तों का दम तोड़ देती हैं या फिर यह समय देती है सँभलने के लिये या उनका पुनर्मूल्यांकन के लिये। जब दो इंसानी रिश्ते नज़दीक आते हैं तो कई बार जानबूझ कर एक दूसरे की बुराइयां नज़रअंदाज़ कर देते हैं क्योंकि हम अच्छे से जानते हैं कि इन बुराईयों के साथ हम उसे चाह नहीं सकते, इसीलिये हम अपनी सुविधा का रास्ता अपनाते हैं। इस तरह कहीं न कहीं इन्सान अपनी भावनाओं में भी शातिर है। वह लगातार चौकना रहता हैं कहीं उसके रिश्ते में कोई झोल न रह जाये और संभवतः यही कारण है कि इंसान अपने प्रेम के रिश्ते में सबसे अधिक सतर्क है।
दिल्ली 8.4.13
मेरे लिये दूरी और प्रतीक्षा का समय, साधना का एक लम्बा समय है। जिस तरह एक कुम्हार कच्चे घड़े को धुप में अच्छे से पकने के लिये रख देता हैं । दूरी, भी लगभग धूप में पकता हुआ एक रिश्ता ही है। जहाँ रिश्ते के रेशे एक दूसरे से और अधिक मजबूती से जुड़ते चले जा रहे रहे हैं। शांत वातावरण में एक स्फटिक मन्त्र इस बीच अपने- आप को दोहराता चला जा रहा है और मन्त्र सिद्धि हो रही है चुपचाप
दिल्ली 11.5.13
ग्रीन पार्क मेट्रो के गेट नंबर एक से युसूफ सराय आते हुए कुलदीप परांठे वाले की दूकान का बैनर सबसे पहले नज़र आता है। आस- पास की पी जी में रहने वाले छात्रों की यह पसंदीदा दूकान है। आज कुलदीप परांठे वाले के साथ वाली एक नयी दूकान का बड़ा सा बैनर लगा हुआ दिखा . जिस पर बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था 'यहाँ अंतिम संस्कार का पूरा सामान मिलता है"। पढ़ते ही मन ,मनुष्य की अंतिम गति के बारे में सोचते हुए एक बार से उदास हो उठा लेकिन मेरे साथ चलती मेरी सहेली उसी बैनर को पढ़ कर हंसने लगी। उसकी हंसी पर चकित होते हुए मैं सोचने लगी की एक चीज़ को सामने देख कर दो इंसानों के दृष्टीकोण कितने अलग हो सकते हैं। शायद यही एक कवि के 'साइड इफेक्ट्स' होते हों। ।
दिल्ली 20.5.13
त्राटक, मोमबत्ती की लौ पर ध्यान टिकाये रखने की स्थिर कला से कुछ अधिक न होती अगर कई बरस इसमे गोते ना खाये होते और रीढ़ के आखिरी मनके पर ध्यान धरना सिर्फ सहस्त्रार को जाग्रत करने का नायब नुस्खा से न होता, यदि मैंने बरसों इसे अमल में लाया न होता तो ये जीवन की वह स्तिथि थी जब इस महानगर ने मेरे भीतर प्रवेश नहीं किया था। अब, जब इतने सारे नास्तिक लोग मेरे साथी बन चुके हैं जो दिन रात को ईश्वर को लानत भेजा करते हैं तो चुपचाप ध्यान की सभी शिष्ट विधाओं को अपने पास बिठा लेती हूँ। हमेशा ही भीतर के अजब- गजब संसार से रिश्ता जोड़ने के बाद यह संसार बहुत बासी- बासी सा लगता आया है। लेकिन जीवन के दोनों पाँव तो संसार के ठीक केंद्र में ही जमे हुए हैं। बावजूद इसके चित्रकार रज़ा का बिंदु का आकर्षण जो भीतर ज़मा हुआ है वह बिखरने से ठीक पहले बचा लेता है। इसी बिंदु की तासीर से लगातार एक तरंग निकल रही है। जहाँ (crests and trough).की तरह ऊँचाई और निचाई सहज ही पकड़ में आ जाती है।
दिल्ली 22.5.13
जहाँ हाल- फिलहाल वाले दोस्त हाथ से छूटते चले जा रहे हैं वहीँ बरसों पुराने सहपाठी दोस्त फिर से नज़दीक आ गए हैं, पुरानी यादों के अपने बगल में थामे हुए। क्या पुराने रिश्तों को फिर से अपने जीवन में प्रवेश करने देना चाहिए या फिर जो ठीक समीप के रिश्ते हैं उन्हें ही लगातार मांजते रहना चाहिए। तथाकथित दोस्तों द्वारा प्रदात एक- दो चोट के बाद यह बात भी ज़हन में गेडा मार ही लेती है। नौवीं- दसवीं के युवापन के दोस्तों का सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के ज़रिये आगमन लगभग एक चौकाने वाली घटना बनी। उस वक़्त के दोस्त जब हम सब अपने होश संभालने की जुगत में थे, कक्षा में अधिकतर छात्रों के सर पर प्रेम दस्तक दे रहा था। इधर हम दो सहेलियां सिर्फ अपने काम तक ही सीमित रहती। उड़ते-उड़ते देर सवेर पता चलता कि क्लास में कई लड़के-लड़कियों के बीच प्रेम का आदान-प्रदान हो चुका है। हम दोनों सहिलियाँ घोर पढ़ाकू बन मैथ की गुथियो में उलझे हुए हैं और उधर क्लास का वातावरण प्रेममय हुआ जा रहा है। विचित्र वातावरण था उन दिनों।अभी कल ही मेरे नौवी के एक सहपाठी ने पुराने दिनों की बातों के दौरान मुझसे पुछा विपिन सच बताना तुझे अपनी क्लास में कौन सा लड़का पसंद था। बहुत ना नुकुर के बाद एक नाम मैंने बता दिया। लगभग डर कर सफाई देते हुए कि वह तो बचपना था।
