इंदु सिंह--------------संवेदनशील कवयित्री इंदु सिंह की कवितायें सहज भाव से जीवन को प्रकृति से जोड़कर एक सकारात्मक रूप देती हैं, इंदु सिंह का पुनः स्वागत है फ़रगुदिया पर ...
1--छोटी सी लहर
तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
चली जाती है बहुत दूर तक
लेकिन बहुत शांत
समुद्र की तरह वह शोर नहीं मचाती
बरबस ही ध्यान खींच नहीं पाती
फिर भी जीवन से पहचान करा जाती है
वह छोटी सी लहर …
हर हाल में है शांत न कोई कौतूहल
हर बात को कितने आराम से समझाए
द्रढ़ निश्चयी है वह
लेकिन हर बात
जीवन की कोमलता से कह जाए
हो कितना भी विशाल समुद्र
समेटे लाखों झंझावात
लेकिन यह तालाब /समुद्र इस गाँव का
यह लहर है एक गिलहरी दौड़ती उस पर
यह छोटी सी लहर
पानी में एक लिखी हुई पंक्ति
यहाँ से वहाँ तक
दौड़ती हुई .
२- सर्द दोपहर में
सर्द दोपहर में
बालकनी का वह कोना
जहाँ सूरज अपना छोटा-सा घर बनाता है
अच्छा लगता है
हर पहर के साथ
खिसकता हुआ वह घर जीवन पथ पर
चलना सिखाता है
हो कितनी ही ठण्ड
पर उसकी गर्म सेंक
सुकून देती है।
है जीवन भी ऐसा कभी सर्द तो कभी गर्म
हर कोने की सर्दी को सेंक देना है
हर गर्म घर को शीतल कर देना है
वो सूरज की किरणों का
छोटा-सा घर
सब की बालकनी में एक कोना ।
4-गाँव हूँ मालूम है मुझे…
गाँव हूँ मालूम है मुझे फिर भी
चर्चा सब जगह मेरी
मै खो गया हूँ ये भी कहा किसी ने
बदल गया हूँ, ये भी।
मुझे, मेरी पहचान को धूमिल
किया जा रहा है
गाँव को विषय बना दिया है आज
मुझ पर चर्चा मेरी चिंता
सबसे बड़ा आज का मुद्दा।
न आना है किसी को मेरे पास
न जानने हैं मेरे जज़्बात
बस ! करनी चर्चा ख़ास।
मेरी तरक्की मेरी खामियाँ
मुझ पर सरकारी खर्चे
सब मुझ पर कुर्बान
कितना क्या चाहिए
या कितना है मिला
न किसी को इसकी कोई पहचान।
कविता लिखो मुझ पर
कहानी भी
उपन्यास से तो भरा हूँ मैं
लिखने को हर किसी को
बस यूँ ही मिला हूँ मैं
जैसे समाज में कुछ और
अब शेष ही न हो।
महानगर मुझ पर गर्व करते
अपनी चमकीली गोष्ठियों में
थोथली बातों से अनभिज्ञ नहीं मैं
अब बस भी करो
गाँव था अब भी वहीँ हूँ
बेवजह अपनी खामियाँ
भरने को
न मुझे उजागर करो
बदला मैं नहीं
बदल रहे हो तुम मुझे
जैसा हूँ रहने दो, हाँ !
इतनी ही फुर्सत है गर तुम्हे
लिखो कुछ खुद पर कभी
गर लिख सको तो …
5- चुप्पी
चुप्पी बयाँ भी होती है
और जज़्ब भी
चीखें गूंगी भी होती हैं
अद्रश्य भी
निर्भर करता है कि
चुप्पी कहाँ है और
चीखें किसकी .
