Tuesday, June 26, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित3 comments
शोभा मिश्रा _______________
"मौन हुई पवित्रता " __________________
वो खुद एक गुड़िया सी
अपनी गुड़िया सजाती हुई
बहुत खुश होती थी
कंघी,रिब्बन,लाली,बिंदी
सभी कुछ था उसके पास
अपनी गुड़िया को सजाने के लिए
रंगीन कपड़ों में सजी
अपनी गुड़िया...
Tuesday, June 19, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
Savita Singh
May 27
Went to a poetry reading event organised by friends of Fargudiya, a fourteen year old girl, who sadly died after being raped. Her childhood sakhi, Shobha Mishra, could not forget her pain and her subsequent realization...
Monday, June 18, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
डॉ सविता सिंह
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१- आघात
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इस पहर एक आवाज़ आती है
अपनी ही साँस चलने की
इस पहर मेरे ही प्राणों के स्पंदन से
चलती है यह सृष्टि
इस पहर चीज़ों के यूँ होने का
मैं ही हूँ सुखद उदगम
इस पहर एक चिड़िया...
Thursday, June 07, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
1 - सीमा
जितना तप यशोधरा के
व्यक्तित्व में हैं
शायद ही किसी
बुद्ध में हो
जितना संघर्ष
इस मुट्ठी भर हृदय में हैं
शायद ही किसी
विश्व युद्ध में हो |
2 - गौतम
अच्छा हुआ गौतम !
की तुम
इस युग में
नहीं हुए
अगर होते
तो __
मेरे साथ
अस्पताल...
Sunday, June 03, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित3 comments
1-मोनालिसा-------------------
क्या था उस दृष्टि में
उस मुस्कान में कि मन बंध कर रह गया
वह जो बूंद छिपी थी
आंख की कोर में
उसी में तिर कर
जा पहुंची थी
मन की अतल गहराइयों में
जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी
प्रलोभन से
पीड़ा से
ईर्ष्या से
द्वन्द्व...
Sunday, June 03, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
१ . पीड़ा का फलसफा
दर्द को मुठ्ठी में कैद कर उसके फलसफे का पाठ
फिर चार- पांच दिन अपने हाल पर जीना
अपने तरीके से जूझना
अभ्यास करना
सहजता से चाक-चौबंद रहने के लिए
और सजगता भी ऐसी जो
धूनी की तरह सिर से पाँव तक अपना पसारा जमा ले
पीड़ा...
Saturday, June 02, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित1 comment
1-लड़ना,
जरूरी हो चला है अब,
एक अर्थ में अनिवार्य
लड़ना,
अपने होने को पाने के लिए,
अपनी जिंदगी जी पाने के लिए!
लड़ना,
सच को साबित करने के लिए,
अँधेरी राहों में ग़ुम न होने के लिए!
लड़ना,
अपने लिए रस्ते तैयार करने के लिए
सपनों को जिंदा...
Friday, June 01, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशित2 comments
............ निरुपमा सिंह .......कवित्री , लेखिका विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
मैं फरगुदिया
भ्रूण बन रोप दी गई अनचाही धरा में
निरीह (बाप )और गरीब (माँ )द्वारा ..
नियति अपने अंश को आकार देता
जीवन बन चुका...
Friday, June 01, 2012 को shobha mishra द्वारा प्रकाशितNo comments
तुमने ले ही लिया था
जन्म
कि तुम्हे लेना था
लोरियाँ ,थपकियाँ नहीं थीं तुम्हरे लिए
मगर तुम थी तो छोटी सी बच्ची ही ना
सो ही जाती थीं पैरों ,हाथों ,को पेट से लगा के
बढ़ने लगी थीं तुम
कि तुम्हे बढ़ना ही था
रोटियां बस खाने को...