Tuesday, February 24, 2015

जो स्त्रियां सच लिखती हैं, उन पर लांछन लगते ही हैं!- रमणिका गुप्ता

बात-चीत 20.11.2014 १. कहा जाता है कि अभिव्यक्ति की बराबरी से बड़ी कोई बराबरी नहीं हो सकती. दुनिया भर के जनतांत्रिक आंदोलनों का अंतिम आदर्श भी यही अभिव्यक्ति की बराबरी रहा है.हिंदी जगत में स्त्रियों द्वारा रचे जा रहे साहित्य की प्रचुरता और विपुलता...

Tuesday, February 17, 2015

हमारी झुटपुट अभिव्यक्ति में ही इन्द्र जनों का आसन डोलने लगता है- किरन सिंह

"स्त्री को अक्सर अपनी अभिव्यक्ति के लिए तिनके की ओट लेनी पड़ती है। मीरा ने जिस कृष्ण को ढोल बजा कर खरीदा वह ईश्वर न होकर मनुष्य होता तो ? महादेवी की पीडा किसी अज्ञात के लिए नहीं बल्कि किसी इंसान के लिए होती तो ? राणा जी के जहर के प्याले और हाथी...

Sunday, February 15, 2015

जीवन के सच और उसकी भयावह विचित्रता की कहानी: "अनोखा" - स्वाती ठाकुर

जीवन के सच और उसकी भयावह विचित्रता की कहानी: "अनोखा" - स्वाती ठाकुर  _________________________________________________ 'अनोखा' यह शीर्षक हठात ही ध्यान आकर्षित करता है और पाठकीय मन जाने कौन कौन से  बोध तैयार कर लेता है। मेरे...

Friday, February 13, 2015

अनोखा - इंदु सिंह

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