Saturday, November 30, 2013

"तेरे नाम के पीले फूल"- नीलम मेंदीरत्ता के काव्य संग्रह की वंदना गुप्ता द्वारा समीक्षा

रुदाली---------------इस आलीशान महल के भीतर, इस काल कोठरी में जाने की इज़ाज़त, तो मै कभी खुद को भी नहीं देती, तो तुम्हें कैसे दे दूँ ?? बस साँझ ढले कोठरी की दहलीज़ पर, यादों का दिया जला देती हूँ, रात भर कोठरी की एक एक ईट, का मौन टूटता है, और दबे स्वर...

Friday, November 22, 2013

सूखी पत्तियों का दर्द - यशवंत यश

यशवंत   यश ------------- "मैं यशवन्त यश संप्रति संघर्षरत एवं लिखने में रुचि रखता हूँ। जहाँ तक लिखने की बात है मैं 6 वर्ष की उम्र से लिख रहा हूँ.सब से पहली रचना कुछ बेतुकी 4-5 लाइनें थीं जो 28 अप्रैल 1990 को आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक...

Thursday, November 21, 2013

"हम कभी बीतते नही हैं !" सुदर्शन प्रियदर्शिनी

"घर यूं तो एक छोटी सी स्पेस दिखाई देती है और घरेलू काम एक ऐसी जिम्मेदारी जिसका अहसानमंद घर का कोई सदस्य नहीं होता । अक्सर घर की चहारदीवारी के भीतर पलने पनपने वाले तनाव, घर के सभी सदस्यों की ज़रूरतों को समय पर पूरा करने का दायित्व-बोध एक कामकाजी महिला...

Friday, November 15, 2013

शेष अवाक है ! -रश्मि प्रभा

रश्मि प्रभा  शीर्षक से परे खुद सी लगती है वह खामोश लड़की,  जो किसी रचनाकार की रेखाओं में होती है  -  बाह्य बोलता प्रतीत होता है, अंतर की ख़ामोशी का अनुमान सम्भव नहीं - अनुमानित श्रृंखला से बहुत दूर...

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