घुघ्घुर रानी - कहानी
कुछ दिन पहले सईद अयूब की कहानी " घुग्घुर रानी" पढ़ी ... कहानी में बचपन के खेल, गाँव से लेकर अबोध मन में स्फुटित प्रेम का सजीव चित्रण हैं ...यह कहानी पिछले वर्ष 'बनास जन' में प्रकाशित हो चुकी है.
सलीम की नींद टूटने की दो वजहें थीं-चिड़ियों की चहचहाहट और बच्चों का शोर और ये दोनों आवाज़ें इस तरह से आपस में मिल गयी थीं कि सलीम को इनको अलग करने में परेशानी महसूस हुई. उसने एक अंगड़ाई लेते हुए कलाई में बंधी घड़ी देखी-साढ़े पाँच. गर्मियों की ये शामें कितनी लंबी होती हैं...साढ़े पाँच...बाहर धूप अभी भी पर फैलाये हुए थी, लेकिन अब वह थोड़ी थकी-थकी सी लग रही थी. ऐसा लगता था कि कुछ देर बाद वह अपने पंख समेट कर बाहर खड़े नीम के पेड़ पर आराम करने के लिए बैठ जायेगी और फिर धीरे-धीरे वहीं सो जायेगी.
सलीम ने खिड़की से बाहर देखा.
बच्चे अपने खेल में मस्त थे. चार-पाँच बच्चों ने अपने हाथों को मिला कर एक घेरा
बनाया हुआ था और घेरे के बीच में एक छः-सात साल की मासूम सी बच्ची खड़ी थी. बच्ची
ने झुककर अपने घुटनों को छुआ और तुतलाती हुई आवाज़ में बोली-
“इत्ता पानी”
घेरा बनाये हुए बच्चों ने जवाब
दिया-
“घुघ्घुर रानी”
बच्ची ने अपने दोनों हाथों से
घुटनों के थोड़ा ऊपर छुआ और बोली-
“इत्ता पानी”
बच्चों ने फिर जवाब दिया-
“घुघ्घुर रानी”
सलीम बहुत गौर से इस खेल को देखने
लगा और न जाने कितनी पुरानी यादें अचानक उसके दिमाग के परदे पर एक रील की तरह चलने
लगीं. सलीम देख रहा था कि अभी वह एक छोटा सा बच्चा है, यही कोई लगभग आठ साल का. वह
और बच्चों के साथ घेरा बनाये खड़ा है. एक लड़की, बिल्कुल इसी लड़की की तरह घेरे के
अंदर खड़ी है और अपने घुटनों को छूकर, चिल्ला कर कह रही है-
“इत्ता पानी”
और बच्चों के साथ सलीम भी चिल्ला
कर जवाब देता है-
“घुघ्घुर रानी”
लड़की हर बार अपना हाथ क्रमशः ऊपर
लाती जाती है. कमर को छूती है फिर अपने
पेट को छूती है, फिर गर्दन को छूती है और हर बार चिल्ला कर कहती है-
“इत्ता पानी”
और बच्चों के साथ सलीम भी चिल्ला
कर जवाब देता है-
“घुघ्घुर रानी”
लड़की इस खेल में घुघ्घुर रानी है जिसे
एक राजकुमार से प्रेम करने की सज़ा में जेल
में डाल दिया गया है. बच्चे जेल के दरवाज़े हैं. घुघ्घुर रानी के रोने से उसी रात
नदी में बाढ़ आ जाती है. पूरा शहर डूबने लगता है. राजा का महल और राजकुमार के बाग
भी डूबने लगते हैं जहाँ राजकुमार और घुघ्घुर रानी छुप कर मिला करते थे. जेल की
कोठरी में भी बाढ़ का पानी आने लगता है. यह देखकर घुघ्घुर रानी घबरा जाती है. वह
जेल के दरवाज़ों से, पानी को दिखा-दिखा कर अपने को बाहर जाने देने का अनुरोध करती
है. लेकिन जितनी बार भी वह दरवाज़ों से कहती है-
“इत्ता पानी”
दरवाज़े बड़ी बेरहमी से उसे डपट
देते हैं-
“घुघ्घुर रानी”
घुघ्घुर रानी परेशान है. पानी
बढ़ता जाता है-अब कमर से ऊपर, अब पेट से ऊपर, अब छातियों से ऊपर, अब गर्दन से ऊपर,
अब सर से ऊपर...ऊपर...और ऊपर...बहुत ऊपर... घुघ्घुर रानी अपने पंजों के बल उचक कर,
फिर कूद कर बताती है-
“इत्ता पानी”
“घुघ्घुर रानी.”
