Tuesday, June 26, 2012

"एक शाम - फर्गुदिया के नाम" कार्यक्रम में मेरी (शोभा मिश्रा) कविता

शोभा मिश्रा _______________  "मौन हुई पवित्रता " __________________ वो खुद एक गुड़िया सी अपनी गुड़िया सजाती हुई बहुत खुश होती थी कंघी,रिब्बन,लाली,बिंदी सभी कुछ था उसके पास अपनी गुड़िया को सजाने के लिए रंगीन कपड़ों में सजी अपनी गुड़िया...

Sunday, June 24, 2012

"एक शाम -फर्गुदिया के नाम " कार्यक्रम की रिपोर्ट दिल्ली और महाराष्ट्र से प्रसारित समाचार पत्रों में

http://karolbaghnews.com/uploadedfiles/23.p...

Tuesday, June 19, 2012

डॉ सविता सिंह जी के विचार

Savita Singh May 27 Went to a poetry reading event organised by friends of Fargudiya, a fourteen year old girl, who sadly died after being raped. Her childhood sakhi, Shobha Mishra, could not forget her pain and her subsequent realization...

Monday, June 18, 2012

"एक शाम - फ़रगुदिया के नाम " कार्यक्रम में डॉ सविता सिंह जी द्वारा प्रस्तुत कविताएं

डॉ सविता सिंह  ----------------------- १- आघात  _______ इस पहर एक आवाज़ आती है अपनी ही साँस चलने की इस पहर मेरे ही प्राणों के स्पंदन से चलती है यह सृष्टि इस पहर चीज़ों के यूँ होने का मैं ही हूँ सुखद उदगम इस पहर एक चिड़िया...

Thursday, June 07, 2012

"फर्गुदिया के नाम- एक शाम " कार्यक्रम में स्नेह सुधा नवल जी द्वारा सुनाई गयी तीन कविताएँ

1 - सीमा जितना तप यशोधरा के व्यक्तित्व में हैं शायद ही किसी बुद्ध में हो जितना संघर्ष इस मुट्ठी भर हृदय में हैं शायद ही किसी विश्व युद्ध में हो | 2 - गौतम अच्छा हुआ गौतम ! की तुम इस युग में नहीं हुए अगर होते तो __ मेरे साथ अस्पताल...

Sunday, June 03, 2012

सुमन केसरी जी की दो कवितायें

1-मोनालिसा------------------- क्या था उस दृष्टि में उस मुस्कान में कि मन बंध कर रह गया वह जो बूंद छिपी थी आंख की कोर में उसी में तिर कर जा पहुंची थी मन की अतल गहराइयों में जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी प्रलोभन से पीड़ा से ईर्ष्या से द्वन्द्व...

"फर्गुदिया के नाम - एक शाम " कार्यक्रम में विपिन चौधरी द्वारा सुनाई गयी दो कविताएँ

१ . पीड़ा का फलसफा  दर्द को मुठ्ठी में कैद कर उसके फलसफे का पाठ फिर चार- पांच दिन अपने हाल पर जीना अपने तरीके से जूझना अभ्यास  करना सहजता से चाक-चौबंद रहने के लिए और  सजगता भी ऐसी जो धूनी की तरह सिर से पाँव तक अपना पसारा जमा ले पीड़ा...

Saturday, June 02, 2012

स्वाति ठाकुर की कविताएँ

1-लड़ना, जरूरी हो चला है अब, एक अर्थ में अनिवार्य लड़ना, अपने होने को पाने के लिए, अपनी जिंदगी जी पाने के लिए! लड़ना, सच को साबित करने के लिए, अँधेरी राहों में ग़ुम न होने के लिए! लड़ना, अपने लिए रस्ते तैयार करने के लिए सपनों को जिंदा...

Friday, June 01, 2012

मै यूँ ही प्रवाहित हो गई जल में - निरुपमा सिंह

............ निरुपमा सिंह .......कवित्री , लेखिका विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित  मैं फरगुदिया भ्रूण बन रोप दी गई अनचाही धरा में निरीह (बाप )और गरीब (माँ )द्वारा .. नियति अपने अंश को आकार देता जीवन बन चुका...

वीडियो

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"एक शाम - फर्गुदिया के नाम " कार्यक्रम में डॉ सोनरूपा द्वारा प्रस्तुत कविता

तुमने ले ही लिया था जन्म कि तुम्हे लेना था लोरियाँ ,थपकियाँ नहीं थीं तुम्हरे लिए मगर तुम थी तो छोटी सी बच्ची ही ना सो ही जाती थीं पैरों ,हाथों ,को पेट से लगा के बढ़ने लगी थीं तुम कि तुम्हे बढ़ना ही था रोटियां बस खाने को...

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