Monday, July 30, 2012

चेतना की "मशाल" रोशन करती चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ एम.फिल (हिंदी साहित्य), विशारद (कथक) पाँच कहानी संग्रह (बौनी होती परछाई, कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं,केयर ऑफ़ स्वात घाटी, (गंधर्व-गाथा) दो उपन्यास  (शिगाफ़, शालभंजिका ) अनुवाद - 'माया एँजलू की आत्मकथा' वाय केज्ड बर्ड...

Sunday, July 29, 2012

चेतना की 'मशाल' रोशन करती वंदना शर्मा

वंदना शर्मा:- अपने बयान की तीव्रता.अनुभूति की गहराई भाषा की प्रखरता ,शिल्प और अपने तेवर के साथ वंदना शर्मा की कवितायें हाल के स्त्री-लेखन की प्रमुख उपलब्धि है। उनका लेखन लेखन कम आह्वान ज्यादा है जिसमें स्थापित मूल्यों , स्थापनाओं के विरुद्ध...

Thursday, July 26, 2012

"Fargudiya Mashaal" event

http://www.facebook.com/events/454189434606327/ मित्रों,''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'' की अवधारणा वाले इस देश में नारियों के प्रति जिस प्रकार दिनोंदिन हिंसक और अश्लील वारदातें बढ़ रही हैं वह बेहद चिंतनीय बात है, आज स्त्री अस्मिता की यहाँ वहां जिस तरह भरे बाज़ार बेखौफ धज्जियां उड़ाईं जा रही हैं उसे देख... कर... किसी भी सच्चे भारतीय...

Friday, July 20, 2012

मनीषा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह और उपन्यास

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मनीषा कुलश्रेष्ठ का उपन्यास

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Monday, July 16, 2012

महिला मुद्दे और ब्लॉग

महिलाओं को ध्यान में रखते हए लिखने वालों कि संख्या अनगिनत है.घर-परिवार को सम्भालते हए भी अपनी मौजूदगी से सबको सम्मोहित करने वाली महिलाओं की तताद लम्बी है.उनमे से कुछ बेहद चर्चित भी है.अभी कुछ दिन पहले ही २७ को ‘फर्गुदिया’ग्रुप के महिलाओं ने कम...

Wednesday, July 04, 2012

"एक शाम फरगुदिया के नाम" काव्य संध्या में रश्मि भारद्वाज द्वारा पढ़ी गई कविता

बिजूका देह और मन की सीमाओं में नहीं बंधी होती है गरीब की बेटी.... अपने मन की बारहखड़ी पढ़ना उसे आता ही नहीं और देह उसकी खरीदी जा सकती है टिकुली ,लाली ,बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के बदले भी .... गरीब की बेटी नहीं पायी जाती किसी कविता...

Monday, July 02, 2012

"एक शाम फरगुदिया के नाम" काव्य संध्या में रश्मि भारद्वाज द्वारा पढ़ी गई कविता

बिजूका देह और मन की सीमाओं में नहीं बंधी होती है गरीब की बेटी.... अपने मन की बारहखड़ी पढ़ना उसे आता ही नहीं और देह उसकी खरीदी जा सकती है टिकुली ,लाली ,बीस टकिये या एक दोने जलेबियों के बदले भी .... गरीब की बेटी नहीं पायी जाती किसी कविता...

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