तब घुघ्घुर रानी एक फैसला करती
है. वह दरवाजे बने बच्चों के पास जाती है और बच्चों के आपस में मिले हुए हाथों पर
अपने एक हाथ से तलवार की तरह हमला करते हुए कहती है-
“यह दरवाजा तोड़ेंगे”
बच्चे अपने हाथों की पकड़ को और
मज़बूत कर लेते हैं और चेतावनी भरे लहजे में जवाब देते हैं-
“सिपाही को बुलाएँगे”
घुघ्घुर रानी हर दरवाजे को आजमाती
है-
“यह दरवाजा तोड़ेंगे”
हर दरवाजा यही चेतावनी देता है-
“सिपाही को बुलाएँगे”
दरवाजा बना सलीम बहुत देर से
घुघ्घुर रानी को देख रहा है. उस लड़की का नाम खुश्बू है. वह सलीम के सामने वाले
मकान में रहती है. उसके अब्बा को वह चच्चा कहता है. न जाने क्यों सलीम को इस लड़की
के साथ खेलना अच्छा लगता है. जिस दिन खुश्बू खेल में शामिल नहीं होती, सलीम का मन
खेल में नहीं लगता और वह कोई बहाना बना कर खेल से अलग हो जाता है. घुघ्घुर रानी
बनी खुश्बू आज बहुत प्यारी लग रही है. उसने फ्राक पहन रखा है जिस के किनारों पर
सलमा-सितारे लगे हुए हैं. वह जब भी घूम कर किसी दरवाजे पर पहुँचती है, उसके फ्राक
में लगे हुए सलमा-सितारे झिलमिलाते हैं और सलीम को वे झिलमिलाते हुए रंग बहुत
अच्छे लगते हैं. घुघ्घुर रानी अब सलीम के सामने है. सलीम ने एक और लड़के के हाथ को
पकड़ कर घेरा बनाया हुआ है. घुघ्घुर रानी उस हाथ पर अपने हाथ से तलवार की तरह हमला
करती है-
“यह दरवाजा तोड़ेंगे”
सारे बच्चे एक साथ चिल्लाते हैं-
“सिपाही को बुलाएँगे”
लेकिन सलीम बच्चों के सुर में सुर मिलाने के बजाये एक नज़र
घुघ्घुर रानी के चेहरे पर डालता है और धीरे से अपना हाथ दूसरे लड़के के हाथ से अलग
कर लेता है. घुघ्घुर रानी के सामने दरवाजा खुला हुआ है. वह तेज़ी से दरवाजे से निकल
कर एक ओर भागती है और बाक़ी बच्चे ‘पकड़ो...पकड़ो...’ का शोर मचाते हुए उसके पीछे
भागते हैं.
अगले दिन दोनों आम के बगीचे में
मिलते हैं. रात की तेज हवा में पेड़ से झड़े हुए कच्चे आमों को बीनना और फिर उन्हें
छील कर नमक के साथ खाना और दोस्तों को खिलाना उन्हें अच्छा लगता है. इसके लिए दोनों
सुबह जल्दी ही उठ जाते हैं. लेकिन आज सलीम का मन आम बीनने में नहीं लग रहा है.
खुश्बू एक गिरे हुए आम की तरफ़ बढ़ती है कि वह उसे आवाज़ देता है-
“घुघ्घुर रानी”
खुश्बू हैरानी से उसकी ओर देखती
है. सलीम मुस्कुरा कर उससे कहता है-
“आज से मैं तुम्हें घुघ्घुर रानी
कहूँगा.”
“क्यों?”
“क्योंकि जब मैं बड़ा होकर कमाने
लगूँगा तो तुमसे शादी करूँगा.”
खुश्बू नहीं जानती कि शादी क्या
होती है लेकिन वह इतना जानती है कि यह एक शरमाने वाली बात है. इसलिए वह शरमा कर
वहाँ से भाग जाती है. सलीम नहीं जानता है कि शादी क्या होती है लेकिन उसको खुश्बू
का इस तरह से भागना अच्छा लगता है.
दोनों उसी तरह से “घुघ्घुर रानी”
का खेल खेलते हैं. जब भी खुश्बू घुघ्घुर रानी बनती है, सलीम उसी तरह उसे भागने में
मदद करता है. जब कभी खुश्बू खेलने नहीं आती तो सलीम भी नहीं खेलता, और जब कभी सलीम
नहीं खेल रहा होता है तो खुश्बू अपने को खेल से अलग कर लेती है. दोनों आम के बगीचे
में मिलते हैं और अपने बीने हुए आम एक दूसरे को खिलाते हैं लेकिन जिस दिन उनमें से
एक भी नहीं आ पाता, उस दिन बहुत सारा नमक मिलाने के बाद भी आम का स्वाद कड़वा ही
बना रहता है जैसे कि बहुत सारी नीम की पत्तियाँ चबा डाली हों. दिन यूँही गुज़रते
जाते हैं कि एक दिन अचानक सलीम अपने माँ-बाप के साथ बम्बई चला जाता है. उसे बस यह
पता चलता है कि अब्बा को बम्बई में काम मिल गया है. वह नयी जगह जाने को लेकर बहुत
उत्सुक भी है और खुश भी. बम्बई में उसे एक स्कूल में दाखिल करवा दिया जाता है.
