सरोज सिंह
निवास : जयपुर
नैनीताल से भूगोल विषय स्नातकोत्तर एवं बी एड
बास्केटबाल उत्तर प्रदेश राज्य स्तर पर सहभागिता
विवाहोपरांत कुछ वर्षों तक सामाजिक विज्ञानं की शिक्षिका रहीं.
सी आई एस ऍफ़ " के परिवार कल्याण केंद्र की संचालिका के तौर पर कार्यरत
"स्त्री होकर सवाल करती है" (बोधि प्रकाशन) ,युग गरिमा और कल्याणमयी पत्रिका और विभिन्न ई पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित हैं
"बदलते मौसम का मिजाज़ हो, या गींव की मीठी याद, संघर्ष करती स्त्री के
प्रति संवेदना,व्यंग, उलाहना .... हर रंग के भाव लिए सरोज जी की रचनाओं को
पढ़ना एक अलग तरह के सुखद अनुभव से गुजरना है ... प्रस्तुत है सरोज जी की
कुछ रचनाएँ 'फरगुदिया' पर ... "
1-
वो पीपल की छाँव
वो पीपल की छाँव,
वो गंगा की नाँव
वो बरगद की ठांव
है वही मेरा गाँव,
वो आँगन की खटिया
वो जूट की मचिया ,
वो राब की हंडिया
वो स्लेट की खड़िया,
वो सावन की “कजरी”
वो बलिया की “ददरी “
चईता,बिरहा” की नगरी ,
बगईचा की साँझ दुपहरी,
वो चूल्हे का धुआं
वो पास का कुआं
चाचा का अखाडा
वो गिनती वो पहाडा
वो भूंजा भुनाने
वो आजी के उल्हाने
बडकी भौजी के ताने
वो मझली का गाने
वो छट का ठेकुआ
वो फाग का फगुआ
वो लाई का तिलवा
वो आटे का हलुआ
वो परसाद की मिसरी
बसरोपन की टिकरी
वो मटर की घुघरी ,
वो सकरात की खिचड़ी
वो लिट्टी और चोखा
वो बेसन का “धोखा ‘
क्या था स्वाद अनोखा
खेल वो “ओका बोका”
जब याद आता है मन भर आता है
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2-
(भोजपुरी गीत )
माघ के सवनवा
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सखी,माघ महिनवा अमवा मउराला
देख त कईसन सवनवा बउराईल
अब हम फगुआ के फाग सुनाईं
के असो बईठ के कजरी गाईं
मारsता करेजवा में जोर हो रामा, माघ के सवनवा !
सखी,माघ महिनवा सरसों पियराला
अब हम आपन खेत सरियाईं
के सरसों के भिजल फर फरीयाईं
भीजsता अचरवा के कोर हो रामा, माघ के सवनवा !
सखी, माघ महिनवा के घाम सोहाला
देख त कईसन झटास भर आईल
कैसे सुरुज के हम जलवा चढाई
कैसे फूलगेंदवा के झरला से बचाईं
देहिया सिहराला पोरे पोर हो रामा, माघ के सवनवा !
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3-
"हम ता मछरिया जल कय" (भोजपुरी)
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लोराईल अंखिया
केहू न देखे
हम त मछरिया जल कय ...!
जिया छपुटाला
पंवरत जाला
हम त मछरिया जल कय ...!
भईया जनमले थरिया बाजल
हम जनमली बिपत जागल
हम त मछरिया जल कय
पनीये जन्मली
पनीये मरब
हम त मछरिया जल कय ...!
मैं तो हूँ मछली जल की "(हिंदी)
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मेरे आंसू कोई न देखे
मैं तो हूँ मछली जल की !
जिया छटपटाता
तैरता जाता
मैं तो हूँ मछली जल की !
भईया जन्मे थाली बजी
हम जन्मे विपत जगी
मैं तो हूँ मछली जल की !
जल में जनमना
जल में ही मरना
मैं तो हूँ मछली जल की !
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4-
कमाऊ बेटे से ….
