अनुलता राज नायर
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1-सर्दी
पश्मीना शाल लपेटे
कार में
काँच बंद
हीटर ऑन किये
ठिठुर रही थी मैं
उस सर्द और सूनी रात...
नज़र पड़ी फुटपाथ पर,
एक नन्ही सी बच्ची
चंद चीथड़ों में लिपटी
अपनी माँ के सीने से लगी
सो रही थी सुकून से...
ज़ेहन में ख़याल आया
जाने कैसे उन्हें नींद आती होगी ??
सर्दी नहीं सताती होगी ??
शायद नहीं सताती.
उनके पास
एक दूसरे के
प्यार की गरमाहट जो है....
मेरी सर्द उंगलियां
कस गयीं स्टीयरिंग व्हील पर
आँखों पर धुंध सी छा गयी.
रात ठिठुरते,करवटें बदलते गुज़री...
2-उस रोज़
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एक कांच का ख्वाब
पत्थर दिल से टकराकर
हुआ लहुलुहान
कतरा कतरा...
उस रोज़-
एक फूल सी उम्मीद
डाल से टूटी
बिखर गयी
पंखुरी पंखुरी...
उस रोज़-
एक नर्म सी ख्वाहिश
किसी सख्त बिस्तर की
सलवटों पर थी
दम तोड़ती ....
उस रोज़-
एक महका सा एहसास
पनाह की खोज में
भटकता रहा
सड़ता रहा.....
ऐ लड़की ! वो ख्वाब, वो उम्मीद, वो ख्वाहिश,वो एहसास
कहीं तू ही तो नहीं???
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3--शिकायत परिंदों से.....
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प्रेम बिखर गया है
सारे आकाश में..
देखो सिंदूरी हो गयी है शाम
तेरी यादों ने फिर दस्तक दी है
हर शाम का सिलसिला है ये अब तो....
कमल ने समेट लिया
पागल भौरे को अपने आगोश में
आँगन में फूलता नीबू
अपने फूलों की महक से पागल किये दे रहा है
उफ़ ! बिलकुल तुम्हारे कोलोन जैसी खुशबू....
पंछी शोर मचाते लौट रहे हैं
अपने घोसलों की ओर.
उनका हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
मुझे उदास कर देता है.
देखो बुरा न मानना....
मुझे शिकायत तुमसे नहीं
इन परिंदों से है...
ये हर शाम
अनजाने ही सही
तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....
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5-मुराद
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रख दिये थे उसने
दो तारे मेरी हथेली पर
और कस ली थी मैंने
अपनी मुट्ठियाँ....
भींच रखे थे तारे
तब भी ,जब न वो पास था न प्रेम....
जुदाई के बरसों बरस
उसकी निशानी मान कर.
तब कहाँ जानती थी
कि मुरादों के पूरा होने की दुआ
हथेलियाँ खोल कर
टूटते तारों से मांगनी होगी...
मगर
उस आखरी निशानी की कुर्बानी
मुझे मंज़ूर नहीं थी,
किसी कीमत पर नहीं.....
मेरी लहुलुहान हथेलियों ने
अब भी समेट रखे हैं
वो दो नुकीले तारे...
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6-चिड़िया
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मैं एक चिड़िया थी........
चिडे ने
मांगे पंख,
प्रेम के एवज में.
और
पकड़ा दिया प्यार
चिड़िया की चोंच में !
चिड़िया चहचहाना चाहती थी
उड़ना चाहती थी...
मगर मजबूर थी,
मौन रहना उसकी मजबूरी थी
या शर्त थी चिडे की,
पता नहीं....
नींद टूटी,
ख्वाब टूटा,
सुबह हुई......
मैं एक चिड़िया हूँ
सुबह भी
अब भी....
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7-
दुआ
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वो उदास आँखों वाली लड़की
सुर्ख फूल
सब्ज़ पत्ते
नर्म हवा
रुकी रुकी बारिश
और मिट्टी की सौंधी महक को चाहने वाली,
माहताब से बदन वाली
वो लड़की...
उदास रहती थी
पतझड़ में.
उसे सूखी ज़मीन और नीला आसमान ज़रा नहीं भाते
उसकी आँखों को चूमे बिना ही
चखा है मैंने
कोरों पर जमे नमक को...
एक रात नींद में वो मुस्कुराई
और बादल उसके इश्क में दीवाना हो गया....
यकीन मानों
खिली धूप में
बेमौसम बारिश
यूँ ही ,बेमकसद नहीं हुआ करती....
(न कोई अनमेल ब्याह,न अपवर्तन के नियम....)
नीले आसमान पर
लडकी के लिए मैंने लिखी जो दुआ
वही तो है ये इन्द्रधनुष...
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अनुलता नायर ब्लॉग "माय ड्रीम्स एंड एक्सप्रेशंस" http://allexpression.blogspot.
शुक्रिया शोभा <3
ReplyDeleteफरगुर्दिया में हमारी रचनाओं को स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया !!!
अनु
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteकोमल और स्नेहासिक्त भावों को बडे खूबसूरत शब्दों में बाँधा है अनु जी ने । उनकी प्रेम कविताओं में एक ताजगी है । बेचैनी है और हृदय की गहराई भी ...।
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