Sunday, October 21, 2012

प्रियंका राठौर - दो कवितायेँ


प्रियंका आज कल अपने एक काव्य संग्रह और कहानी संग्रह पर काम कर रही हैं , युवा कवियत्री कहती हैं "समय काव्य संग्रह और एक कहानी संग्रह चलायेमान है. जिसके साथ मै भी बढ़ रही हूँ. चाहती हूँ भविष्य के गर्भ में छिपे अनंत तक पहुचने के लिए मेरे भी पद छाप धरा पर अंकित हो जाएँ. उसके लिए प्रयासरत हूँ; कोशिश है नारी मन के अथाह सागर को दुनिया के सामने दिखा सकूँ. ऐसी नारी जो समाज में गलत के खिलाफ सर उठा कर खड़ी है लेकिन आदर्शों और परम्पराओं के हथियारों को थामें संघर्ष का नर्तन कर रही है. जिसे धर्म युद्ध कहा जाये तो अतिशयोक्ति ना होगा.

 | शब्द                                       

बदला जीवन
बदला दर्शन
पर नहीं बदला
खेल शब्दों का -


खुद में उलझते
खुद ही सुलझते
बन जाते
अभिव्यक्ति - शब्द .
कभी यूहीं
भावों के भवंर में
बन जाते
मौन की वाणी - शब्द .
नश्वर जीवन
क्षणभंगुर जीवन
पर कालजयी
बना जाते - शब्द .
माया हैं - पर हैं
अनमोल मोती - शब्द .
बदला जीवन
बदला दर्शन
पर नहीं बदला
खेल शब्दों का.........

 | तुम                                         


हरी दूब के

अंतिम छोर पर
एक छोटी सी
ओस की बूँद ....
या फिर कहूँ ,


बहते जल में

अचानक ही
पानी का बुलबुला
बन जाना ....
या फिर
स्म्रतियों के भंवर में
किसी मीठे पल की
झ ल क से
होठों पर मुस्कान
तैर जाना ....
या फिर कहूँ ,
म्रत्यु के द्वार से
यमराज का बापस
लौट जाना ....
या फिर
अनकहे अनसुने
या जान कर भी
ना जान पाए ,
क्षणों में लिपटे ...
शब्दहीन शब्द जैसे
अर्थहीन अर्थ जैसे
खोजहीन खोज जैसे
धरा के विपरीत
बहाव से 'तुम'
सब अप्रत्याक्षित
ही तो है ....
क्या कहूँ तुम्हे ,
क्षणिक अहसास
या
क्षणिक जीवन आधार 


(ऊपर चित्र साभार गूगल से लिये गये हैं यदि कोई चित्र, कलाचित्र इत्यादि किसी सर्वाधिकार का उलंघन हो तो कृपया सूचित करें उसे हटा दिया जायेगा )

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