बिजूका
देह
और मन की सीमाओं में
नहीं
बंधी होती है गरीब की बेटी....
अपने
मन की बारहखड़ी पढ़ना उसे आता ही नहीं
और
देह उसकी खरीदी जा सकती है
टिकुली
,लाली ,बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के
बदले भी ....
गरीब
की बेटी नहीं पायी जाती
किसी
कविता या कहानी में
जब
आप उसे खोज रहें होंगे
किताबों
के पन्नों में ........
वह
खड़ी होगी धान के खेत में,टखने भर पानी के बीच
गोबर
में सनी बना रही होगी उपले
या
किसी अधेड़ मनचले की अश्लील फब्तियों पर ...
सरेआम
उसके श्राद्ध का भात खाने की मुक्त उद्घोषणा करती
खिलखिलाती, अपनी बकरियाँ ले गुजर चुकी होगी
वहाँ से .....
आप
चाहें तो बुला सकते हैं उसे चोर या बेहया
कि
दिनदहाड़े , ठीक आपकी नाक के नीचे से
उखाड़
ले जाती है आलू या शक्करकंद आपके खेत के
कब
बांध लिए उसने गेहूं की बोरी में से चार मुट्ठी अपने आँचल में
देख
ही नहीं सकी आपकी राजमहिषी भी .....
आपकी
नजरों में वह हो सकती है दुश्चरित्र भी
कि
उसे खूब आता है मालिक के बेटे की नज़रें पढ़ना भी
बीती
रात मिली थी उसकी टूटी चूड़ियाँ गन्ने के खेत में ....
यह
बात दीगर है कि ऊँची – ऊँची दीवारों से टकराकर
दम
तोड़ देती है आवाज़ें आपके घर की
और
बचा सके गरीब की बेटी को
नहीं
होती ऐसी कोई चारदिवारी ......
गरीब
की बेटी नहीं बन पाती
कभी
एक अच्छी माँ
कि
उसका बच्चा कभी दम तोड़ता है गिरकर गड्ढे में
कभी
सड़क पर पड़ा मिलता है लहूलूहान....
ह्रदयहीन
इतनी कि भेज सकती है
अपनी
नन्ही सी जान को
किसी
भी कारखाने या होटल में
चौबीस
घंटे की दिहारी पर .......
अच्छी
पत्नी भी नहीं होती गरीब की बेटी
कि
नहीं दबी होती मंगलसूत्र के बोझ से....
शुक्र
बाज़ार में दस रुपए में
मिल
जाता है उसका मंगलसूत्र
उसके
बक्से में पड़ी अन्य सभी मालाओं की तरह ....
आप
सिखा सकते हैं उसे मायने
बड़े-बड़े
शब्दों के …
जिनकी
आड़ में चलते हैं आपके खेल सारे
लेकिन
नहीं सीखेगी वह
कि
उसके शब्दकोश में एक ही पन्ना है
जिस
पर लिखा है एक ही शब्द
भूख
........
.और
जिसका मतलब आप नहीं जानते ....
गरीब
की बेटी नहीं जीती
बचपन
और जवानी
वह
जीती है तो सिर्फ बुढ़ापा
जन्म
लेती है , बूढ़ी होती है और मर जाती है
इंसान
बनने की बात ही कहाँ ..... !
वह
नहीं बन पाती एक पूरी औरत भी ....
दरअसल
, वह तो आपके खेत में खड़ी एक बिजूका
है
जो
आजतक यह समझ ही नहीं पायी
शुक्रिया शोभा दी ....
ReplyDeleteSundar......ati-sundar
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