वंदना शर्मा:-
अपने बयान की तीव्रता.अनुभूति की गहराई भाषा की प्रखरता ,शिल्प और अपने तेवर के साथ वंदना शर्मा की कवितायें हाल के स्त्री-लेखन की प्रमुख उपलब्धि है। उनका लेखन लेखन कम आह्वान ज्यादा है जिसमें स्थापित मूल्यों , स्थापनाओं के विरुद्ध प्रतीकार अधिक है । उनकी कवितायें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं।
मेरठ विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापिका , कवयित्री वंदना शर्मा जी ने 'मशाल' कार्यक्रम मेंअपने प्रभावशाली वक्तव्य में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए महिलाओं को स्वयं आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया. आस-पास मौजूद लोग ऐसे अपराधों के खिलाफ अपने स्तर तुरंत कार्यवाही करें तो निश्चित रूप से दोषियों के मन में भय पैदा होगा जैसे सार्थक सुझाव के साथ वंदना जी ने अपनी कविता 'बलात्कार' का पाठ भी किया |
बलात्कार
___________
यहाँ गढ़ी हुई है नसीबन की ढाई साला बदनसीब मादा लाश
यहाँ झाड़ियों में क्षत विक्षत शोध छात्रा सुब्बालक्ष्मी
ट्रेन से धकियाई,फटे कपड़ों, टूटे पैरों वाली यह है मरियम
और वह बेनाम पगली बढे पेट वाली पड़ी है
घोषित हो चुकीं हैं छूत के रोग सी
गर्म तवे पर जल की बूँद सी ये औरते ....
उलटे हो चुके हैं,सधे सीधे पाँव
इनकी बात करना शर्म की है बात
मुँह छुपातें हैं शब्द
घुटनों तक उतर आते हैं चेहरे
खा जाती हैं इनकी शिनाख्तें
नदी नाले नहरें ......
इन पर यूँ खुलेआम नही बोला जाता
इनके जिक्र अहिल्या हो जातें हैं
इनके लिए कोई राम नही आता
बच्चों की किताबों और भगवान् जी के आलों से दूर
रख दिए जाते हैं वे अखबार जिनमे इनकी ख़बरें हों ...
चोर द्रष्टि से पलटने पड़ते हैं पन्ने, बदलने पड़ते हैं चैनल
छोटी या बड़ी जैसी भी हों इनके खत्म हो जाने के लिए औरत होना काफी था
और खत्म कर डालने के लिए बहुत, पंजों का मर्दाना होना .....
जिनकी लाशों से आँखें भी आँख चुरातीं हों
उनके जाने से कहीं कुछ भी तो नही बदला...
वे कभी थीं ही नही इस कोशिश में निषेध हो गये उनके नाम
रिक्त स्थान पाट दिए गये तुरत फुरत
जैसे ढांप दीं जातीं हैं लाइलाज बीमारियाँ
जैसे छुपाई जातीं हैं फटीं उधड़ी सीवनें
जैसे फाड़ दिए जातें गलत नाम वाले चैक...
यातनाशिविरों के आस पास से गुजरते रहे राजमहिषियों और राजपुत्रों के लश्कर
भौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..
और उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र
बहुत बुरी बातों की तरह याद रह जाएँ शायद इन औरतों की हत्याएं
उधार की आग से नही सुलगीं गीली लकडियाँ
धू धू कर जलतीं रहीं निष्पाप पुआलें !!!!
यहाँ झाड़ियों में क्षत विक्षत शोध छात्रा सुब्बालक्ष्मी
ट्रेन से धकियाई,फटे कपड़ों, टूटे पैरों वाली यह है मरियम
और वह बेनाम पगली बढे पेट वाली पड़ी है
घोषित हो चुकीं हैं छूत के रोग सी
गर्म तवे पर जल की बूँद सी ये औरते ....
उलटे हो चुके हैं,सधे सीधे पाँव
इनकी बात करना शर्म की है बात
मुँह छुपातें हैं शब्द
घुटनों तक उतर आते हैं चेहरे
खा जाती हैं इनकी शिनाख्तें
नदी नाले नहरें ......
इन पर यूँ खुलेआम नही बोला जाता
इनके जिक्र अहिल्या हो जातें हैं
इनके लिए कोई राम नही आता
बच्चों की किताबों और भगवान् जी के आलों से दूर
रख दिए जाते हैं वे अखबार जिनमे इनकी ख़बरें हों ...
चोर द्रष्टि से पलटने पड़ते हैं पन्ने, बदलने पड़ते हैं चैनल
छोटी या बड़ी जैसी भी हों इनके खत्म हो जाने के लिए औरत होना काफी था
और खत्म कर डालने के लिए बहुत, पंजों का मर्दाना होना .....
जिनकी लाशों से आँखें भी आँख चुरातीं हों
उनके जाने से कहीं कुछ भी तो नही बदला...
वे कभी थीं ही नही इस कोशिश में निषेध हो गये उनके नाम
रिक्त स्थान पाट दिए गये तुरत फुरत
जैसे ढांप दीं जातीं हैं लाइलाज बीमारियाँ
जैसे छुपाई जातीं हैं फटीं उधड़ी सीवनें
जैसे फाड़ दिए जातें गलत नाम वाले चैक...
यातनाशिविरों के आस पास से गुजरते रहे राजमहिषियों और राजपुत्रों के लश्कर
भौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..
और उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र
बहुत बुरी बातों की तरह याद रह जाएँ शायद इन औरतों की हत्याएं
उधार की आग से नही सुलगीं गीली लकडियाँ
धू धू कर जलतीं रहीं निष्पाप पुआलें !!!!
vandana aur shobha ko badhai! mashaal ki trah jalati kavita.. lau jalti rahe..alakh jagane walon ko shubhkamnaen ..
ReplyDeleteआदरणीय वंदना दी ,के मुख से सुनी ये कविता आज पढ़ते हुए उन्ही की आवाज़ ,अंदाज़ कानो में गूँज रहे थे ...नमन आपकी लेखनी को ....हर शब्द ने स्त्री दर्द को पिरोया है...
ReplyDeleteसादर
Hats off to vandna ji,shobhaji n fargudiya.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबढ़िया कविता है. मशाल की मानिंद. मुबारक.
ReplyDeleteमैं वंदना शर्मा की कविताओं का प्रशंसक हूँ . कुछ अन्य लेखिकाएं भी मुझे पसंद है लेकिन यहाँ चूँकि वंदना की कविता दी गयी है इसलिए सिर्फ उनकी ही बात करूँगा.वंदना की पद संगठना गज़ब की है और वही उनकी कविता को बल देती है. विचार सबको आते हैं लेकिन सटीक अभिव्यक्ति के लिए भाषा ज्ञान ज़रूरी है क्योंकि उसीसे कथ्य के लिए उपयुक्त शैली और रीति की प्राप्ति होती है और उसीसे कविता अपना स्वरूप पाती है , प्रभाव छोडने में समर्थ होती है. वह कविता चाहे प्रस्तुत कविता हो या " सत्तासीन स्त्रियाँ " हो या कोई अन्य सभी में एक गठन , एक चोट करने की क्षमता और विसंगतियों के प्रति एक आक्रोश नज़र आता है. अभी वंदना में और निखार आना है और मैं उसके इंतज़ार में हूँ.
ReplyDeletebahut marmsprshi abhivykti hai ....
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteभाषा में आक्रामक तेवर इनकी कविताओं की पहचान है.... ये कवितायें मन मांझने के लिए नहीं हैं, सामयिकता से मुठभेड़ करती स्थापित-सत्य और वस्तुस्थिति से दो-दो हाथ करने वाली हैं,
ReplyDeleteएक आक्रोशित आवाज ........
ReplyDeleteवंदना जी के तेवर व उसकी ईमानदार अभिव्यक्ति का मुरीद रहा हूँ ..उसी श्रंखला में यह एक और कड़ी है..यह प्रतिभाशाली रचनाकार कभी निराश नहीं करती ..बधाइयां व शुभकामनाये
ReplyDeleteवंदना शर्मा जी की कविताऔं की शैली अद्भुत है भाषा और शब्दों का अनोखा मेल, शब्दों से खेलना कोई इनसे सीखे..जरा देखिए,
ReplyDeleteभौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..समाज की समस्याओं पर गहन संवेदशील दृष्टि और बदलाव के लिए ललकारती हुई कविताएं..
इस कविता में क्या नहीं है, मार्मिक, आक्रोश के साथ-साथ उन लोगों के ऊपर बहुत ही तीखा वंयग्य है जो महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार के प्रति विरोध प्रकट करने के नाम पर मनोरंजनपूर्ण आयोजन और लगे हाथ अपना महिमामंडन करते रहते हैं... उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र....
वंदनी जी से कविता के क्षेत्र में उम्मीद की एक किरण हैं..
वंदना शर्मा जी की कविताऔं की शैली अद्भुत है भाषा और शब्दों का अनोखा मेल, शब्दों से खेलना कोई इनसे सीखे..जरा देखिए,
ReplyDeleteभौंकते रहे डॉग स्क्वायड मादा रक्त की ताज़ा गंध पर
लाल नीली बत्तियों के पहियों तले दम तोडती रहीं संवेदनाएं
हाँफती रहीं तेज़ रफ़्तार तृष्णा और कुंठाएँ..समाज की समस्याओं पर गहन संवेदशील दृष्टि और बदलाव के लिए ललकारती हुई कविताएं..
इस कविता में क्या नहीं है, मार्मिक, आक्रोश के साथ-साथ उन लोगों के ऊपर बहुत ही तीखा वंयग्य है जो महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार के प्रति विरोध प्रकट करने के नाम पर मनोरंजनपूर्ण आयोजन और लगे हाथ अपना महिमामंडन करते रहते हैं... उधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
रंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र....
वंदनी जी से कविता के क्षेत्र में उम्मीद की एक किरण हैं..
सलाम ! जज़्बे को ...
ReplyDeleteउधर भरे पेट ऊँघती सभाओं में अलसाते रहे क्रान्ति और कानून के पर्चे
ReplyDeleteरंगीन कांचों में ढलते रहे मगरमच्छी आंसू ....
इंग्लिश गानों पर थिरकती रहीं सोनाबाथ जंघाएँ
पूरी गरिमा से करते रहे शिकारी रंगीन लटों के विमोचन
कागज भिगोती रहीं,वाटरप्रूफ मेकअप अंजीं महत्वाकांक्षाएं
सियारों के अपाहिज समूह, बराबर लाँघते रहे यश के समुद्र
बहुत बुरी बातों की तरह याद रह जाएँ शायद इन औरतों की हत्याएं
उधार की आग से नही सुलगीं गीली लकडियाँ
धू धू कर जलतीं रहीं निष्पाप पुआलें !!!!.meri aankhe to nam ho gayi hai ...behtrin