माँ की फटी एडियाँ,रुखी दरारें
शायद देखी ना गयीं होंगी
सो ले आया उसके लिए
एक जोड़ी गुलाबी चप्पल
पर जिसने ता-जिंदगी नंगे पाँव
बोझा ढोते काट दी हो!
अपना सुख- श्रृंगार
अपने परिवार में बाँट दी हो
भला वो चप्पल उसका दुःख
कैसे बाँट सकता है!
वो तो बस उसके पैरों को
काट सकता है !
फिर भी बेटे के तसल्ली को
वो,रोज घर से निकलती है
चप्पल पहन कर !
कुछ दूर चल कर चप्पलों को
धर लेती है सर पर !
वो चप्पल उसके बोझ में
इक इजाफा सा है !
पर बेटे की ख़ुशी के आगे
वो बिलकुल जरा सा है !!
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5-
हम समझे थे के,वो “रब” के हैं
धत्त! वो तो बस,मज़हब के हैं !
तोड़े से भी नहीं टूटती वो दीवार
बीच हमारे खड़ी,जाने कब से है !
देखें है हमने कई कद्दावर ऐसे
जो बौने नियत के,गज़ब के हैं !
सदनों में कूदते हैं ,कुर्सियों पर
फ़नकार सभी बड़े क़रतब के हैं !
आईनें में खुद को पहले देखना
बस यही इल्तजा आप सब से है !!
Great! Nice.. touchy poems ... Khaasakar Bhojpuri wali....
ReplyDeleteहार्दिक नमन एवम आभार उमेश जी !मुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरी रचनायें पसंद आईं! सादर!!
Deleteसरोज!
Bahut khub. Sari rachnayen ek se badhkar ek hai. Abhinandan.
ReplyDeleteहार्दिक नमन एवम आभार दीपक जी!
Deleteबहुत भाव भरी रचनाएं सरोज जी,
ReplyDeleteबधाई -शुभकामनाएं!
डॉ सरस्वती माथुर
हार्दिक नमन एवम आभार डॉ सरस्वती माथुर जी !
Deleteबचपन- जवानी घर- आँगन गाँव -शहर ...सब मौजूद हैं ...भावों के सशक्त स्वरुप ने भाषा (भोजपुरी )को कहीं अवरोध नहीं बनने दिया .
ReplyDelete''मेरे आंसू कोई न देखे ''....बस ..इसके बाद और कुछ नहीं कहना ...
हार्दिक नमन एवम आभार वंदना जी !भोजपुरी भाषी न होते हुये भी आपने कविता के मर्म को समझा आभारी हूं !
Deleteबधाई सरोज जी, मिट्टी की सौंधी महक से महकती कवितायें हैं, अवधी पूरी तरह समझ तो नहीं पाती हूँ पर पढ़कर अच्छा लगा.....शुभकामनायें .....
ReplyDeleteसरोज दीदी को पढ़ते हुए मन कई पड़ाव एक साथ जीता है, और गाँव की सोंधी खुशबु एक बार फिर से अपना असर दिखाने लगती है। उनकी रचनाओं में प्रणय, ममता, अपनापन, स्नेह, सवाल सब कुछ मिलेगा जो आपको कहीं न कहीं विचलित तो जरुर करता है लेकिन इतने अन्दर तक समाता है कि आप बार बार पढ़ते हैं। सरोज दीदी को बधाई।
ReplyDelete-नीरज
सरोज दीदी को पढ़ते हुए मन कई पड़ाव एक साथ जीता है, और गाँव की सोंधी खुशबु एक बार फिर से अपना असर दिखाने लगती है। उनकी रचनाओं में प्रणय, ममता, अपनापन, स्नेह, सवाल सब कुछ मिलेगा जो आपको कहीं न कहीं विचलित तो जरुर करता है लेकिन इतने अन्दर तक समाता है कि आप बार बार पढ़ते हैं। सरोज दीदी को बधाई।
ReplyDelete-नीरज
bhojpuri ke geet aur usme dard, ganv ke aneko drishya .. sabhi rachnaayen atyant sundar hain... saroj bahan aapko saadhuwaad
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