अब इन पंक्तियों को लिखते समय सोच रही हूँ कि वह टीनएज आकर्षण या जो कुछ भी था उसे हम फिर से अपने वर्तमान जीवन में लाने से डरते है क्योंकि अब हमारे जीवन पर कई दूसरी परते चढ़ चुकी हैं जो उस पंद्रह-सोलह साल की लड़की को बिलकुल नहीं पहचानती।
दिल्ली 25.5.13
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तसलीमा नसरीन ने मोटा सा मंगल सूत्र पहना हुआ था, जब मैंने मंगलसूत्र के बारे में कुछ पूछा तो तसलीमा झट से कह उठी " मैंने अविवाहित होते हुए बावजूद मंगल सूत्र पहना है क्योंकि मुझे मंगलसूत्र पहनना पसंद है", वहाँ से लौट आने के बाद मैं यह सोचती रही कि अपने निजी जीवन में कितने उतार-चढ़ावों के बाद एक महिला में इतना साहस भर जाता है कि वह समाज द्वारा स्थापित परम्पराओं से अलग हट कर अपनी पसंद से कुछ कर सके। एक साधारण महिला का जीवन तो इन्हीं परम्पराओं को चाहे अनचाहें निबाहने में ही बीत जाता है।
दिल्ली 26.5.13
कभी सिल्विया प्लैथ ने मूड स्विंग के पलों में यह लिखा होगा. "I have the choice of being constantly active and happy or introspectively passive and sad. Or I can go mad by ricocheting in between.” मेरे नज़दीक भी मूड स्विंग के चलते कई काम रुक जाते है जो फिर हाथ से कोसो दूर ही रहते हैं, जैसे आज हुआ मेरे पास दो विकल्प थे. या तो पिछले कई दिनों सेअटका हुआ लेख पूरा करूँ या स्टोर की टांड समेत सफाई करूँ पर पूरा दिन सोती रही और मूड स्विंग के इस अनोखे खेल को समझने का प्रयास करती रही.
दिल्ली 28.5.13
पिछले छह सालों से इस पी जी होस्टल में मेरा एक भरा-पूरा परिवार सा बस गया है। जहाँ परिवार के समान्तर कायदे सामने आते हैं कभी-कभी। आप को हल्का सा बुखार हो या सिर्फ दर्द होने पर सेल्फ मेडिकेशन की इच्छा हो तब आपकी एक नहीं चलेगी आपको दवा लेनी ही होगी और अगर प्रियंका जैसी पुरानी रूम मेट उस वक़्त होस्टल में मौजूद हो तो कड़वा काढ़ा भी पीना पड़ सकता है. कभी अँधेरे में पड़े रहने का मन हो तो आपकों अँधेरे से बहार खींच निकला जाएगा और अकेले रहना तो नामुमकिन है. जबरदस्ती पकड़ कर मुझे लगभग बेकार मजाकिया टाइप की मूवी भी दिखाई जा सकती है . जिन्दगी के कुछ वर्ष होस्टल में न कटे होते तो इन ढेर सारी लडकियों का स्नेह भी कहाँ मिलता मुझे। अभी कुछ और लिखना चाह रही हूँ कि बगल के फ़्लैट वाली नीरू का ठीक नो बजते ही आ जायेगा.और वह अपनी चहकती आवाज़ में कहेगी 'दीदी डिनर कर लिया है तो टेर्रिस पर टहलने आ जाओ' और थका न होने पर भी मुझे जाना ही होगा।
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हरियाणा साहित्य अकादेमी द्वारा प्रेरणा पुरूस्कार से 2007 में सम्मानित युवा कवियत्री विपिन चौधरी हरियाणा के हिसार से है, आलोचक के साथ वो एक अच्छी रचनाकार भी है और कई रचनाओ का प्रकाशन हो चुका है “अँधेरे के मध्य से” (2008) और “एक बार फिर” (2008) उल्लेखनीय हैं।
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हरियाणा साहित्य अकादेमी द्वारा प्रेरणा पुरूस्कार से 2007 में सम्मानित युवा कवियत्री विपिन चौधरी हरियाणा के हिसार से है, आलोचक के साथ वो एक अच्छी रचनाकार भी है और कई रचनाओ का प्रकाशन हो चुका है “अँधेरे के मध्य से” (2008) और “एक बार फिर” (2008) उल्लेखनीय हैं।
विपिन जी की कवितायें तो लाजवाब होती हैं.....उनकी डायरी के पन्नों को पढ़वाने का शुक्रिया.
ReplyDeleteअनु