ख़ामोश चीखों की असहनीय आवाज़
तार – तार करती है
समाज को
मूक बन निहारते हैं सब
कभी चुप्पी कभी
चीखों को
जारी है ये क्रम
सदियों से …
तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
चली जाती है बहुत दूर तक
लेकिन बहुत शांत
समुद्र की तरह वह शोर नहीं मचाती
बरबस ही ध्यान खींच नहीं पाती
फिर भी जीवन से पहचान करा जाती है
वह छोटी सी लहर …
हर हाल में है शांत न कोई कौतूहल
हर बात को कितने आराम से समझाए
द्रढ़ निश्चयी है वह
लेकिन हर बात
जीवन की कोमलता से कह जाए
हो कितना भी विशाल समुद्र
समेटे लाखों झंझावात
लेकिन यह तालाब /समुद्र इस गाँव का
यह लहर है एक गिलहरी दौड़ती उस पर
यह छोटी सी लहर
पानी में एक लिखी हुई पंक्ति
यहाँ से वहाँ तक
दौड़ती हुई .
२- सर्द दोपहर में
सर्द दोपहर में
बालकनी का वह कोना
जहाँ सूरज अपना छोटा-सा घर बनाता है
अच्छा लगता है
हर पहर के साथ
खिसकता हुआ वह घर जीवन पथ पर
चलना सिखाता है
हो कितनी ही ठण्ड
पर उसकी गर्म सेंक
सुकून देती है।
है जीवन भी ऐसा कभी सर्द तो कभी गर्म
हर कोने की सर्दी को सेंक देना है
हर गर्म घर को शीतल कर देना है
वो सूरज की किरणों का
छोटा-सा घर
सब की बालकनी में एक कोना ।
3-ज़िंदगी
हाँ ! आज ही तो दिखी तुम
लोहे के जाली बंद
दरवाजे के उस पार
मुस्कुराती हुई उजली सी
वो श्वेत रंग था तुम्हारा
फिर भी हरा-भरा दिखा ।
कितनी मासूमियत से पूछा था
तुमने सवाल
क्यूँ हो मुझसे दूर
बंद सींखचों के साथ ?
बस, इतनी ही दूरी है
ख़त्म कर दो इसे ।
उठो ! आओ पास मेरे देखो
तुम पर भी ये रंग खूब फबेगा
और मैंने उठकर
खोल दिया दरवाजा
अब मुक्त था जीवन
खुश था ज़िंदगी के साथ ।
सही कहा था उसने
श्वेत रंग अपनी चमक से
हर रंग भर देगा
कर देती है ज़िंदगी हर रंग
को हरा-भरा वो भी अपने
श्वेत रंग के साथ….
लोहे के जाली बंद
दरवाजे के उस पार
मुस्कुराती हुई उजली सी
वो श्वेत रंग था तुम्हारा
फिर भी हरा-भरा दिखा ।
कितनी मासूमियत से पूछा था
तुमने सवाल
क्यूँ हो मुझसे दूर
बंद सींखचों के साथ ?
बस, इतनी ही दूरी है
ख़त्म कर दो इसे ।
उठो ! आओ पास मेरे देखो
तुम पर भी ये रंग खूब फबेगा
और मैंने उठकर
खोल दिया दरवाजा
अब मुक्त था जीवन
खुश था ज़िंदगी के साथ ।
सही कहा था उसने
श्वेत रंग अपनी चमक से
हर रंग भर देगा
कर देती है ज़िंदगी हर रंग
को हरा-भरा वो भी अपने
श्वेत रंग के साथ….
4-गाँव हूँ मालूम है मुझे…
गाँव हूँ मालूम है मुझे फिर भी
चर्चा सब जगह मेरी
मै खो गया हूँ ये भी कहा किसी ने
बदल गया हूँ, ये भी।
मुझे, मेरी पहचान को धूमिल
किया जा रहा है
गाँव को विषय बना दिया है आज
मुझ पर चर्चा मेरी चिंता
सबसे बड़ा आज का मुद्दा।
न आना है किसी को मेरे पास
न जानने हैं मेरे जज़्बात
बस ! करनी चर्चा ख़ास।
मेरी तरक्की मेरी खामियाँ
मुझ पर सरकारी खर्चे
सब मुझ पर कुर्बान
कितना क्या चाहिए
या कितना है मिला
न किसी को इसकी कोई पहचान।
कविता लिखो मुझ पर
कहानी भी
उपन्यास से तो भरा हूँ मैं
लिखने को हर किसी को
बस यूँ ही मिला हूँ मैं
जैसे समाज में कुछ और
अब शेष ही न हो।
महानगर मुझ पर गर्व करते
अपनी चमकीली गोष्ठियों में
थोथली बातों से अनभिज्ञ नहीं मैं
अब बस भी करो
गाँव था अब भी वहीँ हूँ
बेवजह अपनी खामियाँ
भरने को
न मुझे उजागर करो
बदला मैं नहीं
बदल रहे हो तुम मुझे
जैसा हूँ रहने दो, हाँ !