वक़्त तेज़ी से गुज़रता है, इतनी तेज़ी से कि पता भी नहीं चलता कि कितना समय गुज़र गया,
कि आमों की बागों में कितने बार बौर आये, कि कितनी बार आम झरे, कि आमों की एक पूरी
की पूरी नई पीढ़ी बागों में सर उठाये खड़ी हो जाती है, कि बहुत सारे बाग तो अपनी
पीढ़ी के साथ ही समाप्त हो गए और वहाँ आज...और आज अट्ठारह साल बाद, जबकि सलीम की
उम्र छब्बीस साल है, वह अपने माँ-बाप के साथ अपने पुश्तैनी गाँव वापस आया है. वह अब
गाँव को पहचान नहीं पा रहा है. बचपन की जो थोड़ी-बहुत स्मृतियाँ दिमाग में थीं,
उनसे तो यह गाँव बहुत अलग है. हाँ, सामने नीम का पेड़ और मस्जिद की मीनारें वैसी की
वैसी ही हैं जैसा कि उसने अपने बचपन में देखा था. खिड़की से उसने एक बार फिर बाहर
की ओर देखा. वह बच्ची अभी भी घुघ्घुर रानी बनी हुई थी. सलीम ने सोचा-
“खुश्बू अब कहाँ होगी?...कैसी
होगी?...क्या उसकी शादी हो चुकी है?...क्या अब वह मुझे पहचान पाएगी?...क्या मैं
उसको पहचान पाउँगा?...हाँ! क्यों नहीं?...ज़रूर पहचान लूँगा...लेकिन मालूम नहीं वह
कहाँ है?...अगर उसकी शादी कहीं और हो गयी हो तो...तो उसे तो पता भी नहीं चलेगा कि
मैं यहाँ आया था...यह बच्ची एकदम खुश्बू की तरह क्यों लगती है?”
यह सोचते हुए सलीम ने एक बार फिर
घुघ्घुर रानी बनी बच्ची की तरफ़ देखा. घुघ्घुर रानी अब दरवाजों को तोड़ने की कोशिश
कर रही थी-
“यह दरवाजा तोड़ेंगे”
अभी दरवाजे बने बच्चे घुघ्घुर
रानी का जवाब भी नहीं देने पाए थे कि सामने वाले मकान का दरवाजा खुला. एक
चौबीस-पच्चीस साल की लड़की तेज़ी से बच्चों की ओर बढ़ी, घुघ्घुर रानी को पकड़ कर अपनी
ओर खींचा और उसे लगभग झंझोड़ते हुए बोली-
“कितनी बार मना किया है कि यह
वाहियात खेल मत खेला कर. तू अभी बहुत छोटी है. अभी नहीं समझ पायगी लेकिन मैं चाहती
हूँ कि तू अभी से समझ ले. हमारी ज़िंदगी में कभी कोई राजकुमार नहीं आता, समझी? हम
घुघ्घुर रानियों को तो जेल में ही रहना है और जेल में ही मरना है. राजकुमार तो जब
मन करता है, बम्बई भाग जाते हैं.”
यह कहते हुए उसने एक बार खिड़की से
बाहर देख रहे सलीम की ओर देखा, बच्ची को गोद में उठाया और तेज़ी से सामने वाले दरवाजे
के अंदर चली गयी और थोड़ी देर के लिए खुला हुआ दरवाजा फिर से बंद हो गया. सलीम उस
बंद दरवाजे की ओर अपलक देखता रह गया. उसके मुँह से सिर्फ़ इतना निकल सका-
“घुघ्घुर रानी...!”
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नाम: सईद अय्यूब
जन्म: १ जनवरी, १९७८. कुशीनगर (उत्तर-प्रदेश)
उच्च क्षिक्षा: जवाहरलाल नेहरु
विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से
कई संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य,
हिंदी-उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार व पठन-पाठन हेतु कई अमेरिकी व यूरोपिय
विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर कार्य
विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित,
आकाशवाणी, दूरदर्शन व अन्य टी.वी. चैनलों पर कविता पाठ
कई नाटकों में सफल अभिनय.
संप्रति: स्वतंत्र लेखन व कई अंतर्राष्ट्रीय
विश्वविद्यालयों व संस्थाओं के लिए हिंदी-उर्दू विशेषज्ञ के रूप में कार्य, विभिन्न
साहित्यिक आयोजनों से जुड़े हुए. ‘खुले में रचना’ कार्यक्रम के आयोजक, संयोजक.
ई-पता: sayeedayub@gmail.com
मोबाइल: +91 96501-55708