इतनी ही फुर्सत है गर तुम्हे
लिखो कुछ खुद पर कभी
गर लिख सको तो …
5- चुप्पी
चुप्पी बयाँ भी होती है
और जज़्ब भी
चीखें गूंगी भी होती हैं
अद्रश्य भी
निर्भर करता है कि
चुप्पी कहाँ है और
चीखें किसकी .
ख़ामोश चीखों की असहनीय आवाज़
तार – तार करती है
समाज को
मूक बन निहारते हैं सब
कभी चुप्पी कभी
चीखों को
जारी है ये क्रम
सदियों से …
6- क्या लिखूँ ?
क्या लिखूँ ?
खुद पर
तुम पर
रिश्तों पर
प्यार पर
क्यों लिखूँ ?
जब झूठ ही लिखना है।
कभी धान
कभी खील
कभी लाई
और कभी उसके
चावल को ही
गला देना है जब।
कैसे लिखूँ उस
कनकी की पीर
अलग कर दिया उसे भी
छानकर, पटक कर।
उड़ती हुई भस
सब ढँक देती है
देखने को कुछ नहीं
कहने को कुछ नहीं
लिखने को कुछ नहीं।
खुद पर
तुम पर
रिश्तों पर
प्यार पर
क्यों लिखूँ ?
जब झूठ ही लिखना है।
कभी धान
कभी खील
कभी लाई
और कभी उसके
चावल को ही
गला देना है जब।
कैसे लिखूँ उस
कनकी की पीर
अलग कर दिया उसे भी
छानकर, पटक कर।
उड़ती हुई भस
सब ढँक देती है
देखने को कुछ नहीं
कहने को कुछ नहीं
लिखने को कुछ नहीं।
परिचय
नाम : इंदु सिंह
जन्म : 4 अगस्त , उन्नाव (
उत्तर प्रदेश )
शिक्षा : लखनऊ
विश्व विद्यालय - एम .ए . ( हिंदी )
पत्राचार : 102 - S , सेक्टर - 8 , जसोला विहार
नई दिल्ली
- 110025
फ़ोन : 09958000493
दो वर्ष हिंदी
अध्यापन किया अब स्वतंत्र लेखन में जुटी हूँ।
जीवन के विभिन्न
पहलुओं को समीप से देखना उन पर मनन करना स्वाभाव के अभिन्न अंग हैं।
भावनाओं का
चित्रण कविताओं ,
कहानियों , एवं लेख के द्वारा प्रकट करना अपना कर्तव्य समझती हूँ।
विभिन्न
कार्यक्रमों में मंच संयोजक एवं उदघोषक रही हूँ।
उपलब्धि :
लखनऊ दूरदर्शन द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘ नए हस्ताक्षर ‘ में काव्य पाठ.
फोकस टेलिविज़न द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘ होली के रंग ‘ में काव्य पाठ .
ऑल इण्डिया रेडियो के कार्यक्रम ‘ आधा आकाश हमारा ‘ में एकल काव्य पाठ .
अनेकानेक काव्य गोष्ठियों एवं मुशायरों में काव्य पाठ .
देश के अनेकानेक प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं जैसे भारतीय भाषा
परिषद की मासिक पत्रिका ‘ वागर्थ ‘ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रकाशित
पत्रिका ‘साहित्य भारती ‘ तथा ‘ अपरिहार्य
‘ सादर इण्डिया ‘ ‘ मगहर ’ ‘ विश्वगाथा ’ दैनिक समाचार पत्र – आज, स्वतंत्र भारत ,
नवभारत टाइम्स ,प्रभात वार्ता , पाक्षिक समाचार पत्र प्रेस पालिका आदि अनेकानेक
पत्र – पत्रिकाओं में लेख, , कविताएँ एवं कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं तथा
निरंतर प्रकाशित हो रही हैं .
अन्य रुचियाँ : घूमना ,
योग , सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना है।